आने वाले समय में पडे़गा नमक की सप्लाई पर असर, जानें कैसे ?

आने वाले समय में पडे़गा नमक की सप्लाई पर असर, जानें कैसे ?

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-24 04:45 GMT
आने वाले समय में पडे़गा नमक की सप्लाई पर असर, जानें कैसे ?

डिजिटल डेस्क, राजकोट। खाने को स्वादिष्ट बनाने वाले नमक की सप्लाई में रुकावट आने से जल्द ही आपका खाने का जायका बिगड़ सकता है। दरअसल रेलवे की तरफ से खबरें आ रही हैं कि रेलवे बोर्ड ने गुजरात से आने वाले नमक के कंटेनर की संख्या में कटौती का फैसला लिया है। जिस कारण नमक की सप्लाई कहीं ना कहीं प्रभावित होगी ही। पहले गुजरात से हर महीने 150 नमक के कंटेनर आते थे, लेकिन अब सिर्फ 90 कंटेनर ही आएंगे। 

गौरतलब है कि भारत का सबसे ज्यादा नमक उत्पादक राज्य गुजरात ही है। हर साल गुजरात से करीब 2.6 करोड़ टन नमक का उत्पादन होता है, जिसमें से 80-90% एक्सपोर्ट कर दिया जाता है। करीब 50 लाख टन का इस्तेमाल इंडस्ट्रीज में होता है और बाकी का इस्तेमाल खाने के लिए होता है। नमक उत्पादकों का कहना है कि आने वाले समय में नमक की कम सप्लाई की वजह से इसके दामों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। 

यूपी के मुजफ्फरनगर के रहने वाले एक खरीदार का कहना है कि, "हम अभी से ही नमक की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। यदि समय रहते ही स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ तो हमें दाम बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।" रेलवे बोर्ड ने करीब 15 दिन पहले गुजरात के मैन्युफैक्चरर्स को गुजरात से आने वाले रैक की कमी की जानकारी दे दी है। गुजरात के कच्छ, सुरेंद्रनगर और पाटन से एक रैक करीब 2500 टन नमक लेकर आती है। इसके बाद इसे मध्यप्रदेश, यूपी, बिहार, झारखंड और देश के दूसरे हिस्सों में सप्लाई किया जाता है। 

नमक बनाने वालों की कोई सुनवाई नहीं

देश के 76 फीसदी लोग गुजरात में बना नमक खाते है इस नमक को बनाने में कच्छ अगरिया जाति के लोगों का अहम योगदान है। तेज धूप में समुद्र के पानी से नमक निकालने वाले ये छोटे किसान बहुत मुश्किल से दो वक्त की रोटी नमक के साथ खाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। नमक के किसान काम करते-करते ढेर सारी परेशानियों का सामना करते हैं। जैसे समुद्र में काम करने वाले ये किसान अपनी आंखों की रोशनी खो देते हैं। इनमें से करीब 98% श्रमिक चर्म रोग के शिकार हो जाते हैं। ये अंगरिया मजदूर झोपड़ियों में रहते हैं और लगभग 90% मजदूरों के पास एक इंच भी जमीन नहीं है और वो गरीबी की रेखा के नीचे आते हैं। कच्छ में गर्मी में 48 डिग्री की गर्मी और सर्दियों में हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बीच ये श्रमिक बिना बिजली, पानी, शौचालय, शिक्षा और सड़क के बिना काम करते हैं। 

आज देश का हाल ऐसा हो गया है की सियासी घमासान की रेस में इन छोटे किसानों की कोई सुनने वाला नहीं है।

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