कृत्रिम पैर को कोर्ट पर अपनी बाधा नहीं बनने दिया : मानषी जोशी
- कृत्रिम पैर को कोर्ट पर अपनी बाधा नहीं बनने दिया : मानषी जोशी (साक्षात्कार)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तारीख दो दिसंबर 2011 को मानषी जोशी ने एक दुर्घटना में अपना बायां पैर गंवा दिया था। इंजीनियर के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाली मानषी ने कई दिन अस्पताल में बिताए और रिकवरी के बाद कृत्रिम पैर के साथ अपनी नई जिंदगी शुरू की। उनकी जगह कोई और होता तो वो अपना आत्मविश्वास खो चुका होता, लेकिन मानषी के साथ ऐसा नहीं था, बल्कि इस दुर्घटना ने उन्हें जिंदगी का नजरिया बदलने में अहम रोल अदा किया।
मानषी ने आईएएनएस से साझात्कार में कहा, मेरी जिंदगी तब बदल गई जब 2011 में मेरा एक्सीडेंट हुआ, जिसके कारण मेरा पैर काट दिया गया। दुर्घटना के बाद मुझे सब कुछ दोबार सीखना पड़ा-- चलने से लेकर रोजमर्रा के तमाम काम।
मानषी ने कहा कि सॉप्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के साथ उनका हमेशा से झुकाव खेल की तरफ रहा और वह 10 साल की उम्र से ही बैडमिंटन की कोचिंग ले रही थीं। उन्होंने कहा, खेल आपको जिंदगी की एक अहम चीज सिखाते हैं और वो ये है कि आपको हार स्वीकार करनी पड़ती है। यह सीख मेरे दिमाग में काफी गहरी थी और इसने मुझे शुरुआती दौर में काफी मदद की।
उन्होंने कहा, रिहैब के दौरान इस विश्वास ने मुझे मेरे कृत्रिम पैर के साथ चलने में मदद की। मैंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया। मैं इस खेल को बहुत प्यार करती हूं इसलिए मैंने अपनी चोट को बाधा नहीं बनने दिया और इस प्रतिबद्धता ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुझे कई उपलब्धियों को हासिल करने में मदद की।
उन्होंने कहा, 2011 में एक्सीडेंट के बाद मैंने इंटरकंपनी बैडमिंटन चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया था और स्वर्ण पदक जीता था। इस उपलब्धि ने मुझमें गजब का आत्मविश्वास भरा और मेरी सीमाओं को परखा और तभी मेरे सामने नए मौकों का जहान आया।
नतीजा यह रहा कि आठ साल बाद मानषी ने इतिहास रचा। 2019 में स्विट्जरलैंड के बासेल में उन्होंने अपने ही देश की पारूल परमार को हरा कर विश्व पैरा बैडमिंटन चैम्पियनशिप का खिताब जीता।
मानषी हालांकि जकार्ता में 2018 में खेले गए एशियाई पैरा खेलों में जीते स्वर्ण पदक को ज्यादा पसंद करती हैं जिसका कारण इस पदक का डिजाइन है।
उन्होंने कहा, विश्व चैम्पियनशिप में जीता गया स्वर्ण पदक मेरी अभी तक की सबसे बड़ी उपलिब्ध है, लेकिन मैं अपने एशियाई खेलों के पदक को सबसे ज्यादा प्यार करती हूं क्योंकि इसका डिजाइन मुझे काफी पसंद है क्योंकि इस पर ब्रेल लिपि में लिखा है और जब भी यह हिलता है तो इसकी आवाज होती है।
मानषी ने कहा कि वह कोच पुलेला गोपीचंद की बेहद शुक्रगुजार हैं जिनके मार्गदर्शन में हैदराबाद की अकादमी में उन्होंने अभ्यास किया था।
उन्होंने कहा, गोपी सर बेहतरीन कोच हैं जिन्होंने मेरे करियर को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। उन्होंने मेरी काबिलियत को सही जगह पहुंचाने में बेहद दिलचस्पी से काम किया। उन्होंने कई मैचों के वीडियो देखे और मेरे साथ एक पैर पर अभ्यास भी किया वो भी सिर्फ इसलिए ताकि वो मेरी स्थिति को समझ सकें।
मानषी का ध्यान इस समय राकेश पांडे के साथ टोक्यो पैरालम्पिक में मिश्रित युगल वर्ग में क्वालीफाई करने पर है।
उन्होंने कहा, विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतने के बाद अब मेरा ध्यान मिश्रित युगल में पैरालम्पिक में क्वालीफाई करने पर है।
मानषी ने एक पैराएथलीट के तौर पर अपने सबसे बड़े सपने पर भी बात की। उन्होंने कहा, एक पैरा एथलीट के तौर पर, मैं विश्व की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनना चाहती हूं और भारत के लिए पैरालम्पिक में पदक जीतना चाहती हूं। साथ ही मैं भारत में पैरा स्पोर्ट और अक्षमता को देखने के नजरिए को भी बदलना चाहती हूं।
Created On :   16 March 2020 6:30 PM IST