पौधारोपण योजना में 134 करोड़ का भ्रष्टाचार, कोर्ट ने वन विकास महामंडल को लगाई फटकार

पौधारोपण योजना में 134 करोड़ का भ्रष्टाचार, कोर्ट ने वन विकास महामंडल को लगाई फटकार

Anita Peddulwar
Update: 2018-07-05 07:18 GMT
पौधारोपण योजना में 134 करोड़ का भ्रष्टाचार, कोर्ट ने वन विकास महामंडल को लगाई फटकार

डिजिटल डेस्क, नागपुर। रोजगार गारंटी योजना के तहत वन विकास महामंडल की पौधारोपण योजना में 134 करोड़ रुपए के कथित भ्रष्टाचार पर हाईकोर्ट ने स्वयं जनहित याचिका दायर कर रखी है। मामले में वन विभाग और वन विकास महामंडल के रवैये से नाराज हाईकोर्ट ने दोनों विभागों को जमकर फटकार लगाई। इस दौरान वन विभाग सचिव विकास खारगे और महामंडल महाव्यवस्थापक रामबाबू कोर्ट में उपस्थित थे। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आपत्तिजनक रवैया अपनाने वाले वन विकास महामंडल के अधिकारियों को ही जेल में डालने का विचार करना चाहिए। 

ऐसे हुआ भ्रष्टाचार
जनहित याचिका के अनुसार वर्ष 1997-98 में वन विकास महामंडल ने खामगांव वन प्रकल्प के अंतर्गत 19 हजार 300 हेक्टेयर जमीन पर रोजगार गारंटी योजना के तहत पौधारोपण किया था। इसके तहत लगाए गए सागौन के पौधों में से एक भी जीवत नहीं रह सका। महामंडल के अधिकारियों ने वन क्षेत्र अधिकारी के पास मस्टर पर दर्ज किए बगैर ही वाउचर तैयार कर लिए। इसमें जिलाधिकारी द्वारा मंजूर किए गए खर्च से कई गुना ज्यादा सरकारी रकम खर्च हुई।

महामंडल के ही एक लिपिक मधुकर चोपडे ने 31 दिसंबर 1997 को जिलाधिकारी और अमरावती विभागीय आयुक्त से शिकायत कर इसे 134 करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार करार दिया। विभागीय आयुक्त ने जब आरोपी अधिकारियों पर जांच बैठाई, तो उलटा लिपिक को ही नौकरी से निलंबित कर दिया गया, साथ ही उनकी सात वेतन वृद्धियां भी रोक दी गईं। इस मामले में समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित होने के बाद हाईकोर्ट ने स्वयं इस मामले में जनहित याचिका दायर की थी। 

नहीं दे पा रहे संतोषजनक उत्तर 
मामले में हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने महामंडल से पौधारोपण के लिए मंजूरी देते समय तैयार की गई वाउचरों की रिपोर्ट की जानकारी मांगी। पहले तो महामंडल ने रिपोर्ट उपलब्ध होने की जानकारी दी, मगर बाद में कोर्ट में इससे पलट गए। कोर्ट ने जब वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा, तो शासकीय लेखा परीक्षक से रिकॉर्ड का परीक्षण नहीं करा कर निजी कंपनी से परीक्षण कराया। यहां तक कि इस मामले में अब तक विभाग ने कोई कार्रवई भी नहीं की।

महामंडल के इस रवैये से नाराज हाईकोर्ट ने कहा कि एेसी स्थिति में तो महामंडल के अधिकारियों को ही जेल में भेजने का विचार करना चाहिए।  मामले में महामंडल की रिपोर्ट का निरीक्षण करने वाली निजी कंपनी को भी प्रतिवादी बनाने के आदेश हाईकोर्ट ने दिए हैं। प्रकरण में दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी।  मामले में एड. रोहित मासुरकर न्यायालयीन मित्र की भूमिका में हैं। महामंडल की ओर से एड. मोहन सुदामे और सरकार की ओर से सरकारी वकील सुमंत देवपुजारी ने पक्ष रखा।  

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