अगर ये तीन लोग मर गए तो विलुप्त हो जाएगी पाकिस्तान की बदेशी भाषा 

अगर ये तीन लोग मर गए तो विलुप्त हो जाएगी पाकिस्तान की बदेशी भाषा 

Bhaskar Hindi
Update: 2018-02-27 07:04 GMT
अगर ये तीन लोग मर गए तो विलुप्त हो जाएगी पाकिस्तान की बदेशी भाषा 


 

डिजिटल डेस्क । हमने सुना है कि जानवरों या पक्षियों की फलां प्रजाति विलुप्त हो रही है, लेकिन कभी सुना है कि कोई भाषा भी विलुप्त हो सकती है। ये सुनने में आपको अजीब लगेगा, क्योंकि हमारे अपने ही देश में ना जानें कितनी भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, लेकिन कोई भी ऐसा शख्स नहीं होगा जो अपने क्षेत्र की भाषा ना जनता हो। युवा भी अपने क्षेत्र की भाषा भली भांति जानते और समझते हैं। हमारे देश की सबसे पुरानी संस्कृत भाषा के आज भी कई जानकार है और वो बच्चों को बदस्तूर पढ़ाई जा रही है, लेकिन हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के हालात हमसे इस मामले में जरा इतर है। वहां की एक क्षेत्रीय भाषा, जिसे सिर्फ तीन लोग जानते हैं और अगर उन व्यक्तियों को कुछ हो गया तो भाषा हमेशा के लिए खो जाएगी। हम बात कर रहे है उत्तरी पाकिस्तान की पहाड़ियों में बर्फ से ढंकी दूर-दराज की एक घाटी की बदेशी भाषा की। अब इस भाषा को लुप्त मान लिया गया है।

दुनिया की तमाम भाषाओं के बारे में जानकारी देने वाली एथनोलॉग के अनुसार बीते तीन या अधिक पीढ़ियों से इस भाषा को बोलने वाला कोई भी नहीं है। सिवाए तीन लोगों के जो अब भी बदेशी भाषा को जानते हैं और इस भाषा में बात करते हैं।

 

 

क्यों सिर्फ तीन लोग जानते है बदेशी भाषा?

इस भाषा को जानने वाले एक साहब है रहीम गुल। उनके मुताबिक अब से एक पीढ़ी पहले तक इस गांव के सभी लोग बदेशी भाषा में ही बात करते थे, लेकिन उनके गांव में शादी कर के जो लड़कियां दूसरे गांव से आईं वो तोरवाली भाषा बोलती थीं। उनके बच्चों ने भी अपनी मातृभाषा छोड़ तोरवाली भाषा में ही बात करना शुरू किया और इस कारण बदेशी भाषा मरने लगी।

इस इलाके में अधिकतर लोग तोरवाली भाषा का प्रयोग करते हैं जिसका खुद का अस्तित्व अधिक बोली जाने वाली पश्तो के कारण खतरे में है। रहीम गुल के दूर के भाई सईद गुल के मुताबिक "अब हमारे बच्चे और उनके बच्चे तोरवाली ही बोलते हैं। हम चाहें भी तो अपनी भाषा में किससे बात करें?"

 

 

काम की तलाश में छोड़ा इलाका और छूट गई भाषा

इस इलाके में युवाओं के लिए रोजगार के मौके लगभग ना के बराबर हैं। इस कारण यहां से लोगों ने स्वात घाटी का रुख किया जहां वो पर्यटन का व्यवसाय करने लगे। यहीं पर उन्होंने पश्तो सीखी और अब ये लोग अधिकतर इसी भाषा में बात करते हैं। वक्त के साथ-साथ बदेशी बोलने वले कम होते गए और इस तीन लोगों के लिए बदेशी में बात करने के मौके कम होते गए जिस वजह से अब ये भी बदेशी भूलते जा रहे हैं। आपस में बात करते वक्त रहीम गुल और सईद गुल कई शब्द भूल जाते थे और काफी सोचने के बाद कुछ शब्दों को याद कर पा रहे थे। इसकी जह उनकी उम्र हैं। दोनों ही 80 साल पार कर चुकें हैं। 

भाषाओं को बचाने की कोशिश कर रही संस्था

गैरसरकारी संस्था फोरम ऑफ लैग्वेज इनिशिएटिव पाकिस्तान में लुप्त हो रही भाषाओं को बचाने की कोशिश कर रही है। इस संस्था के साथ काम करने वाले भाषाविद सागर जमान कहते हैं, "मैंने तीन बार इस घाटी का दौर किया है, लेकिन इस भाषा को जानने वाले इस भाषा में सामने बात करने से हिचकिचा रहे थे।"

"मैंने और अन्य भाषाविदों से मिल कर इस भाषा के करीब 100 शब्दों को लिखा है। इन शब्दों से संकेत मिलता है कि ये भाषा इंडो-आर्यन भाषा परिवार से है।"

सागर जमान कहते हैं तोरवाली और पश्तो बोलने वाले बदेशी भाषा को अपमान की नजर से देखते हैं और इसीलिए इसे बोलने वालों के लिए ऐसा करने कलंक के समान माना जाता है।

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