207 सालों से बैंकुठ चतुर्दशी पर निकलती है रथ यात्रा, जानिए महत्व 

207 सालों से बैंकुठ चतुर्दशी पर निकलती है रथ यात्रा, जानिए महत्व 

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-31 04:23 GMT
207 सालों से बैंकुठ चतुर्दशी पर निकलती है रथ यात्रा, जानिए महत्व 

डिजिटल डेस्क,भंडारा। कार्तिक माह की चतुर्दशी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी को आधी रात के समय भगवान शिव और कृष्ण का मिलन हुआ था। मंदिरों में इस दिन भगवान शिव को तुलसी और श्रीकृष्ण को बेल अर्पित किया जाता है। सानगड़ी ग्राम में यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहां इस दिन रथयात्रा निकाली जाती है।  

31 अक्टूबर यानि आज से यहां रथयात्रा महोत्सव मनाया जा रहा है। महोत्सव के पहले दिन महापूजा पुरोहित दत्तात्रय गाड़े ने पूजा अर्चना की।  207 वर्षों से चली आ रही ऐतिहासिक परंपरा के उपलक्ष्य में 2 नवंबर की रात्रि विविध धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रम के साथ शोभायात्रा का आयोजन किया गया है। रथयात्रा का अपना अलग महत्व है। ग्रामवासी उत्साह से इस प्रथा को निभाते चले आ रहे हैं। बैकुंठ चतुर्दशी पर रथयात्रा देखने संपूर्ण तहसील से जन-सैलाब उमड़ता है। 

चार दिवसीय महोत्सव में प्रतिदिन तड़के काकड़ आरती, शाम को सामुदायिक प्रार्थना, हरिपाठ का आयोजन किया जा रहा है। 1 नवंबर को विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम, 2 नवंबर सुबह रथ सजावट, शाम को तुलसी विवाह, रात्रि 8.30 बजे रथपूजा व रथयात्रा प्रारंभ होगी।  कार्यक्रम में जिला परिषद सदस्य रेखा वासनिक, धनपाल उंदिरवाड़े, सरपंच उषा करपते, रेखा वंजारी उपस्थित रहेंगे।  वारकरी संप्रदाय द्वारा कलशयात्रा, भजनों की गूंज में रथयात्रा प्रारंभ की जाएगी। 3 नवंबर दोपहर 12 बजे गोपालकाला कीर्तन होगा। इस वर्ष मनाए जा रहे रथ महोत्सव पर कवायद उस्ताद धनराज साखरे, विनायक बंसोड, रवींद्र धकाते, जासवंद डुंडे, शमशेरखां पठान शारीरिक कवायद प्रस्तुत करेंगे। 

ब्राह्मणपुरा से मिली पहचान

नागपुर के भोसले घराने का सानगड़ी किले पर वर्चस्व स्थापित होते ही अनेक ब्राह्मण परिवार यहां निवास करने लगे।  ब्राह्मण बंधुओं की बस्ती को ब्राह्मणपुरा नाम से पहचान प्राप्त मिली।  

तीन मंजिला रथ आकर्षण का केन्द्र

बुजुर्ग बताते हैं कि भोसलेकालीन पेशकर परिवार ने यहां रथयात्रा महोत्सव का शुभारंभ किया था। इस रथयात्रा को 207 साल पूरे हो चुके हैं। शुरुआत में रथ का आकार छोटा था।  इसके बाद तत्कालीन राजा व सानगड़ी ग्रामीणों के नेतृत्व में 6 मंजिला रथ का निर्माण किया गया। इस 6 मंजिला रख से विद्युत तारों के अटकने का खतरा बना रहता था । जिसके फलस्वरुप रथ को फिर से 3 मंजिला कर दिया गया। रात के समय मशाल के प्रकाश में रथयात्रा निकाली जाती है।

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