भारत में सिंगापुर, स्विटजरलैंड जैसे एक से अधिक आधिकारिक भाषाएं क्यों नहीं हो सकतीं?

Why cant India have more than one official language like Singapore, Switzerland?
भारत में सिंगापुर, स्विटजरलैंड जैसे एक से अधिक आधिकारिक भाषाएं क्यों नहीं हो सकतीं?
नई दिल्ली भारत में सिंगापुर, स्विटजरलैंड जैसे एक से अधिक आधिकारिक भाषाएं क्यों नहीं हो सकतीं?
हाईलाइट
  • 130 करोड़ लोगों के लिए एक आधिकारिक भाषा क्यों ?

डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के राज्यों द्वारा हिंदी के उपयोग के आह्वान पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों में एक बहस छिड़ गई है। कर्नाटक के बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता सवाल करते हैं कि अगर 50 लाख की आबादी वाले सिंगापुर में पांच आधिकारिक भाषाएं हो सकती हैं, तो 130 करोड़ की आबादी वाला भारत केवल हिंदी को ही क्यों बढ़ावा दे?

यह माना जाता है कि बड़े भाई के रूप में केंद्र सरकार को यह समझना चाहिए कि हिंदी केवल 1/3 आबादी द्वारा बोली जाती है और गैर-हिंदी आबादी भारत की कुल आबादी का 2/3 है। कर्नाटक रक्षा वेदिके के राज्य संगठनात्मक सचिव अरुण जवागल ने आईएएनएस को बताया कि देश में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक संवैधानिक प्राथमिकता है। अनुच्छेद 351 और 344 यह वरीयता प्रदान करते हैं और यदि भाषाओं की समानता लाना है, तो संविधान में संशोधन की आवश्यकता है।

जवागल ने कहा कि 1950 से हिंदी थोपी गई है और भारत सरकार की कोई भी सेवा कन्नड़ में उपलब्ध नहीं है, जो कि भारत की आधिकारिक भाषा है। उन्होंने कहा, स्विट्जरलैंड में 70 से 80 लाख लोग हैं और देश में पांच आधिकारिक भाषाएं हैं। भारत में 130 करोड़ लोगों के लिए एक आधिकारिक भाषा क्यों होनी चाहिए?

अरुण जवागल का कहना है कि एक भाषा की नीति ने गैर-हिंदी लोगों को नीति निर्माण से दूर रखा है। परीक्षा में भाषा विकल्पों के अभाव को चुनौती देना संभव नहीं है। भारत सरकार केवल हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले उपभोक्ताओं पर विचार करती है। उत्पादों के मैनुअल केवल इन दो भाषाओं में उपलब्ध हैं। सूचना के अधिकार और उपभोक्ताओं की सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन किया गया है। हाल ही में केंद्र सरकार पर्यावरण विधेयक लेकर आई है। आपत्तियां केवल हिंदी और अंग्रेजी में मांगी गईं। अदालतों में चुनौती दिए जाने पर कर्नाटक और दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को सभी आधिकारिक भाषाओं में विधेयक का अनुवाद करने का निर्देश दिया। भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में जाकर दावा किया कि अनुच्छेद 344 के अनुसार इसकी आवश्यकता नहीं है।

पूर्व प्रोफेसर, डीन और कार्यकर्ता डॉ. बी.पी. महेशचंद्र गुरु ने कहा, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, बहुलता भारत की सबसे बड़ी सुंदरता है। दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर भारत, पूर्वी भारत, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और हरियाणा की अपनी भाषाएं हैं। एक बात समझनी होगी कि गैर-हिंदी भाषी लोग भारत में बहुसंख्यक हैं।

उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 60 से 70 प्रतिशत आबादी अपने दैनिक जीवन में हिंदी पर निर्भर नहीं है। यदि हिंदी थोपी गई तो बहुलवाद पर प्रहार होगा। उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह के बयान से मन आहत हुआ और किसी भी तरह से हिंदी थोपने से भारत को कुछ हासिल नहीं होगा। उन्होंने कहा, मैंने अंग्रेजी के महत्व पर जोर देते हुए कहा है कि यह शिक्षा, सीखने, संचार, विकास की भाषा है। हमारा कोई निरंकुश राज्य या लोकतांत्रिक राज्य नहीं है। केंद्र सरकार को सभी धर्मो, भाषाओं और उपसंस्कृतियों का संरक्षक होना चाहिए।

 

 (आईएएनएस)

Created On :   20 April 2022 12:30 AM IST

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