महंगी दवाइयां बेचने वालों की अनदेखी करने पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

महंगी दवाइयां बेचने वालों की अनदेखी करने पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

Anita Peddulwar
Update: 2020-01-16 07:06 GMT
महंगी दवाइयां बेचने वालों की अनदेखी करने पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। दवा के वास्तविक मूल्य से अधिक रेट प्रिंट करने वाले उत्पादकों, विक्रेताओं और चुनिंदा कंपनी की दवा लिखकर देने वाले चिकित्सकों पर राज्य सरकार क्या कार्रवाई करेगी, इस पर हाईकोर्ट ने तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।  एड. मनोग्या सिंह की इस याचिका में केंद्र और राज्य सरकार समेत नेशनल फार्मा प्राइजिंग अथॉरिटी को दवाओं की आसमान छूती कीमतों पर लगाम कसने में नाकाम ठहराया गया है। दवाओं का यह कारोबार सभी की मिलीभगत से फलने-फूलने का आरोप भी लगाया गया है।

याचिकाकर्ता के अनुसार सरकार ने केवल 850 दवाओं को प्राइज कंट्रोल आर्डर के तहत लाकर उनकी कीमतें नियंत्रित की हैं। बड़ी संख्या में जरूरी दवाएं हैं जिनका मूल्य नियंत्रित करना जरूरी है। याचिका में याचिकाकर्ता ने कई ऐसे दस्तावेज जोड़े हैं, जिसमंे कोर्ट को यह बताने की कोशिश की गई है कि बाजार में दो रुपए होलसेल मूल्य वाली दवा ग्राहक को 25 रुपए में बेची जा रही है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से प्रार्थना की है कि वे दवा की कीमतों को नियंत्रित करने से जुड़ा योग्य आदेश सरकार को जारी करें। याचिकाकर्ता की ओर से एड. अनिल कुमार काम काम देख रहे हैं।

15 से 20 प्रतिशत का फर्क
दवाओं की अनाप-शनाप कीमतों पर हाईकोर्ट का ध्यानाकर्षित करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा है कि बाजार में इथिकल और जेनरिक दवाओं की कीमतों में जमीन आसमान का फर्क है। इथिकल दवाओं के होलसेल और थोक मूल्य मंे 15 से 20 प्रतिशत का फर्क आता है। लेकिन जेनरिक दवाओं की होलसेल और थोक कीमतों में 25 प्रतिशत से 1000 प्रतिशत तक का फर्क है। जबकि ड्रग प्राइज कंट्रोल आर्डर के अनुसार दवा व्यवसाय में मार्जिन 16 प्रतिशत के ऊपर नहीं जानी चाहिए। वर्ष 2015 में सरकार ने दवा की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए नेशनल फार्मा प्राइजिंग अथॉरिटी का गठन किया था, मगर यह संस्था भी दवा की कीमतों पर लगाम लगा पाने में असमर्थ है।

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