बीजेपी कोर कमेटी की अहम बैठक में शामिल नहीं हुए सिंधिया, तबियत खराब होने पर समय से पहले लौटे, रवानगी से पहले दिखे नाराज, सियासी हल्कों में उठे कई सवाल!
डिजिटल डेस्क, भोपाल। अपनी अपनी अहमियत और प्रतिष्ठा को लेकर बीजेपी के दो वरिष्ठ नेताओं में ठन गई है। हालांकि दोनों नेताओं में अपने इलाके में दबदबे को लेकर चल रही सियासी सरगर्मी अभी सड़क पर स्पष्ट तौर पर दिखाई नहीं दे रही हैं, लेकिन समाचार की सुर्खियों में यह खबर खूब धूम मचा रही है। दोनों नेता चंबल ग्वालियर से आते है। कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर में प्रतिष्ठा को लेकर तनातनी देखने को मिल रही है। दोनों नेताओं के टकराव से इलाके में बीजेपी कार्यकर्ता असमंजस में पड़े हुए है। ये तनातनी नगर निगम चुनावों से ही देखने को मिली है। जब सिंधिया के समर्थक को प्रत्याशी न बनाकर पार्टी ने ग्वालियर और मुरैना नगर निगम में नरेंद्र सिंह तोमर समर्थित उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे, लेकिन तोमर समर्थिक दोनों ही उम्मीदवार चुनाव हार गए थे। इस हार से सिंधिया समर्थकों की नजर में महाराज की प्रतिष्ठा चरम पर पहुंच गई थी। इस हार का ठीकरा जिलाध्यक्ष पर फोड़ा गया, पार्टी ने उन्हें हटाते हुए नया जिलाध्यक्ष अभय चौधरी को बना दिया। चौधरी को तोमर समर्थक के रूप में देखा जाता है। ये बात सिंधिया समर्थकों को चुभने लगी थी। क्योंकि सिंधिया अपने पंसदीदी चेहरे को ग्वालियर जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर देखना चाहते थे। ऐसा नहीं हुआ तो सिंधिया और उनके समर्थकों को पार्टी का नया जिलाध्यक्ष राज नहीं आ रहा है।
ये बात कल (मंगलवार) बीजेपी की कोर कमेटी की बैठक में सामने आई, बैठक में जिलाध्यक्षों के कार्यों की समीक्षा के साथ आगे की रणनीति पर चर्चा होनी थी। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सिंधिया ग्वालियर जिलाध्यक्ष अभय चौधरी से नाराज बताए जा रहे है। बात तो यहां तक सामने आई है, कि वो चौधरी को हटाकर अपने समर्थक को जिलाध्यक्ष बनाना चाहते है, लेकिन पार्टी की गाइडलाइन है कि जब तक जिलाध्यक्ष के खिलाफ हटाने का कोई बड़ा कारण मौजूद नहीं हो तब तक नहीं हटाया जा सकता है। ऐसे में अभय चौधरी सिंधिया को भा नहीं रहे हैं। क्योंकि सिंधिया आगामी लोकसभा चुनावों में ग्वालियर से चुनाव लड़ने का मन बनाकर बैठे हुए, वो गुना से अपनी सियासत को ग्वालियर शिफ्ट करना चाहते हैं। वहीं नरेंद्र सिंह तोमर भी मुरैना की बजाय ग्वालियर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं। दोनों ही नेता जिलाध्यक्ष के सहारे अपनी जमीन मजबूत करना चाहते हैं।
ग्वालियर चंबल में गुटबाजी होने को बीजेपी भले ही न स्वीकार करे, लेकिन ये बात सच है इस इलाके में गुटबाजी ने जन्म ले लिया है जो नारों, पोस्टर, बैनर्स और हॉर्डिंग्स में साफ नजर आ जाता है। चंबल में दोनों नेताओं के टकराव से ये बात तो तय है कि आने वाले समय में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है जैसा कि नगर निगम चुनावों में हुआ था। दोनों दिग्गज नेताओं के आमने सामने ने कार्यकर्ताओं की मुश्किल बढ़ा दी है।
बीजेपी कोर कमेटी की भोपाल में आयोजित बैठक में सिंधिया का मीटिंग में आना फिर बीच बैठक से चले आना। पार्टी में नाराजगी और गुटबाजी को शो करता है। वैसे वर्चस्व की जंग के एक नहीं अनेक कारण हैं। ग्वालियर अचानक सिंधिया और तोमर के बीच रसूख, रूतबे और राजनीति का केंद्र बन गया है। इसकी वजह भी खास हैं। तोमर भी अगला चुनाव ग्वालियर से लड़ने के मूड में ही ज्यादा नजर आ रहे हैं।
अभय चौधरी के जिलाध्यक्ष बनने के बाद से ही सिंधिया खासे नाराज हैं। इससे पहले तक ग्वालियर में उनकी सक्रियता देखने लायक थी। लेकिन अब सिंधिया का बैठक से पहले नाराज होकर चले जाना कई सवाल उठाता है। हालांकि अचानक जाने की वजह उन्हें बुखार आना बताया गया। जिसके बाद उन्होंने ट्वीट कर खुद को कोरोना होनी पुष्टि भी की। लेकिन इससे पहले तक कांग्रेस को बड़ा मौका मिल चुका था।
Created On :   9 Nov 2022 3:35 PM IST