संकट में सेवा की कहानी: पोस्टर में लिखा- कोई भूखा न रहे, इसी सोच के साथ जरूरतमंदों की मिटा रहे भूख

संकट में सेवा की कहानी: पोस्टर में लिखा- कोई भूखा न रहे, इसी सोच के साथ जरूरतमंदों की मिटा रहे भूख

Bhaskar Hindi
Update: 2021-05-14 17:01 GMT
संकट में सेवा की कहानी: पोस्टर में लिखा- कोई भूखा न रहे, इसी सोच के साथ जरूरतमंदों की मिटा रहे भूख

भास्कर हिंदी डेस्क, बालाघाट | भूख... सारा जहां इन दो अक्षरों के शब्द के इर्दगिर्द घूमती है। भूख मिटाने के अपने-अपने कई साधन हैं, जरिये हैं, लेकिन जब कोरोना जैसे बुरे संकट में भूख मिटाने की बात आती है तो मजबूरियों और बेबसी की बेडिय़ां पेट की आग बुझाने नहीं देतीं। मगर, समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो इन मजबूरियों से ऊपर उठकर जरूरतमंदों की मदद करने जुटे हैं। महज पांच सदस्यों का अग्रवाल परिवार कोरोना कफ्र्यू के कारण भोजन के लिए परेशान होते सैकड़ों जरूरतमंदों की मदद कर रहा है। संकट में सेवा का ये सिलसिला पिछले एक महीने से जारी है। व्यावसायी घनश्याम अग्रवाल और उनका परिवार सुबह उठते ही खाना बनाने जुट जाते हैं। उन्होंने घर पर एक बैनर भी लगाया है, जिसमें लिखा है- कोई भूखा न रहे...। इसी भाव के साथ पूरा परिवार जरूरतमंदों के लिए भोजन बना रहा है, ताकि कोई भूखा न रहे। 
 

सब्जी पकाने, रोटी बेलने में पुरुष भी करते हैं मदद

सुबह की पहली किरण के साथ पूरा अग्रवाल परिवार घर में ही चूल्हा, बर्तनों, अनाज, सब्जियों के साथ भोजन बनाने जुट जाता है। कोई सब्जियां काटता है, तो रोटी का आटा गूथता है। इस दौरान न सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष भी हाथ बंटाते हैं। सब्जी में मसाले डालना हो या रोटी बेलने की जिम्मेदारी, इस काम में पुुरुष भी अपनी सहभागिता निभा रहे हैं। ये कारवां बीते एक महीने से जारी है। खास बात यह है कि कोई भूखा न रहे... लिखे बैनर पर परिवार के सदस्यों के मोबाइल नंबर भी लिखे हैं, ताकि कोई जरूरतमंद फोन कर भोजन मांग सके।    

ऐसे मिली सेवा करने की प्रेरणा
विद्या घनश्याम अग्रवाल ने बताया कि लॉकडाउन में कई लोगों के सामने अन्न का संकट आ गया है। रोज कमाकर खाने वालों पर मुसीबत का पहाड़ टूटा है। लंबे लॉकडाउन के कारण उनके सामने भोजन की समस्या बढ़ गई है। लॉकडाउन में लगा कि बहुत से लोग भूखे होंगे। परिवार के लोगों के सामने बात रखी और फिर हम सबने मिलकर जरूरतमंदों के लिए खाना बनाना शुरू कर दिया। इस काम में परिवार के सभी सदस्य पूरी शिद्दत के साथ जुटे हुए हैं।  

दूसरों की चेहरे पर मुस्कान देख सुकून मिलता है
सौरभ अग्रवाल ने बताया कि यह काम अपने पापा की प्रेरणा से शुरू किया है। हमारे पास ऐसे कई लोगों के कॉल आते हैं, जो मरीजों के रिश्तेदार हैं। कुछ लोग यहां आकर भी खाना लेकर जाते हैं। उनके हाथों में खाना का पैकेट देते हुए उनके चेहरे पर बिखरी मुस्कान नजर आती है तो मन को सुकून मिलता है। कई लोग दुआएं देते हैं तो लगता है हमारी मेहनत सफल हुई।

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