मुस्लिमों का बड़ा हिस्सा अंगदान के पक्ष में
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आम धारणा के विपरीत, भारत में मुसलमान नए जीवन रक्षक चिकित्सा अनुसंधानों के बारे में समान रूप से जागरूक हैं और उन्हें देश के किसी भी अन्य सामाजिक समूह के रूप में अपनाने के लिए तैयार हैं, जैसा कि दधीचि देहदान समिति की ओर से सीवोटर द्वारा अंगदान और शरीर दान के मुद्दे पर एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के निष्कर्षो में कहा गया है।
भारत में वैक्सीन हिचकिचाहट के मुद्दे पर आईएएनएस-सीवोटर सर्वेक्षण के दौरान घातक कोरोनावायरस के खिलाफ टीका लगवाने के बारे में समुदाय द्वारा ऐसी ही भावना व्यक्त की गई थी।
अंगदान और शरीर दान पर सीवोटर सर्वेक्षण से पता चला है कि 40 प्रतिशत सूचित मुस्लिम उत्तरदाताओं ने या तो शरीर दान के लिए पंजीकरण कराया था या इसके लिए पंजीकरण करने की इच्छा व्यक्त की थी, ताकि उनके अंगों का उपयोग जीवित जीवन को बचाने के लिए किया जा सके। विशेष रूप से, केवल 28 प्रतिशत ने कहा कि शरीर दान की अवधारणा उनके धार्मिक विश्वास के खिलाफ है। वहीं, 16 फीसदी इस विचार से असहज थे और 16 फीसदी ने अंग या शरीर दान करने के बारे में नहीं सोचा था।
यह भावना समुदाय के सदस्यों द्वारा किए गए अंगदान या शरीर दान में परिलक्षित हुई। सर्वेक्षण के दौरान, 39 प्रतिशत मुस्लिम उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके परिवार, रिश्तेदारों या करीबी लोगों ने अंगदान या शरीर दान किया था।
इसी तरह, कोविड-19 महामारी के मद्देनजर टीका लेने में झिझक पर किए गए सर्वेक्षण के दौरान 54 प्रतिशत मुस्लिम उत्तरदाताओं ने कहा था कि टीके उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुकूल हैं। इस विचार को प्रतिबिंबित करते हुए समुदाय के 67 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे घातक वायरस से सुरक्षा पाने के लिए टीका लगवाना चाहते हैं।
सीवोटर सर्वेक्षण स्पष्ट रूप से इस मिथक को ध्वस्त करते हैं कि मुसलमान अंगदान और शरीर दान के प्रति अंधविश्वासी और रूढ़िवादी हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि अधिकांश मुस्लिम उत्तरदाता न केवल अंगदान और शरीर दान के समर्थक हैं, बल्कि समुदाय का एक बड़ा हिस्सा - 44 प्रतिशत एक ऐसे कानून के पक्ष में है, जिसके तहत भारत के सभी वयस्क नागरिक पंजीकृत होंगे। अंगदान के लिए सरकार केवल 20 प्रतिशत मुसलमानों ने इस तरह के कानून के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए और 37 प्रतिशत इस विचार से अनजान थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, अंगों की अनुपलब्धता के कारण हर साल लगभग पांच लाख लोगों की मौत हो जाती है। 1997 में गठित दधीचि देहदान समिति अंगदान और शरीर दान के प्रति जागरूकता फैलाने में अग्रणी संगठन रही है।
(आईएएनएस)
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Created On :   6 Sept 2022 3:30 PM IST