अजब-गजब : जानिए कहां है एशिया का सबसे स्वच्छ गांव

अजब-गजब : जानिए कहां है एशिया का सबसे स्वच्छ गांव

Bhaskar Hindi
Update: 2018-03-19 02:41 GMT


डिजिटल डेस्क । हम अक्सर ही जब टीवी पर कोई यूरोप, अमेरिका महाद्वीप या एशिया का ही कोई अन्य विकासशील देश में बसा शहर या गंव देखते है तो यही सोचते हैं कि भारत इतना साफ और सुंदर क्यों नहीं है, लेकिन खुद कुछ नहीं करते। इसी सोच के साथ सरकार ने एक मुहिम चलाई जिसका नाम है "स्वच्छ भारत" । जिसके तहत जमकर साफ-सफाई और स्वच्छता का प्रचार किया जाता है। इस मुहिम के बाद से देश में सफाई को लेकर जागरूकता आई है और लोग अब अपने आस-पास का कचरा खुद साफ करने में गुरेज नहीं करते, लेकिन क्या आप जानते है एशिया महाद्वीप का सबसे स्वच्छ गांव भारत में ही है। ये गांव मोदी सरकार की इस मुहिम के पहले ले ही स्वच्छता को लेकर जागरूक था। इसलिए सरकार की इस मुहिम को सुनकर इस गांव को लोगों को ज्यादा अचरज नहीं हुई और ना ही इस गांव के लोगों ने सोशल मीडिया पर खुद की स्वच्छता का प्रदर्शन किया। 

गांव बसा है मेघालय राज्य में जिसका नाम है "मावलिन्नांग" राजधानी शिलांग और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से 90 किलोमीटर दूर स्थित मावलिन्नांग को एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का खिताब मिला हुआ है। मावलिन्नांग गांव की साफ-सफाई का ख्याल कोई और नहीं बल्कि वहां रहने वाले लोग ही रखते है। लगभग 500 लोगों की जनसंख्या वाले इस छोटे से गांव में करीब 95 खासी जनजातीय परिवार रहते हैं। मावलिन्नांग में पॉलीथीन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है और यहां थूकना मना है।

 

 

गांव के रास्तों पर जगह-जगह कूड़े फेंकने के लिए बांस के कूड़ेदान लगे हुए है। इसके अलावा रास्ते के दोनों ओर फूल-पौधे कि क्यारियां और स्वच्छता का निर्देश देते हुए बोर्ड भी लगे हुए है। गांव के हर परिवार का सदस्य गांव की सफाई में रोजाना भाग लेते है और अगर कोई ग्रामीण सफाई अभियान में भाग नहीं लेता है तो उसे घर में खाना नहीं मिलता है।

 

 

 

मावलिन्नांग गांव मातृसत्तात्मक है, जिस कारण यहां की औरतों को ज्यादा अधिकार प्राप्त हैं और गांव को स्वच्छ रखने में वो अपने अधिकारों का बखूबी प्रयोग करती हैं। मावलिन्नांग के लोगों को कंक्रीट के मकान की जगह बांस के बने मकान ज्यादा पसंद है। अपनी स्वच्छता के लिए मशहूर मावलिन्नांग को देखने के लिए हर साल पर्यटक भारी तादात में आते हैं। "मावल्यान्नॉंग" गांव को "भगवान का अपना बगीचा"  भी कहा जाता है।

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