प्रत्येक वर्ष 345 महिलाओं को खोना पड़ता है गर्भाशय

प्रत्येक वर्ष 345 महिलाओं को खोना पड़ता है गर्भाशय

चंद्रकांत चावरे , नागपुर । कैंसर के कारण महिलाओं को न चाहते हुए भी अपना गर्भाशय खोना (निकलवाना) पड़ता है। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के कैंसर रोग विभाग में पीड़ित महिलाओं को ऐसी मजबूरी से गुजरना पड़ता है। यदि गर्भाशय नहीं िनकाला गया, तो उनकी जान खतरे में होती है, वहीं शरीर के दूसरे हिस्से में कैंसर का प्रमाण बढ़ने का खतरा बना रहता है। कैंसर रोग विभाग में हर साल कुल 2300 मरीज उपचार के लिए आते हैं। इनमें पुरुष व महिलाओं का समावेश होता है। इनमें 15 फीसदी यानि 345 महिला मरीज ऐसी होती है, जिनका गर्भाशय निकालना पड़ता है।

महिलाओं में 4 प्रकार के प्रमुख कैंसर होते हैं

महिला मरीजों में प्रमुख रूप से 4 प्रकार के कैंसर पाए जाते हैं। इनमें से ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल (सर्विक्स) कैंसर, ओवेरियन कैंसर और एंडोमेट्रियल कैंसर होता है। इसमें दूसरे और चौथे प्रकार का कैंसर होने पर महिलाओं का गर्भाशय निकालना जरूरी होता है। सर्वाइकल और एंडोमेट्रियल कैंसर गर्भाशय से संबंधित होता है। दोनों का मिलकर प्रमाण 15 फीसदी बताया गया है। यानि 2300 मरीजों में 15 फीसदी यानि 345 महिलाएं इस कैंसर से पीड़ित होती हैं। इन दो प्रकारों में सर्वाइकल का प्रमाण 11 फीसदी यानि 253 और एंडाेमेट्रियल का प्रमाण 4 फीसदी यानि 92 होता है। पीड़ितों में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की संख्या अधिक होती है।

ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के कारण होता है कैंसर

महिलाओं को ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के संक्रमण के कारण सर्वाइकल कैंसर होता है। एचपीवी, वायरस का एक समूह है, जिसके कारण लैंगिक क्षेत्र प्रभावित होता है। इससे कैंसर होता है। इसलिए इस वायरस को हाई रिस्क श्रेणी में रखा गया है। सर्वाइकल कैंसर गर्भाशय ग्रीवा में असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि होती है। गर्भाशय ग्रीवा महिला प्रजनन प्रणाली का हिस्सा है, जो गर्भ के निचले हिस्से में हाेती है। इस कैंसर को बच्चेदानी के कैंसर के नाम से भी जाना जाता है। इस कैंसर के फैलाव की गति को देखते हुए गर्भाशय निकाला जाता है। इस कैंसर के प्रारंभिक लक्षणाें में माहवारी के बीच ही रक्तस्त्राव, शारीरिक संबंध के बाद रक्तस्त्राव, रजोनिवृत्ति के बाद भी रक्तस्त्राव, गुप्तांग से बदबू आना, पेशाब में जलन या दर्द होना आदि शामिल है। प्रथम चरण में उपचार शुरू करने पर लाभ होता है, लेकिन डर व संकोच के चलते महिलाएं तीसरे और चौथे चरण में ही उपचार के लिए आती हैं। इसलिए ऑपरेशन कर गर्भाशय निकालना पड़ता है। अन्यथा कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों को प्रभावित करता है। मेडिकल में सालाना औसतन 253 महिलाओं के गर्भाशय निकालकर उन्हें नया जीवन दिया जाता है। इस बीमारी का प्रमुख कारण कम उम्र में शादी होना, एक से अधिक लोगों से शारीरिक संबंध बनाना, मासिक धर्म में स्वच्छता का ध्यान न रखना, गंदे कपड़ों का उपयोग करना, पति को बीमारी होना आदि कारणों से यह कैंसर होता है।

संकोच के चलते सामने नहीं आती हैं

कैंसर विभाग में सर्वाइकल और एंडोमेट्रियल कैंसर से पीड़ित महिलाएं संकोच व डर के कारण सामने नहीं आतीं हैं। जब बीमारी तीसरे व चौथे चरण में होती है, तब सामने आती हैं। उस समय उपचार के दौरान गर्भाशय निकालना मजबूरी होती है, अन्यथा जान जोखिम में बनी रहती है। यदि शुरुआती लक्षण में ही उपचार कराया गया, तो समस्या कम हो सकती है, इसलिए ऐसी बीमारी का संदेह हो, तो सबसे पहले विशेषज्ञ डॉक्टरों से जांच करवानी चाहिए, ताकि समय रहते उस बीमारी का उपचार किया जा सके। मेडिकल के कैंसर रोग विभाग में जांच से उपचार तक सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, इसका लाभ उठाना चाहिए। -डॉ. अशाेक कुमार दीवान, कैंसर रोग विभाग प्रमुख मेडिकल नागपुर

सालाना 92 एंडोमेट्रियल कैंसर पीड़ित
एंडोमेट्रियल कैंसर का प्रमाण सर्वाइकल कैंसर से कम होता है। मेडिकल में अाने वाले कुल मरीजों में इस कैंसर से ग्रस्त महिला मरीजों की संख्या 4 फीसदी यानि सालाना 92 होती है। यह कैंसर सीधे गर्भाशय में हाेता है। गर्भाशय की कोशिकाआें में एंडोमेट्रियम का निर्माण होता है। इस कैंसर से पीड़ितों में भी सर्वाइकल कैंसर जैसे मिलते-जुलते लक्षण पाए जाते हैं। इसके होने के पीछे हार्मोन्स का असंतुलन है। अंडाशय दो मुख्य हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन को तैयार करते हैं। इनमें असंतुलन होने पर एंडोमेट्रियम होता है। मासिक धर्म में अधिक साल निकलना, गर्भवती न होना, रजोनिवृत्ति के बाद वृद्धावस्था, मोटापे के कारण हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ना, स्तन कैंसर के लिए हार्मोन्स थेरपी लेने वाली महिलाएं, कोलन कैंसर सिंड्रोम की फैमिली हिस्ट्री आदि के चलते एंडोमेट्रियल कैंसर होने का खतरा होता है।

Created On :   19 May 2023 1:41 PM IST

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