लोकसभा चुनाव 2024: बिहार में सबसे कम वोटिंग प्रतिशत, जानिए आखिर क्यों गिरा बिहार का वोटिंग परसेंटेज और किस दल को होगा फायदा?

बिहार में सबसे कम वोटिंग प्रतिशत, जानिए आखिर क्यों गिरा बिहार का वोटिंग परसेंटेज और किस दल को होगा फायदा?
  • बिहार में पहले चरण कम रहा वोटिंग परसेंटेज
  • पहले चरण में हुए थे चार सीटों पर चुनाव
  • करीब 48.23 रहा मतदान प्रतिशत

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण संपन्न हो गया है। पहले चरण में जहां सबसे ज्यादा त्रिपुरा में 80.35 फीसदी मतदान हुआ। वहीं, बिहार में 48.88 फीसदी के साथ देश में सबसे कम मतदान हुआ। बता दें कि, पहले चरण में बिहार के गया, औरंगाबाद, नवादा और जुमई लोकसभा सीट पर चुनाव हुआ। हालांकि, वोटिंग के पहले दिन भीषण गर्मी थी। शायद इसी कारण बिहार में वोटिंग कम हई। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि बिहार में सबसे कम वोटिंग होने की बड़ी वजह क्या है?

5 फीसदी गिरा बिहार का वोटिंग परसेंटेज

निर्वाचन आयोग के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के पहले चरण में शाम 6 बजे तक बिहार में 48.23 फीसदी मतदान हुआ। जिसमें बिहार की औरंगाबाद सीट में 51.56 फीसदी के साथ सबसे अधिक मतदान हुआ। जबकि, नवादा सीट पर 43.79 फीसदी के साथ सबसे कम मतदान हुआ। इसके अलावा गया सीट का 49.51 फीसदी और जुमई सीट का 51.02 फीसदी वोटिंग परसेंटेज रहा। बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एचआर श्रीनिवास के मुताबिक, पिछले चुनाव की तुलना में बिहार में इस बार पांच फीसदी कम मतदान हुआ है।

क्यों गिरा वोटिंग परसेंटेज?

बिहार में सबसे कम मतदान प्रतिशत होने की सबसे बड़ी वजह भीषण गर्मी है। बता दें कि, पहले चरण में अत्याधिक गर्मी होने के कारण बहुत लोग मतदान केंद्रों तक नहीं पहुंच सके। मतदान केंद्रों पर शेड, पेयजल आदि की पर्याप्त व्यवस्था का न होना भी वोटिंग प्रतिशत में कमी होने की वजह हो सकती है। खासतौर से गांवो में लोगों के घरों से मतदान केंद्र की अधिक दूरी भी कम वोटिंग का कारण हो सकती है। साथ ही, अलग-अलग जिलों से लोगों का पलायन भी हुआ है।

कम वोटिंग परसेंटेज से किसे होगा फायदा?

बिहार में चार सीटों पर कम मतदान हुआ है। इस पर सत्तापक्ष और विपक्ष अपने-अपने दावे कर रहे हैं। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि वोटिंग इंडिया गठबंधन के पक्ष में हुई है। वहीं, बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने कहा है कि वोटिंग एनडीए गठबंधन के पक्ष में हुई है। हालांकि, इस पर राजनीतिक जानकारों का मत अलग है। उनका कहना है कि वोटिंग परसेंटेज से यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि वोटिंग किसके पक्ष में हुई है? यह तो 4 जून को पता लगेगा कि किसके पक्ष में वोटिंग हुई है।

कम वोटिंग परसेंट के क्या हैं मायने?

राजनीतिक जानकार कम वोटिंग परसेंटेज पर तर्क देते हुए कहते हैं कि साल 2022 में गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए थे। जिसमें कम वोटिंग परसेंटेज रहा था। लेकिन, नतीजे बीजेपी सरकार के पक्ष में रहे थे। इस चुनाव में बीजेपी को 182 विधानसभा सीटों वाले गुजरात में बीजेपी 99 सीटें से बढ़कर 156 सीटों पर पहुंच गई थीं। इस दौरान बीजेपी को 57 सीटों का फायदा हुआ था। तब राज्य में करीब 4 फीसदी कम वोटिंग हुई थी और सूबे में वोटिंग परसेटेंज 60 फीसदी के आसपास रहा था। आमतौर पर यही माना जाता है कि वोटिंग परसेंट कम होना यानी सत्ताधारी पार्टी को ही फायदा होना। इससे उलट अगर वोटिंग परसेंट बढ़ता है तो उसे सत्ता के खिलाफ नाराजगी मानकर वोटर्स का वोट करना माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ चुनाव के दौरान ये ट्रेंड बदला हुई भी दिखाई दिया है। यही वजह है कि अब वोट परसेंट घटने के बाद चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं होता।

Created On :   20 April 2024 12:58 PM GMT

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