स्कूली लिविंग सर्टिफिकेट को जन्मतिथि का सबूत नहीं माना जा सकता

School Living Certificate cannot be considered as proof of date of birth
स्कूली लिविंग सर्टिफिकेट को जन्मतिथि का सबूत नहीं माना जा सकता
हाईकोर्ट ने कहा स्कूली लिविंग सर्टिफिकेट को जन्मतिथि का सबूत नहीं माना जा सकता

डिजिटल डेस्क, मुंबई। स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट (एलसी) को जन्म तारीख का सबूत नहीं माना जा सकता है। जब तक की एलसी में उल्लेखित जन्म तारीख का कोई ठोस प्रमाण न हो। बांबे हाईकोर्ट ने नाबालिग के  साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी पाए गए एक आरोपी को बरी करते हुए यह बात स्पष्ट की है। निचली अदालत ने सितंबर 2019 को इस मामले में आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2) के तहत दोषी ठहराते  हुए दस साल के कारावास की सजा  सुनाई थी। इसके अलावा निचली अदालत ने आरोपी पाक्सो कानून के तहत भी दोषी ठहराया था। निचली अदालत के फैसले  खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की थी। 

न्यायमूर्ति अनूजा प्रभुदेसाई के  सामने आरोपी की अपील पर सुनवाई हुई। अभियोजन पक्ष के मुताबिक आरोपी पीड़िता को उसके चाचा के पुणे के घर से 8 अप्रैल 2015 को यह  कहकर ले गया था कि उसे उसकी मां ने बुलाया है।  लेकिन आरोपी पीड़िता को पुणे के घर में ले जाने के बजाय मुंबई ले आया। फिर  आरोपी पीड़िता को पंढरपुर ले गया। जहां उसने एक कमरे में पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया। अभियोजन पक्ष के मुताबित जब यह  घटना घटी तो पीड़िता की उम्र 14 साल  की और वह कक्षा नवीं में पढ़ती थी। पीड़िता की स्कूल की लिविंग सर्टिफिकेट में उसकी जन्मतारीख 4 फरवरी 2001 लिखी हुई है। इस लिहाजा  से घटना के समय वह नाबालिग थी।  वहीं आरोपी के वकील ने दावा किया कि घटना के समय पीड़िता की उम्र 22 साल थी। इसके अलावा अभियोजन पक्ष ने उस व्यक्ति से जिरह नहीं की  है  जिसने स्कूल की एलसी में पीड़िता की जन्मतारीख को लिखवाया था। इसलिए एलसी में लिखी जन्मतारीख का सबूत के तौर  पर कोई मूल्य नहीं  है। पीड़िता मेरे मुवक्किल  के साथ अपनी मर्जी से गई थी। यदि ऐसा नहीं होता तो पीड़िता कहीं न कहीं शोर मचाती लेकिन पीड़िता ने ऐसा कुछ नहीं किया। जो उसके विरोध को व्यक्त करे।

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को  सुनने के बाद  न्यायमूर्ति ने कहा  कि इसमें कोई  दो राय नहीं  है कि पाक्सो कानून बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने व उनके हितों को सुरक्षित करने  के लिए लाया गया  है।  लेकिन इस मामले में अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि  है कि पीड़िता घटना के समय बच्ची थी।  इसलिए पाक्सो कानून के तहत आरोपी को सुनाई गई सजा  को कायम नहीं रखा जा सकता  है। न्यायमूर्ति ने स्पष्ट किया  कि स्कूल एलसी में लिखी तारीख को जन्म तारीख का प्रमाण नहीं बनाया जा सकता है जब तक की  एसली में लिखी जन्म तारीख का कोई प्रमाण न हो।  इसलिए इस मामले में स्कूल एलसी का सबूत को तौर पर कोई मोल नहीं है। जहां तक बात  दुष्कर्म के आरोप की है तो पीड़िता आरोपी के साथ जहां-जहां  गई वहां पर उसने कोई शोर नहीं मचाया और न ही विरोध जताया। यह दर्शाता है कि  पीड़िता आरोपी के साथ  अपनी मर्जी के  साथ गई थी और दोनों की सहमति  से संबंध बने थे। इसलिए आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2) के तहत  सुनाई गई  सजा  को  रद्द किया जाता है और आरोपी को बरी  किया जाता  है। 
 

Created On :   11 Sept 2021 6:22 PM IST

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