मप्र में मतदाता की चुप्पी में बड़े राज

Big secret in the silence of voters in MP
मप्र में मतदाता की चुप्पी में बड़े राज
मप्र में मतदाता की चुप्पी में बड़े राज
हाईलाइट
  • मप्र में मतदाता की चुप्पी में बड़े राज

भोपाल, 2 नवंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में हो रहे विधानसभा के उपचुनाव में चर्चाओं में मुद्दों की भरमार है मगर इनका जमीनी स्तर पर कितना असर है इसे पढ़ना आसान नहीं है, क्योंकि मतदान के एक दिन पहले तक मतदाता चुप्पी साधे हुए हैं। मतदाताओं की यही चुप्पी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को बेचैन किए हुए है। वहीं दावे यही किए जा रहे है कि जीत तो उनकी ही होगी।

राज्य में कांग्रेस के कुल 25 विधायकों की बगावत के कारण सत्ता बदलाव तो हुआ ही है साथ में उपचुनाव की नौबत आई है। कुल 28 स्थानों पर उप चुनाव हो रहे हैं, इन उप चुनाव में मुददे बहुत हैं जिनकी चर्चा है, मगर ये मुददे वोट दिला पाएंगे यह बड़ा सवाल है। कांग्रेस जहां गद्दार, बिकाऊ, घोटालों को हवा दिए हुए है, वहीं दूसरी ओर भाजपा सीधे कमल नाथ और उनकी सरकार के 15 माह के कामकाज को मुद्दा बनाए हुए है। भाजपा शिवराज सिंह चौहान के 15 साल के शासनकाल और सात माह की बदली तस्वीर को मुद्दा बनाए हुए है। भाजपा पूरी तरह विकास पर केंद्रित और गरीबों की योजनाएं बंद करने को मुद्दा बना दिया है।

दोनों राजनीतिक दलों की बात करें तो तो उन्हें इस बात का भरोसा है कि चुनाव में मतदाता उनके उम्मीदवार और कामकाज को आधार बनाकर मतदान करेगा। छतरपुर के विधायक आलोक चतुवेर्दी का कहना है कि यह चुनाव पूरी तरह मतदाताओं के साथ किए गए धोखे को लेकर है। आम वोटर भी इस बात को मान रहा है कि उनके साथ धोखा हुआ है और उनका विधायक 35 करोड़ में बिक गया था। जिससे मतदाता आक्रोशित है और अपने साथ हुए धोखे का जवाब वह मतदान करके देगा।

वहीं भाजपा के मुख्य प्रवक्ता डॉ. दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि यह उप चुनाव कांग्रेस की वादाखिलाफी के कारण हो रहे हैं क्योंकि कांग्रेस कर्ज माफी, नौजवानों को रोजगार देने सहित कई वादों को करके सत्ता में आई थी, मगर उसने ऐसा नहीं किया। परिणाम स्वरूप ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों ने कांग्रेस छोड़ दी। प्रदेश का मतदाता वादाखिलाफी करने वालों को तीन नवंबर को सबक सिखाएगा।

राज्य की जिन 28 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव हो रहे हैं वहां का कोई भी मतदाता सीधे तौर पर राय जाहिर करने को तैयार नहीं है, हां इतना जरूर कहता है कि खरीफ फरोख्त की बात हो रही है लेकिन सरकार तो भाजपा की है। ऐसे में वह दुविधा में है कि आखिर करें क्या? वह सवाल करता है कि अगर हमारे इलाके से उस दल का उम्मीदवार जीत जाता है जिसकी प्रदेश में सरकार नहीं बनती तो क्षेत्र का क्या होगा। यही कारण है कि वह अभी तक तय नहीं कर पा रहा है कि उसे वोट किसे देना है।

राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र व्यास का कहना है कि चुनाव में कांग्रेस ने बिकाऊ और गद्दार को खूब हवा दी और यह चर्चा में भी है मगर इस तरह के नारे वोट में कितना बदल पाते हैं जिसका अंदाजा किसी को नहीं है। इसके साथ ही मतदाताओं में चुनाव को लेकर उत्साह नहीं है और यही कारण है कि किसी भी तरह का अनुमान लगाना मतदाताओं और क्षेत्र के साथ बेईमानी होगा।

एसएनपी-एसकेपी

Created On :   2 Nov 2020 12:01 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story