हर साल करीब 500 नेत्रदान, 200 का ही उपयोग हो पाता है

चंद्रकांत चावरे , नागपुर । पिछले साल जिले में मरणोपरांत 309 लोगों ने नेत्रदान किया था। इनमें से 108 नेत्रों के कार्निया प्रत्यारोपित किए गए। जनसंख्या के हिसाब से जिले में कई कारणों के चलते नेत्रदान का प्रमाण कम है, जबकि एक अनुमान के अनुसार जिले में 3000 लोग रोशनी के इंतजार में हैं।
दुर्घटना में मृतकों की आंख हो जाती बेकार : दुर्घटना में मृत्यु होती है, तो नेत्रदान को लेकर जागरुकता का प्रमाण शून्य है। जब दुर्घटना होती है तो सबसे पहले पुलिस पंचनामा व कागजी कार्रवाई के नाम पर प्रक्रिया पूरी करने में लग जाती है। इसके बाद पोस्टमार्टम होने तक सारी प्रक्रिया में 6 से 8 घंटे तक समय बीत जाता है और 6 घंटे से अधिक समय बीत जाने पर दुर्घटनाग्रस्तों की आंख किसी को रोशनी देगी ही, इसकी संभावना कम हो जाती है। सूत्रों के अनुसार सालाना सरकारी व निजी अस्पतालों में 200 से अधिक मृत्यु के मामले दुर्घटना व अन्य घटनाओं से होते हैं।
पिछले 5 साल में ऐसी रही स्थिति
-2018-19 में सर्वाधिक 496 मरणोपरांत नेत्रदान हुआ है। इस साल 144 कार्निया प्रत्यारोपित किये गए। इसके बाद से यह संख्या घटती रही है।
-2019-20 में 491 नेत्रदान में से 164 कार्निया प्रत्यारोपित किए गए।
-2020-21 (कोराना काल) में नेत्रदान की संख्या सर्वाधिक कम 93 थी। इस साल 32 लोगों को रोशनी मिल पाई।
-2021-22 में 237 नेत्रदान में से 58 प्रत्यारोपण हुए।
-2022-23 में 309 नेत्रदान में से 108 प्रत्यारोपण हुए।
अलग-अलग कारणों से कार्निया अनुपयोगी
-किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के 6 घंटे के भीतर नेत्रदान होने पर ही कार्निया काम में आता है। इसे अधिकतर 7 दिन में प्रत्यारोपित किया जाता है। हालांकि 28 दिन तक रखा जा सकता है, लेेकिन कार्निया के टिश्यूज डेड होने लगते हैं।
-नेत्रदान से प्राप्त सभी कार्निया उपयोगी हो यह जरूरी नहीं होता। इसका पता जांच के बाद ही चलता है। बीमारियों व दूसरे कारणों के चलते कार्निया अनुपयोगी साबित होते हैं। इसमें विशेष रूप से संक्रमित बीमारी का समावेश है।
परिजन भी नहीं देते जानकारी
कोई व्यक्ति अपने जीते जी नेत्रदान का संकल्प लेता है, लेकिन मरणोपरांत अधिकतर मामलों में जानकारी नहीं दी जाती। एक फीसदी से भी कम लोग इसके प्रति जागरुकता दिखाते हैं। मृतक 60 साल से अधिक आयु का हो तो परिजन विचार करते हैं। इससे कम उम्र होने पर माहौल ही गमगीन होता है।
स्थिति जांच पर निर्भर
कार्निया प्रत्यारोपण की संख्या कम हाेेने के कई कारण हैं। प्रत्यारोपण के समय कॉर्निया में अधिकाधिक शेल्स का होना जरूरी होता है। नेत्रदान के समय पर इसका पता नहीं चलता। प्रक्रिया करने के बाद जांच में इसकी पुष्टि होती है। यहां नेत्रदान करने वालों की आयु 60 साल से अधिक होती है, इसलिए उनमें शेल्स कम होते हैं। ऐसे में उनके कार्निया प्रत्यारोपित नहीं किए जा सकते हैं। नागरिकों व संस्थाओं को आगे आकर जागरुकता दिखानी चाहिए। जिले में नेत्रदान की स्थिति समाधानकारक है। कोरोनाकाल में भी यहां नेत्रदान व कार्निया प्रत्यारोपण हो चुका है। यह जिले की उपलब्धि है।
- डॉ. संगीता इंदुरकर, कार्यक्रम अधिकारी नागपुर
पिछले 5 साल की स्थिति
वर्ष नेत्रदान प्रत्यारोपण प्रमाण
2018-19 496 144 29.03 फीसदी
2019-20 491 164 33.40 फीसदी
2020-21 93 32 34.40 फीसदी
2021-22 237 58 24.47 फीसदी
2022-23 309 108 34.95 फीसदी
Created On :   15 Feb 2023 11:18 AM IST