देश में इन जगहों पर की जाती है कुत्ते की पूजा 

देश में इन जगहों पर की जाती है कुत्ते की पूजा 

Bhaskar Hindi
Update: 2019-03-07 06:16 GMT
देश में इन जगहों पर की जाती है कुत्ते की पूजा 

डिजिटल डेस्क। आजतक आपने मंदिरों में भगवान की पूजा, नागदेवता की पूजा, नदीं बैल की पूजा के बारे में देखा-सुना होगा जो अपनी-अपनी मायन्ताओं के लिए प्रसिद्ध होते हैं, लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में बताने जा रहें हैं जहां भगवान के साथ- साथ कुत्ते की पूजा भी की जाती है। इन मंदिरों में कुत्तों की कब्र या समाधि बनी हुई है जिनकी लोग पूजा करते हैं। आप भी जानिएं किन-किन जगाहों पर बने हैं ये मंदिर जहां भक्त पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं।

बुलंदशहर से 15 किमी. दूर सिकंदराबाद में करीब 100 साल पुराना एक ऐसा मंदिर है, जहां कुत्ते की कब्र की पूजा होती है। होली, दीवाली के मौकों पर यहां मेला भी लगता है। सावन और नवरात्रों में यहां भण्डारा भी रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई मनोकामनाएं पूरी होती है, इसलिए श्रद्धालु यहां बड़ी संख्या में आते हैं। यह मंदिर एक साधु लटूरिया बाबा के कुत्ते को समर्पित है, जिसने साधु के प्राण त्यागने के बाद वहीं अपनी जान दे दी थी।  

ऐसा ही एक गाजियाबाद के पास स्थित चिपियाना गांव में भैरव बाबा का मंदिर है। यहं बनी कुत्ते की समाधि लोगों के लिए आस्था के केन्द्र है। यहां कुत्ते की प्रतिमा पर लोग बकायदा प्रसाद चढ़ाते हैं और एक दूसरे के बांटते हैं। इस मंदिर में लक्खा बंजारे के कुत्ते का मंदिर है। स्थानिए निवासियों के कहे अनुसार इस मंदिर में एक पानी की टंकी बनी हुई है जिसमें नहाने से कुत्ते के काटने का असर खत्म हो जाता है। 

कर्नाटक के रामनगर जिले के अंतर्गत आने वाला मंदिर चिन्नपटना गांव में कुत्ते का मंदिर बना हुआ है। यहां के स्थानिए लोगों का मानना है कि कुत्ते में अपने मालिक के परिवार को विपत्तियों से बचाने की प्राकृतिक शक्ति होती है। वह किसी भी प्राकृतिक आपदा को पहले से ही भांप लेते हैं, इसी कारण से इस मंदिर को पालतू जानवर को समर्पित किया गया है।

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में कुकुरदेव नाम का एक प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से कुकुर खांसी और कुत्ते के काटने का भय नहीं रहता। यहां कुत्ते के अलावा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। खबरों के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी शासकों दूारा 14वीं से 15 शताब्दी के बीच कराया गया था।   


 

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