‘वे’ कार्यकारी राष्ट्रपति पहले और बाद में उपराष्ट्रपति बने

 ‘वे’ कार्यकारी राष्ट्रपति पहले और बाद में उपराष्ट्रपति बने

Tejinder Singh
Update: 2019-10-20 11:26 GMT
 ‘वे’ कार्यकारी राष्ट्रपति पहले और बाद में उपराष्ट्रपति बने

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विदर्भ व नागपुर की धरती से जुड़े अनेक शख्स ऐसे हैं, जिन्होंने बाद में न केवल राज्य (महाराष्ट्र) बल्कि, राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़े हैं। नागपुर से अपना कैरियर शुरू करने वाले मोहम्मद हिदायतुल्लाह न केवल सरकारी वकील, महाधिवक्ता, हाईकोर्ट जज, सुप्रीम कोर्ट जज बल्कि, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी बने। भारत के वे एकमात्र व्यक्ति हैं, जो कार्यकारी राष्ट्रपति पहले बने, बाद में निर्विरोध उपराष्ट्रपति चुने गए। राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन से रिक्त हुए राष्ट्रपति पद पर उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को शपथ दिलाई गई। बाद में गिरी ने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए अपना पद त्याग दिया। नवतत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्लाह को 34 दिन के लिए (20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969) कार्यकारी राष्ट्रपति रहने का सौभाग्य मिला। कालांतर में वे देश के 1979 से 1984 तक निर्विरोध चुने गए उपराष्ट्रपति रहे। जीवन के उतार-चढ़ाव की बात करें, तो पी.वी. नरसिंहराव नागपुर में पढ़े और राजनीतिक उथल-पुथल के चलते वे रामटेक से 2 बार सांसद भी चुने गए। किंतु जब पी.वी. नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने तो वे संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे।बहुत कम लोग जानते होंगे कि बापूजी अणे बिहार के (12 जनवरी 1948 से 14 जून 1952) राज्यपाल रहने के बाद 1962 में नागपुर से लोकसभा का चुनाव रिखबचंद शर्मा के खिलाफ लड़े और जीते भी। यह बात अलहदा है कि 1967 में बापूजी अणे एक बुनकर नेता नरेंद्र देवधरे के खिलाफ चुनाव लड़े और हार गए। यहां यह बता दें कि बापूजी अणे और रिखबचंद शर्मा दोनों ही विदर्भ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। मोहम्मद हिदायतुल्लाह को हाईकोर्ट का सबसे युवा मुख्य न्यायाधीश रहने का सम्मान प्राप्त है। उन्हें बाद में पद्म विभूषण अलंकार से नवाजा भी गया था। देश में अब तक 3 बार ऐसा अवसर आया िक किसी को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया। पहले थे वी.वी. गिरि, दूसरे मोहम्मद हिदायतुल्ला और तीसरे में बी.डी. जत्ती।

अब सोशल मीडिया से रणनीति

ताजा दौर की बात करें तो अब चूहा और गुप्त बैठकें पुरानी हो गईं। सोशल मीडिया के जरिए मतदान के अंतिम क्षण तक मतदाता का मत-परिवर्तन करने पर रणनीति तैयार की जा रही है। सोशल मीडिया विश्लेषक अजीत पारसे ने कहा कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के नए अध्ययन में दावा किया गया है कि युवाओं के लिए सोशल मीडिया मादक पदार्थ जैसा हो गया है। कोई पोस्ट री-ट्विट, शेयर अथवा लाइक करने पर उसके दिमाग पर कोकीन की तरह असर करती है। इस रिपोर्ट के आधार पर सोशल मीडिया उपयोगकर्ता की मानसिकता का अनुमान लगाकर मतदान के अंतिम पल तक मतदाता का मत-परिवर्तन किया जा सकता है। मतदान के लिए कतार में खड़े सोशल मीडिया उपयोगकर्ता का ग्रुप पर उसके पसंदीदा उम्मीदवार के बाबत कोई अफवाह आने पर वह इसकी जांच-पड़ताल किए बिना अपना विचार बदल सकता है। 

असर से इनकार नहीं  

अजित पारसे, सोशल मीडिया विश्लेषक के मुताबिक फिलहाल युवा सोशल मीडिया की सूचना पर निर्भर हो गया है। इसे ध्यान में रखकर उम्मीदवार की छवि खराब या अच्छी बनाने पर ज्यादातर काम किया जा रहा है। इसका परिणाम सोमवार को होने वाले मतदान पर होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। सोशल मीडिया के कारण ईवीएम में वोट डालने तक मतदाता की मानसिकता बदली जा सकती है। 

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