बिहार विधानसभा चुनाव 2025: असली लोकतंत्र की पहचान शिक्षा में ही छिपा है बिहार का भविष्य, बिहार में साक्षरता में पिछड़ी महिलाएं

डिजिटल डेस्क, पटना। भारत में सबसे अधिक आईएएस देने वाले गरीब बिहार राज्य में भी शिक्षा बदहाल है, और यहां भी शिक्षा सुधार की गुंजाइश बहुत है, भले ही हाल के वर्षों में कुछ प्रगति हुई है। लेकिन आज भी बिहार के कई जिलों में महिला और पुरूष में लैंगिक और शैक्षणिक असमानता साफ दिखाई देती है। बिहार की कुल साक्षरता दर अब लगभग 74.3 फीसदी हो गई है, जिसमें पुरुष साक्षरता 80 प्रतिशत और महिला साक्षरता 61 प्रतिशत है। जबकि 2011 की जनगणना में कुल साक्षरता दर 61.8% थी, जिसमें पुरुष सारक्षता 71.2%, महिला साक्षरता 51.5% थी। बिहार की साक्षरता पहले से बढ़ी है। ASER 2023 की रिपोर्ट के अनुसार महिला साक्षरता में लगभग 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन अभी भी, लिंग असमानता और सामाजिक कारणों की वजह से महिला साक्षरता पुरूषों से 19 फीसदी कम है। जाति व्यवस्था, घरेलू काम, और सांस्कृतिक रूढ़ियां ,पारपंरिक रीति रिवाज महिला एजुकेशन में सबसे बड़ी बाधा अभी भी बनी हुई है।
सरकार भी शिक्षा पर मानक से कम बजट खर्च करती है। सरकार की गरीब परिवारों की शिक्षा को प्रभावित करने वाले नीतियां बढ़ी है। इनमें स्कूलों का मर्ज होना, आरटीई से प्राइवेट स्कूलों की तरफ अधिक बढ़ना, प्राइवेट ट्यूशन सेंटर्स का अधिक बढ़ जाना, इनकी वजह से सरकारी स्कूल खाली हो रहे है। गरीबी इंफ्रास्ट्रक्चर को प्रभावित करती है, जो ड्रॉपआउट को बढ़ाती है।
बिहार में कुल 38 जिले हैं। विकिपीडिया के अनुसार 87.82% के साथ पटना में सबसे अधिक साक्षरता दर है, उसके बाद 80.36% रोहतास और 78.11% मुंगेर का स्थान है। किशनगंज में साक्षरता दर सबसे कम 61.05% है, उसके बाद अररिया 64.95% और कटिहार 65.46% का स्थान है।। ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता शहरों की अपेक्षा कम है, बिहार के गांवों के साक्षरता दर करीब 61.8% जबकि शहरी लिटरसी रेट 78.1% है।
क्षेत्रीय और सामाजिक निर्भरता को छोड़ दिया जाए तो एक स्टडी से पता चलता है कि शिक्षित मतदाता अपराधी या भ्रष्ट उम्मीदवारों को कम वोट करते हैं। साक्षरता दर बढ़ने से वोट परसेंट में भी बढोतरी होती है। भारत जैसे लोकतंत्र में शिक्षा चुनावों पर गहरा असर डालती है, शिक्षा जाति, धर्म जैसे पारंपरिक कारकों से हटाकर मुद्दा-आधारित वोटिंग को बढ़ावा देती है। शिक्षा चुनावों को अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाती है
शिक्षित वोटर्स महिला उम्मीदवार और विकास-केंद्रित नीतियों पर अधिक फोकस करते हैं। शिक्षा से लड़कियों की साक्षरता बढ़ती है, जिसमें चुनावी सियासत में लिंग संवेदनशीनल जैसे सुरक्षा, असमानता और शिक्षा मुद्दें अधिक उठते है, इन सब से महिला सशक्तिकरण बढ़ता है, जिससे लोकतंत्र मजबूत होता है। भले ही सामाजिक रूप से विविधता भरे भारत में चुनाव में पारंपरिक कारक जाति अभी भी मजबूती से भूमिका निभाती हैं, लेकिन शिक्षित वोटर्स सरकार की रोजगार व आर्थिक नीतियों को ध्यान मे रखता है। इसे आप इससे समझ सकते है कि सरकारी कार्यक्रम 'उन्नयन बिहार' ने साक्षरता बढ़ाई, जिससे वोटिंग में परिवर्तन आया। एक अध्ययन के अनुसार अच्छी अर्थव्यवस्था शिक्षा के साथ मिलकर वोटिंग को स्थिर बनाती है, लेकिन पारंपरिक कारक जाति आज भी अधिक मजबूत हैं।
2023 की ASER रिपोर्ट बताती है कि, ग्रामीण बिहार में कक्षा 8 के 50% बच्चे बेसिक गणित नहीं कर पाते, और 22% कक्षा 2 स्तर का पाठ नहीं पढ़ पाते। ड्रॉपआउट रेट (प्राथमिक से उच्च माध्यमिक तक) 19.5% है, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है। इसके पीछे का कारण आर्थिक पिछड़ापन और गरीबी है, बिहार में प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, परिवारों में 48% आबादी कृषि पर निर्भर है, और बच्चे कम उम्र में मजदूरी करने लगते हैं। ASER रिपोर्ट कहती है कि गरीबी के कारण प्राथमिक स्तर पर 3.8%, और उच्च माध्यमिक पर 10.3% ड्रॉपआउट रेट है। विद्यालयों की खराब इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं की कमी साफ नजर आती है। UDISE+ 2023-24 की रिपोर्ट के मुताबिक 78,000 सरकारी स्कूलों में से 16,500 में बिजली नहीं है, और केवल 6.5% स्कूलों में ही कंप्यूटर है। 2,637 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक है, जहां 2.91 लाख छात्र पढ़ते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय, पीने का पानी और लाइब्रेरी की कमी है। कोविड-19 ने इसे और बिगाड़ दिया। माध्यमिक स्कूलों में 22% कोर विषय के टीचर नहीं है। विश्व में सबसे अधिक टीचर यहां अनुपस्थित रहते है, एक रिपोर्ट के अनुसार यहां 37.8% शिक्षक संस्था में नहीं जाते।
पिछले पांच सालों की बात की जाए तो बिहार में 2020-21 में कोविड की वजह से स्कूलों की संख्या में कोई इजाफा नहीं , जबकि 2021 -22 में सरकार ने रेशनलाइजेशन शुरू किया और करीब 500 से 700 स्कूल मर्ज किए गए। आगामी साल 2022-23 में ये आंकड़ा और बड़ा, इस साल 800 स्कूलों को मर्ज किया गया। 2023-24 में 1,800 सरकारी स्कूल मर्ज या बंद किए गए , तब बिहार में स्कूलों की संख्या 77,856 से घटकर 76,000 रह गई। 2024-25 में 200 से 300 स्कूल बाढ़ और चुनावी कारणों से अस्थायी तौर पर बंद है। स्कूलों के मर्ज होने से सरकार संसाधन बचत की बात भले ही करती हो लेकिन ग्रामीण बच्चों को कई किमी दूर जाने से ड्रॉपआउट भी बढ़ता है। बिहार में मर्जर से 5-10% ग्रामीण स्कूल प्रभावित हुए जिससे लर्निंग लॉस भी सबसे ज्यादा हुआ। अब शिक्षा विभाग भले ही मर्जर रोकनने की बात कर रहा है लेकिन कुछ बच्चों की पढ़ाई छूटने से उनका जीवन प्रभावित हुआ।
वैसे आपको बता दें एक समय पर बिहार दुनिया के लिए शिक्षा का सेंटर था। अब समय आ गया है कि अपने वोट की चोट से सत्ता को सबक सिखाते हुए शिक्षा में अच्छे बदलाव करते हुए महिला शिक्षा को भी सुधारा जाए क्योंकि शिक्षा ही महिला और असली लोकतंत्र की पहचान, शिक्षा ही बिहार का भविष्य है।
Created On :   2 Nov 2025 3:39 PM IST












