जम्मू-कश्मीर के मराठी, गणेशोत्सव में पुणे के संगठनों की घुसपैठ की योजना से नाराज

J&K's Marathi angry over infiltration plan of Pune organizations in Ganeshotsav
जम्मू-कश्मीर के मराठी, गणेशोत्सव में पुणे के संगठनों की घुसपैठ की योजना से नाराज
जम्मू-कश्मीर जम्मू-कश्मीर के मराठी, गणेशोत्सव में पुणे के संगठनों की घुसपैठ की योजना से नाराज
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डिजिटल डेस्क,पुणे/श्रीनगर। पुणे के सात प्रमुख गणेश मंडलियों ने कश्मीर घाटी में 2023 में गणेशोत्सव आयोजित करने की योजना बनाई है। मगर मराठी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले यहां के लोगों को गणेशोत्सव में बाहरी की घुसपैठ पसंद नहीं है।

इस केंद्र शासित प्रदेश में मराठी समुदाय के लगभग 150 परिवार चार दशकों से अधिक समय से रह रहे हैं।

दगडूशेठ हलवाई गणपति मंडली को छोड़कर अन्य संगठनों ने शनिवार को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर और अन्य शहरों में अगले साल से संयुक्त गणेशोत्सव समारोह मनाने की घोषणा की।

श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणेश मंडली के एक ट्रस्टी पुनीत बालन ने इस घोषणा को सही ठहराते हुए कहा कि अगर कश्मीर से कन्याकुमारी तक की यात्रा, वैष्णोदेवी यात्रा और अमरनाथ यात्रा हो सकती है और हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा सकता है तो वे जम्मू-कश्मीर के गणेशोत्सव क्यों नहीं शामिल हो सकते।

जम्मू-कश्मीर श्री गणेश सेवा मंडल के ट्रस्टी दत्तात्रेय सूर्यवंशी ने हालांकि आश्वासन दिया कि वे गणेशोत्सव के लिए अपना उद्यम शुरू करने से पहले कश्मीरी मराठियों को विश्वास में लेंगे।

उन्होंने आईएएनएस से कहा, हम तीन दशकों से घरों में गणपति उत्सव मना रहे हैं और 23 साल से लाल चौक पर भव्य सार्वजनिक गणेशोत्सव मना रहे हैं। स्थानीय मुस्लिम समुदाय के अलावा पंजाब, उत्तर प्रदेश, असम और बिहार से ताल्लुक रखने वाले 5,000 से अधिक लोग हमारा समर्थन करते हैं और हमारे उत्सव में उत्साह से शामिल होते हैं।

एनजीओ सरहद के संस्थापक संजय नाहर ने सहमति जताते हुए कहा कि सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत 130 साल पहले पुणे में (1892) लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए एक राजनीतिक उत्सव के रूप में की गई थी।

नाहर ने कहा, जम्मू-कश्मीर का मराठी समुदाय वास्तव में अपनी धार्मिक शैली में गणेशोत्सव मनाता है और सभी समुदाय के स्थानीय लोग उन्हें सहयोग देते रहे हैं।

उन्होंने कहा, गणेशोत्सव जम्मू-कश्मीर में हर साल मनाया जाता है और तिरंगा भी प्रदर्शित किया जाता है, लेकिन कुछ राजनेता इसकी विपरीत तस्वीर पेश करने का प्रयास करते हैं। वे देशवासियों के बीच गलतफहमी और विभाजन को बढ़ावा देते हैं।

सूर्यवंशी ने कहा कि एसजीएसएम 2,00,000 रुपये के औसत बजट के साथ लाल चौक में 10 दिवसीय उत्सव धूमधाम से आयोजित करता है, अंतिम दिन मूर्ति विसर्जित करता है और लगभग 5,000 लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं।

सूर्यवंशी ने घोषणा की, हम हर परिवार से सिर्फ 2,100 रुपये की सहयोग राशि लेते हैं। हमारे बीच के कुछ लोग या स्थानीय मुस्लिम ज्वेलर्स अपनी इच्छा से ज्यादा रकम भी दान करते हैं। हम किसी भी निजी या सरकारी प्रायोजकों से एक भी रुपया नहीं लेते। पिछले 23 वर्षो में एक भी कश्मीरी ने हमारे वार्षिक कार्यक्रम पर आपत्ति नहीं जताई है, बल्कि इसे सफल बनाने के लिए हमारे साथ जुड़ते हैं।

जम्मू-कश्मीर के मराठी समुदाय में महाराष्ट्र के सांगली, सोलापुर और सतारा जिलों से आकर 125 से अधिक स्वर्ण शोधक और कारीगर बसे हुए हैं। उनके बच्चे स्थानीय अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ते हैं, घर पर मराठी सीखते हैं और कुछ उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए दूसरे राज्यों में भी जाते हैं।

पुणे के संगठनों ने श्रीनगर, पुलवामा, शोपियां, अनंतनाग, बारामूला, कुपवाड़ा और खुरहान में 36 घंटे (डेढ़ दिन) के गणेशोत्सव के लिए मूर्तियों को स्थापित करने की योजना बनाई है। वे बाद के वर्षो में इसे पूर्ण गणेशोत्सव यानी 10 दिन का उत्सव बनाना चाहते हैं।

कश्मीर संभाग के आयुक्त, पांडुरंग के. पोल जो संयोगवश मराठी समुदाय से हैं, 31 अगस्त को महाराष्ट्र से लाई गई भगवान गणेश की 4 फीट ऊंची मूर्ति की स्थाना के साथ एसजीएसएम के गणेशोत्सव का उद्घाटन करेंगे। मूर्ति का विसर्जन 9 सितंबर को झेलम नदी के तट पर हनुमान मंदिर के सामने किया जाएगा।

सूर्यवंशी और नाहर के अलावा, विभिन्न समुदायों के अन्य व्यवसायियों ने पुणे के संगठनों के प्रस्ताव पर यह कहते हुए नाराजगी जताई है कि डेढ़ दिन के कार्यक्रम को शायद ही किसी भी तरह से गणेशोत्सव कहा जा सकता है।

 

 

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Created On :   29 Aug 2022 5:00 PM IST

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