शिवसेना पर शिंदे V/S ठाकरे: किसका होगा धनुष-बाण चुनाव आयोग करेगा फैसला
- शिवसेना का असली मालिक कौन ?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र सियासी संकट पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे का झटका दे दिया है। सत्ता गवां चुके ठाकरे परिवार के सामने सबसे बड़ी मुश्किल शिवसेना पार्टी के चुनाव चिह्न को लेकर है। मंगलवार को टॉप कोर्ट ने सुनवाई करते हुए शिवसेना पार्टी के चुनाव चिह्नों पर किसका कब्जा होगा। इसका निर्णय चुनाव आयोग के पाले में डाल दिया है। यानी अब इलेक्शन कमीशन को तय करना है कि शिवसेना का असली मालिक कौन कहलाएगा।
गुजरात पहुंचे मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने मीडिया से बात करते हुए साफ इशारा कर दिया कि आयोग इस मामले में निष्पक्ष रहेगा, और बहुमत के आधार पर निर्णय लेगा। आयुक्त ने आगे कहा शीर्ष कोर्ट के फैसला पढ़ने के बाद ही निर्णय लिया जाएगा।
दरअसल, चुनाव चिह्न से जुड़े मामलों का निपटारा करने के लिए इलेक्शन कमीशन इलेक्शन सिम्बल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर 1968 की मदद लेता है। इसके पैराग्राफ 15 के जरिए आयोग दो गुटों के बीच में पार्टी के नाम और चिह्न के दावे पर फैसला लेता है।
संगठन और विधायी सदस्यों के समर्थन की जांच
पार्टी चुनाव चिह्न मामलों में एक गुट को मान्यता देने से पहले आयोग इन बातों पर विचार करता है। नियमों के मुताबिक ऐसे समय में इलेक्शन कमीशन की एक मात्र निकाय है, जो पार्टी विवाद या विलय पर निर्णय ले सकता है। प्रथम दृष्टता चुनाव आयोग राजनीतिक दल के अंदर संगठन और विधायी स्तर पर दावेदार को मिलने वाले समर्थन की जांच करता है।
किस दावेदार के पास कितना बहुमत है, कैसे लगाते है पता ?
चुनाव आयोग पार्टी के संविधान के मुताबिक और उसके सौंपी गई पदाधिकारियों की सूची की जांच करता है, आयोग पार्टी संगठन में बनी शीर्ष कमेटी के बारे में पता लगाता है और जांच करता है कि कितने पदाधिकारी, सदस्य बागी दावेदार का समर्थन कर रहे हैं। वहीं, विधायी मामले में सांसदों और विधायकों की संख्या बड़ी भूमिका निभाती है। खास बात है कि आयोग इन सदस्यों की तरफ से दिए गए हलफनामों पर भी विचार कर सकता है।
बहुमत नहीं तब क्या निर्णय ले सकता है- ईसी
अगर पार्टी पर दावा करने वाले किसी गुट के पास बहुमत नहीं तो चुनाव आयोग पार्टी के चुनाव चिह्न को फ्रीज कर सकता है। दावेदारों को पार्टी के नए नाम की अनुमति भी दे सकता है। साथ ही पार्टी नाम में फेरबदल भी कर सकता है।
भविष्य में एक साथ आए बहाली की संभावना
ये संभावना मानकर चलते है कि यदि भविष्य में दोनों गुट एक बार फिर एक साथ हो जाए तब दोनों गुटों को एक साथ मिलकर चुनाव आयोग का ही रूख करना होगा। और एकजुट होकर पार्टी की मान्यता पाने के लिए आवेदन कर सकते है। तब चुनाव आयोग पार्टी के चिह्न और नाम दोबारा बहाल कर सकते है।
क्या मिलता है गुटों को
चुनाव आयोग संगठन और विधायी सदस्यों के बहुमत के आधार किसी एक गुट को भी पार्टी का नाम और चिह्न सुपुर्द कर सकता है। ऐसे में आयोग दूसरे गुट को नए नाम और चिह्न रजिस्टर करने की अनुमति देगा।
Created On :   28 Sept 2022 4:01 PM IST