कटनी जिले की विधानसभा सीटों में दावेदारों की छोड़िये विधायकों के माथे पर भी आ रहा पसीना

  • कटनी जिले में चार विधानसभा सीटें है।
  • जिले में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की सक्रियता बढ़ी है ।
  • दावेदारों की भी बढ़ी रही है टेंशन।

Bhaskar Hindi
Update: 2023-07-23 13:52 GMT

डिजिटल डेस्क, कटनी। आया राम-गया राम के दौर के बीच हर दूसरे तीसरे दिन बदलती जिले की राजनीति ने माननीयों के चेहरे पर भी पसीना ला दिया है। जिले की चारों विधानसभा सीटों पर लंबी कतार में लगे दावेदारों के साथ टिकट के प्रथम दावेदार विधायकगण भी टिकट मिलने और जीतने को लेकर सशंकित हैं। सबसे ज्यादा सशंकित वे हैं जो तीसरी बार टिकट के स्वाभाविक दावेदार हैं। जिले की सबसे महत्वपूर्ण तथा मुख्यालय की मुड़वारा सीट से लगातार दो बार से चुनाव जीतते आ रहे भाजपा के संदीप जायसवाल पिछले सात महीने से टिकट न मिलने की आशंका से घिरे हुए हैं। विजयराघवगढ़ में भाजपा के ब्राह्मणवर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं द्वारा पार्टी छेड़े जाने से पहले कांग्रेस और उसके बाद भाजपा के हुए संजय पाठक की परेशानियां बढ़ी हैं। बहोरीबंद में कांग्रेस द्वारा चलाये जा रहे 'स्थानीय' के कैम्पेन ने भाजपा विधायक प्रणय पांडेय को परेशान कर रखा है तो बड़वारा के कांग्रेस विधायक विजय राघवेन्द्र उर्फ बसंत सिंह की आराम तलबी खुद इनकी ही नहीं पार्टी की भी मुश्किलें बढ़ाये हुए है।

मुड़वारा में महापौर की घर वापसी ने खड़ा किया रोड़ा

जनता महापौर प्रीति संजीव सूरी की घर (भाजपा में वापसी, विधायक संदीप जायसवाल को लगातार तीसरी बार टिकट मिलने की राह मे रोड़ा बन गई है। संदीप के समीकरण तो निकाय चुनाव के समय से ही गड़बड़ाने लगे थे जबकि इनकी गुड बुक में शामिल रहीं प्रीति संजीव सूरी महापौर पद के लिये निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गईं। इनके पीछे करीब तीन दर्जन पार्षद पद के दावेदारों ने भी पार्टी का हाथ छोड़ निर्दलीय मैदान में उतर गए। इनमें भी ज्यादातर लोग संदीप के समर्थक थे। पार्षद भले ही भाजपा के ज्यादा जीत गये हों लेकिन महापौर पद निर्दलीय प्रीति ने हासिल कर लिया। हालात तेजी से तब बदले जबकि प्रीति की घर वापसी तो हुई लेकिन विगढ़ विधायक संजय पाठक के जरिये। इस घटनाक्रम के बाद से ही संदीप और उनके समर्थक तीसरी बार चुनाव लड़ने का अवसर मिलने को लेकर सशंकित हैं। दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही आशंका-कुशंका इन्हें अपने कांग्रेसी मित्रों के निकट भी लाती जा रही है।

विगढ़ में अपनों ने ही बढ़ाईं मुश्किलें

पहले मैहर के भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी की सक्रियता । उसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तथा राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह की सक्रियता । इस सबके बीच ब्राह्मण समाज का प्रतिनधित्व करने वाले संदीप उर्फ पप्पू बाजपेयी और छेदीलाल पांडेय का पार्टी छोड़ना । इन दोनों से भी पहले ध्रुव प्रताप सिंह ने पार्टी को बाय-बाय कहा था। 2003 में संजय के पिता सत्येन्द्र पाठक को विजयराघवगढ़ में चुनाव हराने वाले ध्रुव प्रताप अब कांग्रेस के हो चुके हैं। हर चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कारीतलाई क्षेत्र के वोटरों पर खासा प्रभाव रखने वाले तथा एक समय संजय पाठक के खास और राजदार रहे पप्पू बाजपेयी भी कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के जिला संयोजक छेदीलाल पांडेय पर यदि पूर्व जिला अध्यक्ष पायल दबाव न बनाते तो ये भी बजरिये दिग्विजय कांग्रेस में जाने तैयार खड़े थे। पायल ने इन्हें कांग्रेस में जाने से तो रोक लिया लेकिन पार्टी छोड़ने से नहीं रोक सके। करीब सवा महीने भीतर तेजी से घटित हुए इन घटनाक्रमों के बीच विधायक संजय पाठक द्वारा चुनाव से पहले अपने नाम पर 'जनमत संग्रह' कराये जाने का ऐलान करना, यह बताने काफी है कि विश्वास इनका भी डगमगाया है। इसलिये चुनाव मैदान में उतरने से पहले इन्होंने जनता की नब्ज टटोलने और उन्हें मनाने का अवसर पाने 'जनमत संग्रह' का इमोशनल दांव खेला है।

बहोरीबंद में विधायक ही पलायन को तैयार

एक दल से दूसरे दल में हो रहे पलायन के दौर दौरे के बीच बहोरीबंद में 'स्थानीय' की मांग और गरमाते मुद्दे ने भाजाप विधायक प्रणय पांडेय की धडकनें इतनी बढ़ा दी हैं कि वे अब खुद बहोरीबंद से पलायन करने की सोचने लगे हैं। मूलतः जबलपुर जिले के सिहोरा के रहने वाले प्रणय उन भाजपा विधायकों की सूची में भी शामिल हैं जिनकी सर्वे रिपोर्ट निगेटिव रही है। हालांकि प्रदेश संगठन से सुधार और मेहनत की ताकीद मिलते ही इन्होंने क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाई है और पार्टी के उन लोगों से भी दुआ- सलाम शुरू कर दी है जिनके पास ये पिछले चार साल नहीं गये। बावजूद इसके कांग्रेस में जबलपुर के निशिथ पटेल आदि की दावेदारी को रोकने क्षेत्र में चल रहे 'स्थानीय' के कैम्पेन ने प्रणय की चिंता ज्यादा बढ़ा दी है। इन्होंने सिहोरा से सटे मझौली-कटंगी बेल्ट वाले पाटन में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। पाटन में ये कितना सफल रहेंगे या टिकट की रेस में ही पिछड़ जाएंगे यह तो आगे सामने आएगा लेकिन बहोरीबंद से इनकी बढ़ती दूरी ने इनके और पार्टी दोनों के लिये खतरा बढ़ा दिया है।

बड़वारा में दोहरे दबाव से जूझ रहे कांग्रेस विधायक

जिले में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बड़वारा ही अकेली ऐसी सीट थी, जो 2018 में कांग्रेस ने जीती थी। यहां कांग्रेस और उसके विधायक विजयराघवेन्द्र सिंह को दोहरे दबाव से जूझना पड़ रहा है। सर्वे में फिट नहीं पाये गये राघवेन्द्र यहां कांग्रेस की मजबूरी बन चुके हैं और इनकी कमजोरी आरामतलबी है। इसी आराम-तलबी के चलते ये जनता से चार साल तक दूर और रेत माफियाओं के नजदीक रहे। सर्वे रिपोर्ट के बाद आनन-फानन में ये सक्रिय हुए तो यही नहीं पहचान पाये कि कौन कांग्रेसी और कौन भाजपाई है। इधर भाजपा ने बड़वारा को अपनी आकांक्षी सीटों में शामिल करते हुए यहां सक्रियता बढ़ाई। वह राघवेन्द्र की पत्नी के पिछले जनपद अध्यक्षीय कार्यकाल के मामले ले कर मैदान में उतर चुकी है। इससे कांग्रेस के हितचिंतकों की चिंता बढ़ी और इन्हीं में शामिल जिला पंचायत सदस्य अजय गोंटिया सारी बात लेकर दिल्ली में राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा के दर पर जा पहुंचे। एक समय आसान लगने वाली बड़वारा सीट दोबारा जीतना कांग्रेस के लिए मुश्किल भरा काम हो गया है।

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