भाजपा को समझने में चूके पशुपति पारस, चिराग ने साबित कर दी अपनी उपयोगिता

  • चिराग ने साबित की अपनी उपयोगिता
  • बिछड़े सभी बारी-बारी

Tejinder Singh
Update: 2024-03-19 15:00 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली, अजीत कुमार. लगभग तीन वर्ष पहले लोजपा के 6 में से 5 सांसदों का साथ लेकर अपने भतीजे चिराग पासवान को झटका देने वाले पशुपति पारस आज खुद सियासी भंवर में हैं। एनडीए में सीट बंटवारे से खफा पारस न केवल मोदी सरकार से बाहर हो गए, बल्कि अब उनके सांसद भी एक-एक कर साथ छोड़ते जा रहे हैं। 2020 में लोजपा सुप्रीमों रामविलास पासवान के निधन के बाद पार्टी चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच बंट गई थी। चाचा-भतीजे की इस जंग में तब भाजपा ने चाचा (पशुपति) का साथ देते हुए उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाया था, लेकिन जमीन पर उनकी ढीली पकड़ और बिगड़ते स्वास्थ्य के चलते अब उन्हें किनारे लगा दिया।

बिछड़े सभी बारी-बारी

पांच दिन पहले जब पशुपति पारस ने सम्मानजनक सीट नहीं मिलने की स्थिति में एनडीए से बाहर निकलने की धमकी दी थी, तब मंच पर उनके साथ सांसद प्रिंस राज और चंदन सिंह मौजूद थे। लेकिन आज जब उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दिया, तब ये दोनों सांसद नदारद रहे। जानकारी के मुताबिक सत्ताधारी दल के बढ़ते दबाव के चलते दोनों सांसद उनसे किनारा हो रहे हैं। सूत्रों की मानें तो चंदन सिंह अब भाजपा के कमल निशान पर नवादा से चुनाव लड़ सकते हैं तो उधर भतीजे प्रिंस राज ने भी चाचा की सियासी पारी पर विराम लगते देख उनसे दूरी बनाने में अपनी भलाई समझी है। सांसद महबूब अली कैसर और वीणा सिंह पहले ही पारस का साथ छोड़ चुके हैं।

राज्यपाल बनाने हुई थी पेशकश

रालोजपा सूत्रों ने बताया कि भाजपा ने पशुपति पारस को किसी राज्य का राज्यपाल बनाने और उनके सांसद भतीजे प्रिंस राज को बिहार में मंत्री बनाने की पेशकश की थी। साथ ही चंदन सिंह को भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ाने का वादा किया था। लेकिन पारस खुद हाजीपुर से चुनाव लड़ने और अपने दोनों सांसदों के लिए भी सीट लेने पर अड़े रहे। लिहाजा भाजपा ने उनसे दूरी बना ली।

राजद से उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं

विपक्ष के उकसावे पर मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले पशुपति पारस की मुश्किल कम नहीं हो रही। दरअसल महागठबंधन की ओर से अब तक उन्हें उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। ऐसे में उनकी आगे की डगर कठिन दिख रही है।

मोदी के ‘हनुमान’ बने रहे चिराग

चाचा पारस के मंत्री रहने के दौरान भी चिराग ने कभी भाजपा के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला, बल्कि यह साबित किया कि वह भाजपा के लिए कितने उपयोगी हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेेता के मुताबिक चिराग ने दिखाया कि रामविलास पासवान की सियासी विरासत उनके पास ही है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर चिराग ने 6 फीसद से ज्यादा वोट हासिल किए थे। लिहाजा भाजपा ने उन्हें पांच लोकसभा सीटें दे दी।

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