कभी सोचा है कि आखिर क्यूं छूते हैं बुजुर्गों के पैर

कभी सोचा है कि आखिर क्यूं छूते हैं बुजुर्गों के पैर

Bhaskar Hindi
Update: 2018-05-25 07:17 GMT
कभी सोचा है कि आखिर क्यूं छूते हैं बुजुर्गों के पैर

 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली।  भारतीय परंपराओं के अनुसार, हमारे बुजुर्गों के चरणों को छूना एक पुरानी परंपरा है जिसे सम्मान देने के रूप में माना जाता है। लेकिन ऐसे कई लोग हैं जो इस परंपरा का विरोध करते हैं और तर्क देते हैं कि बुजुर्गों के आदर सम्मान के लिए कोई और तरीका भी ढूंढ सकते हैं। आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्या कारण है, जिस वजह से बोला जाता है बड़े बुजुर्गों के पैर छूने के लिए।

 

 

इस वजह से लेते हैं हम आशीर्वाद

मानव शरीर के पैर एक इमारत के आधार की तरह होते हैं क्योंकि व्यक्ति का पूरा भार उसके पैरों पर ही होता है। जब हम झुकते हैं, हम अहंकार खो देते हैं और अपने बुजुर्गों की उम्र, उनके ज्ञान के प्रति सम्मान, उनके द्वारा प्राप्त उपलब्धियों और उनके द्वारा प्राप्त किए गए अनुभवों को सम्मान देते हैं। बदले में, वे हमें हमारी सुखमय जीवन के लिए आशीर्वाद देते हैं।

 

 

ये बताया गया है अथर्ववेद में

अथर्ववेद के अनुसार, हिंदू धर्म के वैदिक ग्रंथों में लिखा गया है कि जब हम बुजुर्गों के चरणों को छूते हैं, तो हम वास्तव में अगली पीढ़ी को अपना ज्ञान और सबक देने के लिए उनकी अनुमति लेते हैं।

 

 

इस तरीके से लेना चाहिए आशीर्वाद

यदि प्राचीन पहलू से देखा जाए तो हमारे बुजुर्ग के पैरों को छूने का सबसे अच्छा तरीका है, पहले उनके सामने झुकना फिर दोनो हाथों से उनके पैरों को छूना और इस तरह से छूना चाहिए कि दाएं हाथ दाहिने पैर को छू रहे हो और बाएं हाथ बाएं पैर को छूते हों। कुछ लोग ये भी मानते हैं कि बाएं हाथ को दाहिने पैर को छूना चाहिए और दाएं हाथ को बाएं पैर को छूना चाहिए।

 

 

चरणों से निकलती है सकारात्मक ऊर्जा 

जब हम अपने बुजुर्गों के चरणों को छूते हैं, तो उनके पैरों से एक अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा निकलती है और ये ऊर्जा हमारी जिंदगी में खुशहाली लेकर आती है। इसके बाद जब व्यक्ति आशीर्वाद देने के लिए अपना हाथ बढ़ाता है, तो सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद का एक और सर्किट बनता है।

 

 

इस कारण छूते हैं बुजुर्गों के पैर

हमें ज्यादातर हमेशा बुजुर्गों के ही पैर छूने के लिए बोला जाता है, क्योंकि वो नि:स्वार्थ हमें आशीर्वाद देते हैं। यही कारण है कि आम तौर पर हम अपने दादा दादी, शिक्षकों, माता-पिता और बड़े भाइयों से आशीर्वाद लेते हैं।

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