विश्वास मत का प्रदर्शन कर अपनी सरकार को सुरक्षा की लक्ष्मण रेखा से बांध लिया: सीएम सोरेन

By demonstrating trust vote, tied my government to the Lakshman Rekha of security: CM Soren
विश्वास मत का प्रदर्शन कर अपनी सरकार को सुरक्षा की लक्ष्मण रेखा से बांध लिया: सीएम सोरेन
झारखंड विश्वास मत का प्रदर्शन कर अपनी सरकार को सुरक्षा की लक्ष्मण रेखा से बांध लिया: सीएम सोरेन
हाईलाइट
  • सुरक्षा की लक्ष्मण रेखा

डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी आज-कल-परसों में भले चली जाये, लेकिन उन्होंने विधानसभा में एक बार फिर विश्वास मत का प्रदर्शन कर अपनी सरकार को सुरक्षा की लक्ष्मण रेखा से बांध लिया है। राज्य में ह्लसत्ताहरणह्व के लिए बढ़ रहे कदमों को उन्होंने फिलहाल ठिठकने पर मजबूर कर दिया है। सोमवार को विधानसभा के विशेष सत्र की कार्यवाही के जरिए सोरेन अपने विरोधियों से लेकर आम जनता तक यह संदेश पहुंचाने में कामयाब रहे हैं कि यह पूर्ण बहुमत की सरकार है और अगर इसे अस्थिर किया जाता है तो यह लोकतांत्रिक जनादेश का अपमान होगा। हेमंत सोरेन ने ट्विट के जरिए अपनी इसी भावना का इजहार किया। उन्होंने लिखा- जीते हैं शान से, विपक्षी जलते रहें हमारे काम से। लोकतंत्र जिंदाबाद!

हालांकि विश्वास मत के इस प्रदर्शन से हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर लटक रही तलवार का खतरा कतई टला नहीं है। यह खबर आम है कि मुख्यमंत्री रहते हुए अपने नाम पत्थर खदान की लीज लेने के मामले में चुनाव आयोग ने उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राज्यपाल को भेजी है। सस्पेंस इस बात पर है कि चुनाव आयोग की सिफारिश पर राज्यपाल का फैसला क्या आता है। चुनाव आयोग की सिफारिश की चिट्ठी राजभवन में पिछले 25 अगस्त को पहुंची है और 12वें दिन भी इसपर राज्यपाल का स्टैंड सामने नहीं आया है। नियमों के जानकार कहते हैं कि चुनाव आयोग की सिफारिश मानने को राज्यपाल बाध्य हैं। यानी हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता जानी तय है। सूत्रों के मुताबिक पेंच इस बिंदु पर फंस रहा है कि विधायकी गंवाने के बाद हेमंत सोरेन दुबारा विधानसभा का चुनाव या उपचुनाव लड़ने के लिए योग्य माने जायेंगे या नहीं? संभावना जताई जा रही है कि राज्यपाल इसी बिंदु पर विधि विशेषज्ञों से विमर्श कर रहे हैं और इसी वजह से उनके फैसले में देर हो रही है।

पिछले 12 दिनों में हेमंत सोरेन और उनकी सत्ता के रणनीतिकारों को भी इस बात का अहसास हो चुका है कि राज्यपाल का आदेश उनके प्रतिकूल आने वाला है। इसलिए इस खेमे ने हर परिस्थिति के लिए रणनीति तैयार कर ली है। विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विश्वास मत का प्रदर्शन करना उनकी रणनीति का पहला बड़ा कदम था। अब राज्यपाल का जो आदेश आयेगा, उससे दो तरह की स्थितियां संभावित हैं। पहली यह कि उनकी विधायकी चली जाये, पर आगे चुनाव लड़ने पर रोक न लगे। ऐसी स्थिति में हेमंत सोरेन को विधायकी गंवाते ही सीएम पद से इस्तीफा तो देना ही पड़ेगा, लेकिन वह इसके कुछ ही देर बाद बहुमत वाले गठबंधन के नेता के तौर दुबारे सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, वह छह महीने तक विधायकी के बिना भी मुख्यमंत्री पद पर रह सकेंगे। उनके इस्तीफे से खाली होने वाली बरहेट विधानसभा सीट पर चुनाव आयोग को छह महीने के अंदर उपचुनाव कराना होगा और तब वह फिर इसी सीट से या किसी अन्य की खाली की गई सीट से जीतकर वापस विधानसभा के सदस्य बन सकते हैं। हां, अगर उपचुनाव में हार गये तो उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ेगा। ऐसी ही स्थिति में उनके पिता शिबू सोरेन को 2009 में तमाड़ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में पराजित होने के कारण सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी थी।

राज्यपाल के संभावित आदेश से दूसरी स्थिति यह बन सकती है कि उनकी विधायकी खत्म होने के साथ आगे कुछ वक्त के लिए चुनाव लड़ने के लिए वह डिबार कर दिये जायें। इस स्थिति में हेमंत सोरेन की जगह मुख्यमंत्री के रूप में मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन से कोई दूसरा चेहरा सामने आ सकता है। ऐसे में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन, उनके पिता शिबू सोरेन, झामुमो के वरिष्ठ नेता और मौजूदा सरकार में मंत्री चंपई सोरेन, जोबा मांझी आदि के नाम विकल्प के तौर पर चर्चा में हैं।

तीसरी संभावित स्थिति यह है कि केंद्र सरकार धारा 356 के तहत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दे। हालांकि इसे केंद्र की ओर से आखिरी विकल्प माना जा रहा है, क्योंकि हेमंत सोरेन सरकार ने विश्वास मत का प्रदर्शन कर इस आशंका से खुद को काफी हद तक महफूज कर लिया है।

इस बीच हेमंत सोरेन ने नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का विस्तार न देने की तीस वर्ष पुरानी मांग पर सहमति, राज्यकर्मियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम, आंगनबाड़ी सेविकाओं-सहायिकाओं के वेतनमान में इजाफा, पुलिसकर्मियों को प्रतिवर्ष 13 माह का वेतन, पारा शिक्षकों की सेवा के स्थायीकरण, सहायक पुलिसकर्मियों के अनुबंध में विस्तार, मुख्यमंत्री असाध्य रोग उपचार योजना की राशि पांच लाख से बढ़ाकर दस लाख करने, पंचायत सचिव के पदों पर दलपतियों की नियुक्ति सहित कई जनप्रिय फैसले लेकर जनमत का स्कोर भी काफी हद तक अपने पक्ष में कर लिया है। अगर निकट भविष्य में राज्य में मध्यावधि चुनाव की भी नौबत आई तो इन फैसलों की बदौलत अपने पक्ष में नैरेटिव गढ़ने में उन्हें काफी मदद मिलेगी। राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के रणनीतिकारों को भी हेमंत सोरेन के इन सधे हुए कदमों का अंदाज नहीं रहा होगा।

 

आईएएनएस

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Created On :   5 Sept 2022 7:30 PM IST

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