सदी के अंत तक समंदर में समा जाएंगे राज्य के कई तटीय इलाके
मोफीद खान, मुंबई । राज्य के समुद्री तटीय इलाकों के आसपास रहनेवाले समुदायों और बुनियादी ढांचे को आगामी वर्षों में खतरा हो सकता है। 21 वीं सदी के अंत तक समुद्र तल में 1.1 मीटर की वृद्धि से कई तटीय इलाके जल में समा जाएंगे। जलवायु परिवर्तन से इस तरह के खतरे का दावा संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था ‘आईपीसीसी' की ताजा सिंथेसिस रिपोर्ट में किया गया है।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र से जुड़े एक अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों को लेकर अपनी छठवीं रिपोर्ट हाल ही में जारी की है। इस रिपोर्ट में महाराष्ट्र सहित देशभर में जलवायु परिवर्तन से विभिन्न क्षेत्रों पर होनेवाले खतरे को इंगित किया गया है। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि महाराष्ट्र को बढ़ते तापमान से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
हीट वेव में वृद्धि होगी
रिपोर्ट में वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी रहने का अनुमान जताया गया है। इस तापमान वृद्धि का असर महाराष्ट्र पर भी पड़ेगा। उच्च तापमान से गर्मी में वृद्धि हो सकती है, जिससे राज्य में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
जल अकाल
आईपीसीसी की रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के कई हिस्सों में सूखे का खतरा बताया गया। महाराष्ट्र ने हाल के वर्षों में पानी की कमी का अनुभव किया है। महाराष्ट्र राज्य बारिश पर सबसे अधिक निर्भर है। बारिश में किसी भी प्रकार का परिवर्तन कृषि और घरेलू उपयोग के साथ-साथ औद्योगिक गतिविधियों के लिए पानी की उपलब्धता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।
बाढ़ का खतरा :
रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण कई क्षेत्रों में बाढ़ के बढ़ते खतरे की चेतावनी दी गई है। हालांकि महाराष्ट्र हाल के कुछ वर्षों में इस तरह के जलप्रलय का अनुभव कर चुका है। भविष्य में जलप्रलय राज्य में एक नियमित घटना के रूप में देखा जा रहा है।
कृषि हो सकती है प्रभावित
महाराष्ट्र भी प्रमुख कृषि प्रधान राज्यों में शामिल है। तापमान और बारिश के पैटर्न में परिवर्तन से फसल उत्पादन प्रमुख रूप से प्रभावित होंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ फसलों की वृद्धि में रुकावट आएगी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
आईपीसीसी की जलवायु परिवर्तन के छठवीं आकलन रिपोर्ट के लेखक डॉ. अंजल प्रकाश ने कहा कि रिपोर्ट पुष्टि करती है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हर क्षेत्र में बढ़ते रहेंगे। इनमें गर्मी से होने वाली मौतें और बीमारियां, तटीय क्षेत्रों और निचले इलाकों में बाढ़, जैव विविधता की हानि और कम खाद्य उत्पादन के प्रभाव शामिल हैं। डॉ. प्रकाश ने कहा कि यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करती है। अन्य क्षेत्रों की तरह, महाराष्ट्र को भी जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की जरूरत है। इसके प्रभावों को कम करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नई तकनीकों का विकास करना और चरम मौसम की घटनाओं से बचने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश करना शामिल है।
Created On :   24 March 2023 7:29 PM IST