बाघों का हमला : प्रत्यक्ष कामकाज के दौरान होगी सुनवाई

Hearing will be done during direct operation in tiger attack
बाघों का हमला : प्रत्यक्ष कामकाज के दौरान होगी सुनवाई
बाघों का हमला : प्रत्यक्ष कामकाज के दौरान होगी सुनवाई

डिजिटल डेस्क, नागपुर । बाघों के हमले में होने वाली इंसानी मृत्यु के मामले में वन विभाग और प्रशासन पर अनियमितता का आरोप लगे मामलों में एसआईटी जांच की मांग करती याचिका को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने केवल प्रत्यक्ष सुनवाई शुरू होने पर ही सुनने का फैसला लिया है। न्या. सुनील शुक्रे और न्या. श्रीराम मोडक की खंडपीठ ने याचिका में उठाए गए मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए कहा इस पर प्रत्यक्ष कामकाज के दौरान सुनवाई लेना ही सबके लिए सही होगा। इस निरीक्षण के साथ कोर्ट ने मामले की सुनवाई 6 सप्ताह बाद रखी है। यह याचिका पशुप्रेमी संगीता डोबरा ने बॉम्बे में दायर की है। 

याचिकाकर्ता के अनुसार विदर्भ में बाघों के हमले में मनुष्यों की मृत्यु के मामले लगातार सामने आते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश मामलों मंे यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं हो पाता कि मनुष्यों की मृत्यु बाघों के हमले से ही हुई है। बगैर प्रमाणित किए ही बाघों को या तो गोली मार दी जाती है या पकड़ कर चिड़ियाघर में कैद कर लिया जाता है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से मनुष्य वध पर एसआईटी जांच बैठाने और बाघ को आदमखोर घोषित करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करने का अादेश जारी करने की प्रार्थना की है।

यह है मामला : याचिकाकर्ता ने यवतमाल के पांढरकवड़ा में अवनि बाघिन के शिकार का संदर्भ देकर यह याचिका दायर की है। अवनि को आदमखोर घोषित करके गोली मार दी गई थी। इसके बाद भी विदर्भ में बाघ-मनुष्य संघर्ष के मामले बंद नहीं हुए। ऐसे में बाघों को गोली मारना या पकड़ कर कैद करना कोई हल नहीं हो सकता। संबंधित अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है कि सही फैसलों और मिटिगेश मेजर्स का इस्तेमाल कर मानव-जंगली पशु संघर्ष को नियंत्रित करें। इसके उलट अनेक बाघ-चीतों को आदमखोर घोषित कर चिड़ियाघर में बंद कर दिया जाता है और पीड़ितों के परिवार को मुआवजा जारी कर दिया जाता है। इंडियन वेटरनरी काउंसिल एक्ट की धाराओं के तहत बाघ को आदमखोर घोषित करने के लिए वैज्ञानिक आधार की जरूरत होती है, लेकिन नियमों का पालन नहीं हो रहा है।
 

Created On :   26 April 2021 5:19 AM GMT

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