अर्थव्यवस्था: मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए आरबीआई ने रेपो रेट में नहीं किया कोई बदलाव

मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए आरबीआई ने रेपो रेट में नहीं किया कोई बदलाव
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से शुक्रवार को लगतार सातवीं बार अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है।

मुंबई, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से शुक्रवार को लगतार सातवीं बार अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है।

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के छह में से पांच सदस्यों ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करने का निर्णय लिया है।

दास ने कहा कि एमपीसी ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए पहल जारी रखने का फैसला किया है।

उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था की स्थिरता व विकास के लिए आरबीआई की अवस्फीतिकारी नीति जारी रहेगी।

दास ने कहा कि खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति का असर आगे भी जारी रहेगा।

केंद्रीय बैंक ने आखिरी बार फरवरी 2023 में रेपो रेट में बदलाव किया था। तब इसे बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया गया था। आरबीआई ने मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच दरों में 2.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी। गौरतलब है कि रेपो रेट वह ब्याज दर है, जिस पर आरबीआई अन्य बैकों को अल्पकालिक ऋण देता है।

आरबीआई की 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा से घटकर मुद्रास्फीति अब लगभग 5 प्रतिशत पर आ गई है। लेकिन केंद्रीय बैंक का लक्ष्य इसे 4 प्रतिशत तक लाना है, जिसे वह अर्थव्यवस्था के लिए आदर्श मानता है। .

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कई बार कहा है कि हालांकि मुद्रास्फीति में कमी आ रही है, लेकिन जब तक यह चार प्रतिशत तक नहीं आ जाती, तब तक केंद्रीय बैंक अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को आरबीआई के एक कार्यक्रम में कहा कि केंद्रीय बैंक को विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए, साथ ही विश्वास और स्थिरता पर भी ध्यान देना चाहिए।

दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत की सबसे तेज जीडीपी वृद्धि जारी रहने के साथ, आरबीआई के पास विकास को प्रभावित किए बिना निकट अवधि में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करने की पर्याप्त गुंजाइश है। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर सरकारी खर्च और बढ़ते घरेलू मांग के कारण अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने आश्चर्यजनक रूप से 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की थी।

राजकोषीय घाटा नियंत्रण में होने से अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत हो गई है। राजकोषीय घाटे में कमी मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद करेगा।

जनवरी-मार्च तिमाही के लिए आर्थिक संकेतक भी उत्साहजनक रहे हैं। लाल सागर में हौथी हमलों के कारण जहाजों की आवाजाही में व्यवधान के बावजूद निर्यात बढ़ रहा है।

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Created On :   5 April 2024 2:19 PM IST

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