ऑर्गेनिक खेती : डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय और स्विट्जरलैंड की संस्था के बीच हुआ करार

ऑर्गेनिक खेती : डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय और स्विट्जरलैंड की संस्था के बीच हुआ करार

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-06 18:15 GMT
ऑर्गेनिक खेती : डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय और स्विट्जरलैंड की संस्था के बीच हुआ करार

डिजिटल डेस्क, अकोला। कीटनाशकों के बढ़ते इस्तेमाल से सेहत और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। जिसके मद्देनजर ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय और स्विट्जरलैंड की जैविक खेती संशोधन संस्था के बीच करार हुआ है। इसके तहत किसानों को रासायनिक की बजाए ऑर्गेनिक खेती करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। रविवार को हुए इस करार पर उपकुलपति डॉ. विलास भाले और FIBL के संचालक डॉ. उर्स निग्गली ने हस्ताक्षर किए। इस मौके पर स्विट्जरलैंड के प्रकल्प प्रमुख डॉ. गुरबीर भुल्लर भी मौजूद थे।

 

बिगड़ रहा इकालॉजिकल संतुलन

बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ ही अनाज की आपूर्ति के लिए खाद्य उत्पादन की होड़ लगी है। जिसके लिए तरह-तरह की रासायनिक खाद, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग जारी है। जिससे प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच इकालॉजिकल संतुलन बिगड़ रहा है। मिट्‌टी की पैदावार शक्ति नष्ट होती है, साथ ही स्वास्थ्य में गिरावट आती है। जब्कि सालों पहले प्राकृतिक खेती होती थी। जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच चक्र बना रहता था। एसे में धरती, हवा और वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। लेकिन अब जो तस्वीर सामने हैं, उससे साफ जाहिर हो रहा है कि जहरीले कीटनाशक किसानों के लिए मुसीबत बन रहे हैं। विदर्भ में कीटनाशक छिड़काव के कई किसान और मजदूरों की जान जा चुकी है। जिसके चलते पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश भी राज्य सरकार को करनी पड़ी। 

 

किसानों को मिलेगा लाभ

कीटनाशकों के बुरे असर को लेकर अनुसंधान किया जा रहा है। जिसके बाद ऑर्गेनिक खेती को लेकर विश्वविद्यालय कई तरह के जतन में जुटा है। खासकर पीकेवी पाठ्यक्रम के माध्यम से ऑर्गेनिक खेती को स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा में शामिल किया गया। ताकि किसानो तक इसका लाभ पहुंचाया जा सके। डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय और स्विट्जरलैंड की जैविक खेती संशोधन संस्था के बीच करार होने से छात्रों को इस बारे में काफी जानकारियां मिलेंगी। साथ ही इस मुद्दे पर वो और रिसर्च वर्क कर सकेंगे। जिससे किसानों की सोच बदलने में कुछ हद तक कामयाबी मिलेगी।

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