नतीजों का इंतजार- लोकसभा चुनाव में विधायकों ने बदले थे पैंतरे, सत्ताधारी दलों को ही लगा बड़ा झटका
नतीजों का इंतजार- लोकसभा चुनाव में विधायकों ने बदले थे पैंतरे, सत्ताधारी दलों को ही लगा बड़ा झटका
डिजिटल डेस्क, नागपुर। लोकसभा चुनाव के नतीजे देश ही नहीं राज्य की राजनीति के मिजाज को नया रंग देंगे। नतीजों का सबको इंतजार है। नतीजे आने के बाद ही राज्य की राजनीति सबसे अधिक गर्मायेगी। ठीक 6 माह बाद विधानसभा के लिए चुनाव जो होनेवाला है। ऐसे में सभी नेता व दल अपनी अपनी स्थिति को टटोलने लगे है। राज्य सत्ता का नेतृत्व कर रही भाजपा व शिवसेना खुले तौर पर यह अवश्य कह रही है कि उसकी स्थिति में पहले से अधिक सुधार आया है। लेकिन लोकसभा चुनाव की तैयारी का ही घटनाक्रम देखा जाए तो सबसे अधिक झटका सत्ता पक्ष को लगा है। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देनेवालों में भाजपा सेना के विधायको की संख्या ही अधिक है।
कुल सीटें- 288
भाजपा- 123
शिवसेना- 63
कांग्रेस- 42
राकांपा- 41
अन्य- 19
औरंगाबाद की ही लोहा विधानसभा सीट से जीते शिवसेना विधायक प्रताप चिखलीकर ने भी इस्तीफा दे दिया। लिहाजा शिवसेना की विधानसभा में सदस्य संख्या 63 से खिसककर 60 होकर रह गई है। भाजपा 123 से 120 पर आ गई है। शिवसेना के साथ एक राहत की बात है कि वह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के एकमात्र विधायक शरद सोनवाने को अपने पाले में लेने में सफल रही है।
2014 में शिवसेना की टिकट पर चुनाव जीतने के बाद एक साल में ही सरकार पर आरोप लगाने व इस्तीफे की पेशकश करनेवाले हर्षवर्धन जाधव भी शिवसेना व विधानसभा की सदस्यता छोड़ गए। जाधव औरंगबाद जिले की कन्नड विधानसभा सीट से जीते थे।
उधर भाजपा की प्रमुख सहयोगी शिवसेना को एक के बाद एक झटके लगे हैं। शिवसेना के 3 विधायकों ने लोकसभा चुनाव के पहले इस्तीफा दिया। बालू धानाेरकर ने वरोरा क्षेत्र से विधायक पद का इस्तीफा देकर कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा।
भाजपा के एक और विधायक अनिल गोटे ने धुले विधानसभा क्षेत्र से इस्तीफा दिया है। गोटे का भाजपा के नेताओं के साथ ही विवाद काफी चर्चा में रहा। राज्य के मंत्री गिरीश महाजन के साथ राजनीतिक तौर पर शह मात का खेल चलता रहा। गोटे ने लोकसभा चुनाव में निर्दलीय दांव आजमाया है।
भाजपा - सेना के विधायकों के बगावती तेवर की शुरुआत विदर्भ से ही हुई थी। भाजपा के विधायक रहे आशीष देशमुख बार बार सरकार के विरोध में बोलते व प्रदर्शन करते रहे। 2018 में उन्होंने काटोल विधानसभा क्षेत्र से इस्तीफा दे दिया। बाद में कांग्रेस में शामिल होकर लोकसभा की टिकट का प्रयास करते रहे। हालांकि देशमुख को न तो लोकसभा की टिकट मिल पायी न ही उनके स्थान पर काटोल से कोई दूसरा विधायक चुना जा सका है। काटोल में उपचुनाव कराने का मामला न्यायालय में विचाराधीन है।