नागपुर: अजीब दास्तां है ये.... कभी सतरंजी चर्चा में थी, अब कोरोना पार्ट-1

Strange Tales, Once Satranjee was in discussion, now Corona Part-1
नागपुर: अजीब दास्तां है ये.... कभी सतरंजी चर्चा में थी, अब कोरोना पार्ट-1
नागपुर: अजीब दास्तां है ये.... कभी सतरंजी चर्चा में थी, अब कोरोना पार्ट-1

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कोरोना वायरस (कोविड-19) ने देश के कई शहरों में कहर बरपा रखा है। इन शहरों के कुछ इलाके कोरोना के कारण सुर्खियों में हैं। इसमें नागपुर भी शामिल है। कभी उपराजधानी के सतरंजीपुरा की सतरंजी (दरी या चादर) की चर्चा होती थी लेकिन, आज कोरोना को लेकर चर्चा में है। इस क्षेत्र में कोरोना के सर्वाधिक मरीज मिले हैं। यह क्षेत्र संक्रमण से फैलने वाली महामारी के लिए पहले भी चर्चा में आया था। 1902 में प्लेग ने नागपुर शहर में पांव पसारे थे। उससे कुछ साल पहले सतरंजीपुरा में एक दरगाह का निर्माण हुआ था।

बगदादी शाह रहमतुल्लाह अलैह के नाम से यह दरगाह आज भी है। जिस समय प्लेग की बीमारी फैली थी, उस समय बगदादी शाह जिंदा थे। ऐसा माना जाता है कि, उन्होंने इस महामारी से लोगों को बचाने के लिए प्लेग को अपने सिर पर ले लिया था, इसलिए सतरंजीपुरा प्लेग की चपेट में नहीं आ सका। इस मान्यता के चलते दरगाह का महत्व बढ़ा और समय के साथ यह आस्था का केंद्र बन गया। इसे सतरंजीपुरा की विरासत और विशेषता के रूप में देखा जाता है। अब कोराेना वायरस के चलते फैली महामारी को अपने सिर लेने वाला कोई नहीं है। हाथों से होती थी बुनाई सतरंजीपुरा बस्ती 150 साल पुरानी बताई जाती है। उस समय यह हिंदू आबादी से भरा क्षेत्र था। यहां के निवासी हाथों से सतरंजी की बुनाई करते थे। यह सतरंजी पुराने कपड़ों की चिंदियों से बुनी जाती थी। रंगों के हिसाब से एक से बढ़कर एक सतरंजियां बनती थीं। बाद में बस्तियों में घूमकर या साप्ताहिक बाजारों में जाकर उसकी बिक्री की जाती थी। इस कारण बस्ती का नाम सतरंजीपुरा पड़ गया।

बताया जाता है कि, उस समय यहां के 60 से अधिक मकानों में पुरुष और महिलाएं सतरंजी बुनते थे। समय के साथ यहां स्थायी हो चुके कुछ नए परिवारों ने भी सतरंजी बुनने का काम शुरू कर दिया था। इसके अलावा गद्दी-तकिया बनाए जाते थे लेकिन, वर्तमान में यह सारे काम बंद हो चुके हैं। समय के साथ हाथों से बुनी जाने वाली सतरंजी कारागीरों के हाथों को मशीनों से बुनी सतरंजियों ने मात दे दी। इसलिए यह काम बंद करना उनकी मजबूरी हो गई। 50 साल पहले सतरंजी बुनने का काम बंद हो गया है। वर्तमान में सभी अलग-अलग काम कर अपना गुजारा करते हैं। बस्तियों का विस्तार और विलगीकरण जब यहां दरगाह बना तो दो-तीन परिवारों ने खाली जमीन खरीदी और यहां बस गए। इसके बाद धीरे-धीरे सतरंजीपुरा की खाली जमीन पर बस्ती आबाद होने लगी। इस दौरान यहां के पुराने परिवारों ने अपने मकान बेचकर अन्यत्र जाकर बसना शुरू किया। पहले सतरंजीपुरा काफी बड़ा क्षेत्र था। इसके अंतर्गत आने वाली बस्तियों में तेलीपुरा, किराड़ मोहल्ला, सुभाष पुतला, तेलंगीपुरा, बौद्धपुरा, परवारपुरा, माता मंदिर परिसर, माल धक्का परिसर और मुस्लिमपुरा का समावेश था। समय के साथ बस्तियों का विस्तार हुआ तो इन बस्तियों का सतरंजीपुरा क्षेत्र से विलगीकरण हुआ।

कुछ बस्तियों के नाम तक खत्म हो गए। अब रहा सतरंजीपुरा तो यह क्षेत्र सिमटकर छोटा हो गया। यहां दो मस्जिदें हैं। एक को सतरंजीपुरा बड़ी मस्जिद और दूसरी को सतरंजीपुरा छोटी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। यहां 50 साल पुरानी बगदादी स्कूल थी, जो अब अन्यत्र स्थानांतरित कर दी गई है। इसके अलावा सर सैयद उर्दू प्रायमरी स्कूल है। इस निजी स्कूल में पहली से चौथी कक्षा तक शिक्षा दी जाती है। सतरंजीपुरा में ही राज्य सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय द्वारा संचालित आदिवासी विद्यार्थियों के लिए छात्रावास बनाया गया है। 50 गलियों से घिरा है क्षेत्र सतरंजीपुरा अब घनी आबादीवाला क्षेत्र है। इसके भीतर करीब 50 गलियां हैं, जो एक-दूसरे रास्तों को जोड़ती हैं। कुछ गलियां तीन फीट की तो कुछ पांच और दस फीट की है। कुछ गलियों से दोपहिया वाहन तक नहीं जा सकते। मारवाड़ी चौक से सतरंजीपुरा होते हुए जो मेन रोड है, वह सीधे सुनील होटल के लिए निकलता है। यही एक मुख्य मार्ग है। इसके दोनों ओर सतरंजीपुरा बसा है।

अनुमान व्यक्त किया गया है कि, सतरंजीपुरा में 600 मकान हैं। उनमें करीब 3 हजार की आबादी रहती है। मूलभूत सुविधा के नाम पर यहां बिजली, पानी, पक्के रास्ते आदि हैं। पहले गली-गली में झोपड़ियां और मिट्टी-कवेलू के पुराने मकान थे। अब यहां पक्की इमारतें बन चुकी हैं। मुख्य मार्ग पर दुकानें बन चुकी है। यहां हर तरह की सामग्री आसानी से मिल जाती है। मनपा के सतरंजीपुरा जोन अंतर्गत आनेवाला यह क्षेत्र स्लम एरिया की सूची में शामिल है। यहां की 40 फीसदी आबादी युवा है। शिक्षा की बात करें तो 15 फीसदी लोग प्रायमरी शिक्षा ले चुके हैं। 10 फीसदी लोग माध्यमिक और 5 फीसदी युवाओं ने स्नातक व स्नातकोत्तर की शिक्षा ली है। यहां का शोएब अहमद एमबीए कर चुका है। मो. रिजवी विदर्भ स्तरीय रणजी चैंपियनशिप खेल चुका है। इसके अलावा अन्य किसी उपलब्धि की जानकारी नहीं मिल पाई।

कम शिक्षित व अशिक्षित लोग फल, सब्जी, अलमारी, कूलर, कबाड़ व अन्य काम करके अपनी जीविका चलाते हैं। सतरंजीपुरा के मुख्य मार्ग पर रविवार को कबाड़ बाजार सजता है। यहां पुरानी सामग्री मिलती है। अब तक 1300 लोग क्वारंटाइन हाल ही में यहां के 1200 लोगों को क्वारंटाइन किया गया है। अभी तक इन्हें संक्रमित नहीं पाया गया है। बस्ती संक्रमित न हो इसलिए प्रशासन ने यह कदम उठाया है। इन लोगों की जांच की जाएगी। इससे पहले यहां के 100 लोगों को क्वारंटाइन किया गया था। प्रशासन का दावा है कि कुछ लोगों ने अपील के बावजूद जानकारी छिपाई है। इसलिए यह निर्णय लिया गया है, ताकि सभी की जांच कर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

Created On :   1 May 2020 6:06 AM GMT

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