नहर जर्जर - बोनी को लेकर असमंजस में किसान  - कोई नहीं ले रहा सुध, रबी की बोनी का निकला जा रहा सीजन

नहर जर्जर - बोनी को लेकर असमंजस में किसान  - कोई नहीं ले रहा सुध, रबी की बोनी का निकला जा रहा सीजन

Bhaskar Hindi
Update: 2020-12-17 12:06 GMT
नहर जर्जर - बोनी को लेकर असमंजस में किसान  - कोई नहीं ले रहा सुध, रबी की बोनी का निकला जा रहा सीजन

डिजिटल डेस्क शहडोल । नहर है, अभी कुछ मात्रा में पानी आ रहा है। लेकिन पूरे सीजन पानी मिल पाएगा अथवा नहीं, इसको लेकर सैकड़ों किसानों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। रबी की बोनी का सीजन निकला जा रहा है। यह व्यथा है, जिले की सबसे पुरानी और लंबी सिंहपुर नहर से लगे गांव के किसानों की। यहां के किसान नहर होने के बावजूद रबी की फसलें नहीं ले पाते। इसकी मुख्य वजह यह है कि दशकों पुरानी नहर के रखरखाव व मरम्मत के लिए सिंचाई विभाग द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कुछ किसानों ने बोनी तो कर दी है, लेकिन पूरे समय पानी मिल पाएगा या नहीं इसको लेकर चिंता बनी हुई है। 
नहर में पानी नहीं आने के कारण जहां पहले फसलें लहलहाती थीं, अब बंजर छोडऩे पर किसानों को मजबूर होना पड़ रहा है। सरफा नदी पर डायसर्जन बांध बनाकर सिंहपुर के नाम से नहर का निर्माण सन् 1972 में कराया गया था। नहर के रखरखाव सहित पानी की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण बड़ी सिंचाई परियोजना सिंहपुर नहर दम तोड़ रही है।
सैकड़ों एकड़ होती थी सिंचाई
करीब 16 किलोमीटर लंबी सिंहपुर नहर से सिंहपुर, पड़रिया, नरगी, उधिया, कंचनपुर तथा रायपुर सहित आधा दर्जन गावों की 1700 हेक्टेयर क्षेत्रफल के खेतों में पानी उलब्ध होता है। लेकिन सिंचाई विभाग और प्रशासन की उपेक्षा के चलते वर्तमान में इस नहर की हालत अत्यंत जर्जर हो चुकी है। ग्रामीणों ने अनेकों बार सिंचाई विभाग व जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया लेकिन जर्जर नहर की सुधार की दिशा में किसी ने ध्यान नहीं दिया। जल उपभोक्ता समितियों के माध्यम से कुछ साल तक 50 से 70 हजार की राशि खर्च कराई जाती रही, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुई। कुल मिलाकर प्रशासनिक उपेक्षा के कारण नहर का अस्तित्व मिटता जा रहा है और किसान खेती करना छोड़ते जा रहे हैं।
नहीं है मरम्मत का प्रावधान
बांध व नहर की हालत खराब होन के बावजूद विभागीय अधिकारियों के अनुसार नहर की मरम्मत के लिए कोई प्रावधान स्कीम में नहीं है। 90 के दशक में सिंचाई विभाग द्वारा पूरी नहर को सीमेंटेड कराकर पक्की बनाने का कार्य शुरु कराया गया था। कुछ किलोमीटर पक्का निर्माण में लाखों रुपये खर्च किए गए। लेकिन पूरी नहर पक्की नहीं हो सकी। नतीजा यह है कि नहर में पानी खोलते ही नहर की मेढ़ टूटने लगती है। अनगिनत स्थानों से नहर टूट चुकी है। बरसात के दिनों में नहर में पानी भरते ही पानी नये स्थान से रास्ता बना लेती है। बांध की हालत भी जर्जर हो चुकी है। पानी का ठहराव नहीं हो पाता। 
अधूरे रह गए प्रयास
नहर के जीर्णोद्धार के लिए जिला प्रशासन ने पहल की थी। तत्कालीन कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव ने निरीक्षण कर मरम्मत के निर्देश दिए थे। लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ। जल उपभोक्ता संस्था का कहना है कि पानी स्टोर करने का एक मात्र तरीका बांध की सफाई अथवा नया बांध निर्माण ही हो सकता है। जल उपभोक्ता समिति तथा ग्रामीणों की ओर से मुख्यमंत्री उस समय ज्ञापन दिया गया था जब लोक सभा चुनाव होने वाले थे। सीएम ने एक वर्ष में नहर के जीर्णोद्धार हो जाने का भरोसा दिलाते हुए विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया था, लेकिन वह घोषणा आज तक पूरी नहीं हुई। बताया गया है कि सिंचाई विभाग द्वारा कई साल पहले तक नहर की मरम्मत के लिए लाखों रुपये खर्च किए गए लेकिन जमीनी स्तर पर कार्य कुछ भी नहीं हुआ।
वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी
ग्रामीण किसानों का कहना है कि वैकल्पिक व्यवस्था जरूरी है। किसान रामसुफल यादव, जनार्दन शुक्ला, कुबेर शुक्ला, अशोक श्रीवास्तव, राजेंद्र सिंह, लालमन श्रीवास्तव, बंसू यादव, रामदास यादव, लुद्धू बैगा आदि ने बताया कि खेत और नहर होने के बाद भी कई सालों से गेहूं, चना की फसल नहीं बो पा रहे हैं। नहर में पानी कम आता है। खरीफ फसलों का उत्पादन भी ठीक से नहीं हो पाता। किसानों की मांग है कि हमें अपने हक का पानी चाहिए, नहीं तो आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।
इनका कहना है
सिंहपुर नहर डायवर्जन वाली है। पानी स्टोर का जरिया नहीं है। ऊपर के फ्लो पर पानी निर्भर है। मरम्मत का अभी कोई प्रावधान नहीं है। जरूरत पड़ी तो मिठौरी जलाशय से पानी छोड़ा जाएगा। 
भागवत मिश्रा, ईई सिंचाई विभाग
 

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