17 गोलियों से शरीर छलनी हो गया, फिर भी अकेले दुश्मनों को खदेडक़र टाइगर हिल में तिरंगा फहराया - सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित योगेंद्र सिंह यादव ने सुनाए भारतीय सेना की वीरता के संस्मरण

- दुश्मन ने मरा समझकर छोड़ दिया था:
डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। 22 दिन चले कारिगल युद्ध में मैंने महसूस किया कि देश और देशवासियों के लिए एक सैनिक कैसे पल-पल अपनी सांसों, लम्हों और अपने लहू की बूंदों से सींचता है। यह कहना है कारगिल युद्ध में अदम्य साहस का प्रदर्शन कर दुश्मन की 17 गोलियों से छलनी होने के बावजूद टाइगर हिल में तिरंगा फहराने वाले परमवीर चक्र से सम्मानित जवान योगेंद्र यादव का। छिंदवाड़ा के बिछुआ में एक कार्यक्रम में शामिल होने आए परमवीर श्री यादव ने दैनिक भास्कर से खास चर्चा में कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की शौर्य गाथा सुनाई।
दुश्मन ने मरा समझकर छोड़ दिया था:
योंगेद्र सिंह यादव के मुताबिक पहले वे उन 15 जवानों की टीम में शामिल थे, जिन्हें कारगिल की पहाड़ी पर युद्ध लड़ रहे सैनिकों के लिए अनाज व गोला बारूद ले जाना था। 22 दिन बिना रुके वे काम कर रहे थे। सुबह साढ़े 7 बजे निकलकर रात ढाई बजे पहुंचते थे। इस बीच पता नहीं था कि दुश्मन का कौन सा गोला हमें छलनी कर देगा। बाद द्रास सेक्टर से टाइगर हिल में पहुंचने के लिए २१ जवानों की घातक प्लाटून में वे शामिल किए गए। माइनस 20 डिग्री तापमान में 90 डिग्री की पहाड़ी चढक़र उस रास्ते से रस्सी के बल चढ़ रहे थे जहां पाकिस्तानी फौज सपने में भी अंदाजा न लगा सकी। दोनों ओर दुश्मनों के बंकर थे। दिन में चट्टानों के बीच पड़े रहते और रात में चढ़ाई करते। दो रात और एक दिन चढ़ाई की। इसी बीच रात में दुश्मन फौज ने फायरिंग शुरू कर दी थी। रास्ता कट गया और केवल 7 जवान ही टाइगर हिल के टॉप पर पहुंच पाए। वहां पहुंचकर उन्हीं के बंकरों से 5 घंटे तक युद्ध लड़ा। एक-एक कर मैंने अपने साथियों को शहीद होते देखा। दुश्मन फौज ने तीन बार वीरगति को प्राप्त हमारे सैनिकों और मुझे गोलियां मारी। 17 गोलियां व ग्रेनेड के कई टुकड़े मुझे लगे। फिर भी मानसिंक संतुलन नहीं खोया। दुश्मनों ने मरा समझकर छोड़ दिया था। कहते हैं जाको राखे साईंया मार सके न कोय। बाद में गे्रनाइट से दुश्मनों पर हमला किया। उनके 40 से 45 सैनिक मौजूद थे। उन्हीं की राइफल से 5 को मार गिराया। उनमें खलबली मच गई, कहने लगे दूसरी टुकड़ी आ गई। वे भाग निकले। तभी हमारे सैनिक पहुंचे और टाइगर हिल में तिरंगा फहराया।
शादी की खुशियों पर भारी था जज्बा:
वर्ष 1999 में ही मेरा विवाह हुआ था और चंद दिनों बाद ही कारगिल युद्ध शुरू हो गया। शादी को लेकर खुशियां तो थी लेकिन जज्बा उन खुशियों पर भारी पड़ गया। कारगिल युद्ध का हिस्सा बनने की बारी आई तो लगा कि मेरा वह सपना पूरा हो गया जिसे मैं बचपन से जीना चाहता था। वह पल मेरे सामने था। पिता ने देश के लिए दो युद्ध लड़े। भाई भी सेना में है। मैं बचपन से ही सपना देखता था कि हाथ में रायफल लेकर दुश्मन को बर्बाद कर दूं। मैं जो पल जीना चाहता था वह पल कारगिल युद्ध के जरिए मुझे मिला।
अग्निपथ योजना पर कहा- कम समय में लगाव नहीं हो सकता:
योजना कोई भी हो उसके दूरगामी परिणाम होते हैं। सरकार किस तरह से उसका उपयोग करती है वह उस पर निर्भर होता है। युद्ध में हथियारों और टेक्नोलॉजी से दुश्मन को बर्बाद किया जा सकता है। जवान युद्ध तब लड़ता है जब उसका आत्मिक लगाव उस पलटन के साथ होता है। कुछ समय में लगाव नहीं होता। जब लगाव नहीं होगा तो आप उस घर के लिए कितना अफर्ट लगाओगे। जब युद्ध लड़ा जाता है तो मां जैसी भावना होती है। घर में आग लगती है तो मां सोचती नहीं और कूद जाती है बच्चे को बचाने के लिए।
युवा कोई भी काम करें राष्ट्र को सामने रख करें:
युवा राष्ट्र की ताकत हैं। जब-जब युवा शक्ति आगे बढ़ी है तो राष्ट्र की दशा और दिशा दोनों बदलकर रख दी है। बशर्ते कि उनको सही गाइडेंस मिले तो वह शक्ति राष्ट्र निर्माण में लग सकती है। मेरा उद्देश्य यही है। मैं लगा हुआ हूं। नौजवान आवेग में होता है, उसे समझ नहीं आता। बहुत सारी पॉलिटिकल पार्टियां होती हैं जो यूथ को वोट के लिए उपयोग करती हैं। मैं युवाओं से कहूंगा कि कोई भी काम करें राष्ट्र को सामने रखकर करें।
Created On :   4 Feb 2023 10:40 PM IST