एक ऐसा रेस्टाेरेंट, जहां कोई रसोइया और वेटर नहीं, पक्षी पेटभर चुगते हैं दाना

एक ऐसा रेस्टाेरेंट, जहां कोई रसोइया और वेटर नहीं, पक्षी पेटभर चुगते हैं दाना

Tejinder Singh
Update: 2018-03-05 14:12 GMT
एक ऐसा रेस्टाेरेंट, जहां कोई रसोइया और वेटर नहीं, पक्षी पेटभर चुगते हैं दाना

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नीरज दुबे। क्या आपने कोई ऐसा रेस्तरां देखा है, जो घने और हरे पेड़ों के बीच बना हो। यदी नहीं तो इस रेस्तरां को देखिए, जहां रोजाना बड़े पैमाने पर पेट की भूख शांत होती है। खास बात है कि इस रेस्तरां में न तो वेटर है, और न ही रसोइया। उपराजधानी के इस रेस्तरां में सकून मिलेगा। लेकिन यह रेस्तरां इंसानों को नहीं, बल्कि पक्षियों को खाना खिलाता है। जी हां हम बात कर रहे हैं, बर्ड रेस्टाेरेंट की। सदर स्थित राजभवन के लंबे-चौड़े क्षेत्र के मध्य भाग में यह अनोखा रेस्टाेरेंट बना हुआ है। पिछले कई सालों से मोर, तोते, गिलहरी व अन्य पक्षियों की यही भीड़ लगती है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस रेस्टाेरेंट का संचालन पिछले कई सालों से दान में मिलने वाले अनाज से हो रहा है। इसके चलते राजभवन परिसर में रहने वाले 165 प्रजाति के पक्षियों को साल भर अन्न और पानी मिलता है। पक्षियों को खाद्यान्न सुविधा के मिलने से जैव विविधता पार्क में सालभर पक्षियों का कलरव सुनाई देता रहता है।

पक्षियों को परेशान होकर भटकना नहीं पड़ता
बर्ड रेस्टाेरेंट में इन पक्षियों को अन्न के साथ ही पानी भी मिलता है। इससे पक्षियों को परेशान होकर भटकना नहीं पड़ता है। राजभवन के पारिवारिक प्रबंधक रमेश यावले ने कुछ साल पहले देश के पहले और अनूठे बर्ड रेस्टाेरेंट की संकल्पना को साकार किया था। शुरुआत में यहां नाममात्र के पक्षी पहुंचे लेकिन करीब 15 दिनों के बाद पक्षियों ने हिम्मत जुटाई। इस रेस्टाेरेंट को स्थापित और संचालन करने में कोई भी सरकारी सहायता अथवा सहयोग नहीं लिया जाता है। शहर के पर्यावरण और पक्षी प्रेमी नागरिक अपनी ओर से अन्न मुहैया कराते हैं। रेस्टेरेंट के भीतर अलग-अलग चबूतरों पर जमा अन्न को चुगने के लिए रोजाना सुबह और शाम बड़ी संख्या में पक्षी जमा होते हैं। यहां गौरय्या, जंगली मोर, कबूतर, तोते, गिलहरी आदि का जमावड़ा लगता है।

 

 

गिलहरी ने किया शुभारंभ
मार्च 2011 में रेस्टाेरेंट को शुरू किया गया लेकिन करीब 8 दिनों तक पक्षियों ने आकर दाना चुगने की हिम्मत नहीं जुटाई। राजभवन के कर्मचारी भी पूरी मुश्तैदी से परिसर की निगरानी करते थे। इस बीच प्रबंध रमेश यावले को पक्षियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति का ध्यान आया। इसके बाद रेस्टाेरेंट से कर्मचारियों को दूरी बनाए रखने के सख्त नियम बना दिए गए। करीब 9वें दिन एक गिलहरी ने रेस्टाेरेंट में पहुंचकर दाना चुगने की हिम्मत दिखाई। गिलहरी को जाते देखकर जंगली कबूतर और 7 कबूतर भी पहुंच गए।

इसके बाद पक्षियों का तांता ही लग गया। अब रोजाना कई जोड़े मोर, गिलहरी, जंगली कबूतर, तोते पहुंच जाते हैं। पक्षियों के लिए प्रबंधक रमेश यावले खुद के खर्च से अनाज को लाते रहे। हालांकि पिछले तीन सालों से पत्रकार रमेश मारूलकर, सेवादल महाविद्यालय के प्राचार्य प्रवीण चरडे भी अनाज मुहैया करा रहे हैं।

निजी सहायता से साकार हुआ रेस्टाेरेंट
राजभवन परिसर में जैवविविधता पार्क के निर्माण के बाद पक्षियों की चहल-पहल बढ़ गई थी, लेकिन गर्मी के दिनों में पक्षियों के दाने और पानी की समस्या खड़ी होने लगी थी। इस संबंध में राजभवन प्रबंधक रमेश यावले ने देश भर के अलग-अलग स्थानों के जैवविविधता पार्क से जानकारी ली, लेकिन किसी भी जगह से पक्षियों के खाद्यान्न को लेकर संतोषजनक समाधान नहीं मिला। इस बीच रमेश यावले के करीबी मित्र प्रवीण ठाकरे ने इंसानों की भांति बर्ड रेस्टोरेंट स्थापित करने का सुझाव दिया। कई दिनों तक अलग-अलग पहलुओं पर अध्ययन के बाद बर्ड रेस्टाेरेंट को स्थापित करने का रमेश यावले ने फैसला लिया। हालांकि पहली बार के प्रयोग के लिए सहायता निधि की समस्या खड़ी होने लगी थी। समाजसेवी और गुप्ता कन्स्ट्रक्शन के संचालक संदीप गुप्ता ने पर्यावरण सुरक्षा के मद्देनजर सहायता का प्रस्ताव रखा। इसके बाद करीब 10000 वर्ग मीटर क्षेत्र में 85,000 रुपए की लागत से मार्च 2011 में अनूठा बर्ड रेस्टाेरेंट अस्तित्व में आया।

Similar News