नगर परिषद के मुख्य लिपिक को 5 वर्ष का सश्रम कारावास, स्वीपर से ली थी रिश्वत

नगर परिषद के मुख्य लिपिक को 5 वर्ष का सश्रम कारावास, स्वीपर से ली थी रिश्वत

Bhaskar Hindi
Update: 2018-12-25 07:45 GMT
नगर परिषद के मुख्य लिपिक को 5 वर्ष का सश्रम कारावास, स्वीपर से ली थी रिश्वत

डिजिटल डेस्क, रीवा। नगर परिषद नईगढ़ी के रिश्वतखोर लिपिक को 5 साल कैद की सजा सुनाई गई है। यह मामला 2001 का है। जगदीश प्रसाद स्वीपर पिता बुद्ध प्रसाद स्वीपर निवासी नईगढ़ी थाना नईगढ़ी जिला रीवा द्वारा 20 मार्च 2001 को लोकायुक्त रीवा आफिस में शिकायत की गई थी कि उसकी पत्नी श्रीमती सुखरजिया स्वीपर के पद पर नगर परिषद नईगढ़ी में पदस्थ है और उसके 60 दिवस के मेडिकल अवकाश के भुगतान हेतु मुख्य लिपिक सह लेखापाल जगदीश प्रसाद पटेल नगर परिषद नईगढ़ी जिला रीवा द्वारा 2000 रुपए रिश्वत की मांग की जा रही है। शिकायत की तस्दीक उपरांत आरोपी के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत  अपराध पंजीबद्ध कर आरोपी को 1000 रुपये रिश्वत लेते हुए 24 मई 2001 को रंगे हाथ पकड़ा गया था।

8 बार अभियोजन हुई थी अमान्य
प्रकरण की विवेचना उपरांत आरोपी के विरुद्ध माननीय न्यायालय में चालान प्रस्तुत करने हेतु अभियोजन स्वीकृति आदेश नगर परिषद नईगढ़ी से चाहा गया। नगर परिषद नईगढ़ी द्वारा 8 बार अभियोजन स्वीकृति अमान्य की गई। तदुपरांत नगर परिषद के निर्णय के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका क्रमांक 9103 /2009 दायर की गई। माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा अभियोजन स्वीकृति आदेश जारी करने के निर्देश के बावजूद नगर परिषद नईगढ़ी द्वारा आरोपी के विरुद्ध पुन: तीन बार अभियोजन स्वीकृति अमान्य की गई। तदुपरांत मध्य प्रदेश शासन नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग मंत्रालय भोपाल से माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के आदेश उपरांत अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गई तथा मुख्य नगर पालिका अधिकारी नगर परिषद नईगढ़ी द्वारा भी अभियोजन स्वीकृति प्रदान किए जाने के उपरांत माननीय विशेष न्यायालय भ्रष्टाचार निवारण रीवा के न्यायालय में 26 दिसंबर 2015 को अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया। माननीय विशेष न्यायालय भ्रष्टाचार निवारण रीवा द्वारा प्रकरण के विचारण उपरांत आरोपी के विरुद्ध दोष सिद्ध पाते हुए पारित निर्णय 24 दिसंबर 2018 को आरोपी को धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में 4 वर्ष का सश्रम कारावास व 5000 रुपये का अर्थदंड तथा धारा 13 1स्र सहपठित 13 दो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में 5 वर्ष का सश्रम कारावास व 5000 रुपये के अर्थदंड से दंडित किया गया है। इस फैसले के साथ ही आरोपी को जेल भेजा गया।

 

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