अपना घर - अपना विद्यालय अभियान को सामुदायिक सहभागिता ने किया चरितार्थ (कहानी सच्ची है) -

अपना घर - अपना विद्यालय अभियान को सामुदायिक सहभागिता ने किया चरितार्थ (कहानी सच्ची है) -

Aditya Upadhyaya
Update: 2020-07-11 09:01 GMT
अपना घर - अपना विद्यालय अभियान को सामुदायिक सहभागिता ने किया चरितार्थ (कहानी सच्ची है) -

डिजिटल डेस्क  | कोरोना महामारी के विश्वव्यापी संकट के दौर में बेधारे नैनिहालों की जिन्दगी स्थिर हो गई है। शिक्षकों और अभिभावकों को अब उनकी शिक्षा की निरन्तरता की चिन्ता सताने लगी है। म.प्र. शासन स्कूल शिक्षा विभाग ने इस समस्या का समाधान जुलाई माह से हमारा घर- हमारा विद्यालय की शुरुआत कर सराहनीय प्रयास किया है। इस अभियान की सफलता में कई चुनौतियां है मसलन एन्ड्राइड मोबाइल, रेडियो, मोबाइल डाटा आदि की उपलब्धता। घर में ये साधन हो भी तो बच्चों के लिए इनकी उपलब्धता और सबसे बड़ी बात समाज और अभिभावकों की सहभागिता। इन चुनौतियों को विकासखण्ड करकेली अन्तर्गत आने वाली प्राथमिक विद्यालय सेहरा टोला के प्रभारी सुनील मिश्रा एवं उनके सहयोगी शिक्षकों ने स्वीकार कर नायाब तरीका ढूंढ़ निकाला है। गांव में बमुश्किल ही एन्ड्रोइड मोबाईल उपलब्ध है ऐसे में विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने 5 ऐसे युवक युवतियों से सम्पर्क किया जो स्नातक या हायर सेकण्डरी उत्तीर्ण है और उनके पास एण्ड्राइड मोबाइल भी उपलब्ध है। लॉक डाउन के कारण वे भी वर्तमान में गांव में ही निवासरत है। उन्होने विद्यालय को अपना समय देने के लिए अपनी सहमति प्रदान की। बस फिर क्या था- विद्यालय स्टाफ को उम्मीद की रोशनी दिखायी दी, पाँच ऐसे अभिभावक भी तैयार कर लिये जो अपने घर में अपने बच्चों के साथ-साथ आस पड़ोस के बच्चों को भी निर्धारित समय पर अध्ययन के लिये अनुमति दे दी। बस हो गयी व्यवस्था, गांव के ही कइया बैगा, चेतराम कोल, छंगू राय, गोपाल सिंह और वेनी कोल के घर की परछी ,बरामदा में कोविड-19 और सोशल डिस्टेंसिंग के साथ चल पड़ी मोहल्ला कक्षा)। राज्य स्तर से प्राप्त ऑन लाईन शिक्षण सामग्री गांव के ही सहमति देने ताले युवको जिसमें रोहित सिंह, विजय सिंह, अविनाश राय, शकुन्तला सिंह और विकास कोल को भेजी जाती है। जिनके द्वारा उनके समूह में एकत्रित बच्चों को पहले दिखाया जाता है फिर उसे समझाया भी जाता है इन उत्साही युवको के माध्यम से 5 एन्ड्राईड मोबाईल के द्वारा लगभग 35 से 40 बच्चे लाभान्वित हो रहे है। विद्यालय द्वारा अलग चल रही कक्षाओं में जाकर गृहकार्य दिया जा रहा है, और उसकी जाँच भी की जा है। सभी ग्रामीणों द्वारा विद्यालय एवं इन नवयुवको के इस प्रयास को खूब सराहा जा रहा है। इनके अनुसार बच्चों की शिक्षा निरन्तरता बहुत आवश्यक है इसके माध्यम से जब तक विद्यालय नहीं खुलता तब तक बच्चे कम से कम शिक्षा एवं पुरतको से जुड़े तो रहेगें। इस विद्यालय का प्रयास देखकर बरबस ही ये दो पंक्तियां जेहन में आ जाती है जो बाकियों के लिए शायद प्रेरणा हो कौन कहता है आसमान में सुराख नही हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।। प्रस्तुतकर्ता गजेंद्र द्विवेदी

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