विधानसभा में बिछी है शहडोल की कालीन, हस्तशिल्प केंद्र में कम हुए प्रशिक्षण के अवसर

Training opportunities reduced in the handicrafts center of mp
विधानसभा में बिछी है शहडोल की कालीन, हस्तशिल्प केंद्र में कम हुए प्रशिक्षण के अवसर
विधानसभा में बिछी है शहडोल की कालीन, हस्तशिल्प केंद्र में कम हुए प्रशिक्षण के अवसर

डिजिटल डेस्क शहडोल । जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर दूर छतवई गांव स्थित हस्तशिल्प केंद्र की ख्याति एक समय पूरे प्रदेश में थी। यहां न सिर्फ कॉलीन के कारीगर तैयार किए जाते थे, बल्कि हाथों से कॉलीन और कारपेट भी बनाए जाते थे। यहां की बनी कारपेट आज भी विधानसभा की खूबसूरती को चार चांद लगा रही है, लेकिन मशीनी युग ने हाथों का काम बंद कर दिया। धीरे-धीरे प्रशिक्षण कम होते गए और अंतत: डिमांड कम होने की वजह से विभाग ने यहां का क्लस्टर ही बदल दिया। अब यहां काष्ट शिल्पी का प्रशिक्षण दिया जाता है। हालांकि बजट के अभाव में प्रशिक्षण के अवसर काफी कम हो गए हैं।
कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग की ओर से 1888-89 में शहडोल में संत रविदास हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम की शुरुआत की गई थी। उद्देश्य एक ही था, आदिवासी बाहुल्य इलाके को हुनरमंद बनाना। पहले यहां बांस कला का प्रशिक्षण दिया जाता था। 1990 में कॉलीन और कारपेट बनाने की ट्रेनिंग दी जाने लगी। इसे और व्यवस्थित करने और अधिक से अधिक जनजातीय लोगों को इसका लाभ पहुंचाने के लिए 1998-99 में सेंटर को छतवई शिफ्ट कर दिया गया। यहां से अब तक 2000 से अधिक लोग प्रशिक्षित हो चुके हैं। गोहपारू के पास का तो एक पूरा गांव ही कॉलीन बनाने में पारंगत है। आज भी कच्चा माल देकर डिजाइन बताने पर ही वैसे का वैसा कॉलीन वे लोग तैयार कर देते हैं।
पूरी तरह बंद हो गया था प्रशिक्षण
करीब तीन साल पहले सेंटर में प्रशिक्षण लगभग समाप्त हो गया था। तीन-चार से एक भी प्रशिक्षण नहीं हुआ था। इसके बाद स्थानीय विधायक प्रमिला सिंह के प्रयास से 25 लोगों के लिए 25 दिन के काष्ठ शिल्प प्रशिक्षण की कार्यशाला मिली थी। मार्च में एक और कार्यशाला शुरू होने वाली है। विकास आयुक्त हस्त शिल्प केंद्र केंद्र सरकार नई दिल्ली के सहयोग से 30 हितग्राहियों की 5 माह की कार्यशाला होने वाली है। यह कार्यशाला भी काष्ठ शिल्प की होगी।
स्थानीय बजट हो गया बंद
पहले यहां स्थानीय स्तर पर ही पर्याप्त बजट मिल जाता था, निरंतर प्रशिक्षण का कार्यक्रम चलता रहता था। जिला ग्रामीण विकास अभिकरण की ट्राइसम योजना चलती थी। इसमें प्रशिक्षार्थियों को 100 प्रतिमाह ग्रामीण अभिकरण देता था, जबकि 250 रुपए की प्रोत्साहन राशि विभाग की ओर से दी जाती थी। इसके अलावा आदिवासी विकास विभाग, जिला पंचायत, बैगा विकास अभिकरण आदि से भी प्रशिक्षण का कार्य मिलता था।
यह है प्रशिक्षण की प्रक्रिया
प्रशिक्षण के लिए प्रतिभागियों की उम्र 18 से 35 वर्ष होनी जरूरी है। यहां तीन तरह की कार्यशाला होती है। 41 संख्या वाली कार्यशाला में सिर्फ जनजातीय प्रतिभागी ही शामिल हो सकते हैं। जबकि 64 संख्या वाली कार्यशाल सिर्फ हरिजन (एससी) के लिए होती है। इसके अलावा 56 प्रतिभागियों वाली कार्यशाला में सभी वर्ग के लोग शामिल हो सकते हैं। प्रशिक्षण के लिए केंद्र में दो प्रशिक्षक हैं। इसके अलावा कुछ प्रशिक्षक संविदा पर भी रखे जाते हैं।
इसके लिए प्रयास किए जाएंगे
 मेरी जानकारी में यह मामला नहीं था। मैं कोशिश करूंगा कि कॉलीन का प्रशिक्षण फिर से शुरू किया जा सके। इसके अलावा काष्ट शिल्पी की कार्यशाला भी नियमित चलती रहे, इसके प्रयास किए जाएंगे। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिल सके।
रजनीश श्रीवास्तव, कमिश्नर शहडोल

Created On :   19 Feb 2018 8:47 AM GMT

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