स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल, मेडिकल ऑफिसर के लिए बजट ही नहीं 

स्वास्थ्य सेवाओं के बुरे हाल, मेडिकल ऑफिसर के लिए बजट ही नहीं 

Anita Peddulwar
Update: 2019-08-19 06:51 GMT
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डिजिटल डेस्क,नागपुर। राज्य सरकार के अधीन ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत मेडिकल ऑफिसर को पिछले दिन माह से वेतन नहीं दिया गया है। सभी जगह मेडिकल ऑफिसर की स्थिति ऐसी ही बनी हुई है। दरअसल, ग्रामीण क्षेत्र जैसी जगह स्वास्थ्य सेवा देने वाले मेडिकल आफिसर के लिए भी सरकार के पास बजट नहीं है।  

समय भी तय नहीं
ग्रामीण में स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए वैसे ही डॉक्टर तैयार नहीं होते हैं, क्योंकि उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी उत्कृष्ट सेवाएं वहां नहीं मिल पाती हैं। ऐसे में तीन-तीन माह से मेडिकल ऑफिसर को वेतन नहीं दिया गया है। उनके वेतन का भुगतान कब किया जाएगा, यह  भी तय नहीं है। ऐसे में मेडिकल ऑफिसर कैसे स्वास्थ्य सेवाएं देंगे। 

इसलिए समस्या

बजट नहीं होने की वजह से समस्या आ रही है, जैसे ही बजट मिलेगा उनके वेतन का भुगतान कर दिया जाएगा। -डॉ.संजय जायस्वाल, उपसंचालक, स्वास्थ्य विभाग

शिक्षकों की बनी समिति का शिक्षक संगठनों ने किया विरोध

राज्य के विश्वविद्यालय और कॉलेजों के प्राध्यापकों की विविध समस्याओं पर गौर करके सरकार को उससे जुड़ी सिफारिशें देने के लिए राज्य सरकार ने 14 अगस्त को अध्यादेश जारी कर एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। इस समिति में शामिल सदस्यों के चयन पर शिक्षक संगठनों ने नाराजगी जाहिर की है।  महाराष्ट्र प्राध्यापक महासंघ (एमफुक्टो) का आरोप है कि इस समिति में केवल राष्ट्रीय शैक्षणिक महासंघ के पदाधिकारियों का ही चयन किया गया है। संत गाडगेबाबा अमरावती विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ.मुरलीधर चांदेकर की अध्यक्षता में समिति गठित की गई है। इसमें राष्ट्रीय शैक्षणिक महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ.अनिल कुलकर्णी, महासचिव डॉ.शेखर चंद्राखे, सदस्य डॉ.कल्पना पांडे का समावेश है।

एमफुक्टो के किसी सदस्य को शामिल नहीं किए जाने से इस समिति पर एतराज जताया जा रहा है। एमफुुक्टो के कार्यकारी सदस्य डॉ.अनिल जाचक के अनुसार विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में काम करते वक्त प्राध्यापकों को काम करते वक्त अनेक समस्याएं आती हैं। कई बार सरकारी नीतियों और फैसलों से उनकी असहमति होती है। इस में प्रमुख रूप से वेतन आयोग का बकाया। यूजीसी के नियमों और दिशा-निर्देशों के राज्य सरकार द्वारा उल्लंघन जैसे मुद्दे शामिल होते हैं। इन विविध मुद्दों को लेकर महाराष्ट्र प्राध्यापक महासंघ समय समय पर आंदोलनों की राह लेता है, लेकिन विशेष समिति में सरकार के करीबी महासंघ के ही सदस्य शामिल किए गए हैं, जो कि सही निर्णय नहीं है। 

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