अनधिकृत धार्मिक स्थलों पर हाईकोर्ट सख्त, मांगी रिपोर्ट

अनधिकृत धार्मिक स्थलों पर हाईकोर्ट सख्त, मांगी रिपोर्ट

Anita Peddulwar
Update: 2020-01-30 04:53 GMT
अनधिकृत धार्मिक स्थलों पर हाईकोर्ट सख्त, मांगी रिपोर्ट

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने नागपुर महानगर पालिका, नागपुर सुधार प्रन्यास व सार्वजनिक निर्माण कार्य विभाग से पूछा है कि नागपुर शहर में अब कितने अनधिकृत धार्मिक स्थल शेष हैं? कोर्ट ने तीनों प्रतिवादियों से इस पर दो सप्ताह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। हाईकोर्ट में वर्ष 2006 में मनोहर खोरगड़े द्वारा दायर याचिका में शहर में जनता से जुड़ी विविध समस्याओं का जिक्र किया गया था। मामले की सुनवाई होती गई और शहर में व्याप्त धार्मिक स्थलों के अतिक्रमण, उससे होने वाली यातायात व अन्य समस्याओं पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया। इसके बाद हाईकोर्ट ने समय-समय पर मामले में विविध आदेश जारी किए, जिसके बाद मनपा और नासुप्र ने धार्मिक स्थलों के अतिक्रमण के खिलाफ धड़ल्ले से कार्रवाई शुरू की थी। कई स्तर के विरोध के बाद हाईकोर्ट ने भी धार्मिक स्थलों को श्रेणियों में विभाजित करने के आदेश दिए थे।

तीन श्रेणियों में विभाजन हुआ था
मनपा ने कोर्ट में बताया था कि उनके सर्वे में 1521 धार्मिक स्थल अनधिकृत पाए गए हैं। इसके बाद  मनपा ने शहर के 1205 अनधिकृत धार्मिक स्थलों को ए और बी श्रेणी में विभाजित कर उनकी सूची जारी की। वर्ष 2009 के पहले बने अनधिकृत धार्मिक स्थलों को नियमित किया जा सकता है, ऐसे 1007 स्थल सूची में थे। बी श्रेणी में 198 ऐसे अनधिकृत धार्मिक स्थल रखे गए, जिन्हें नियमित नहीं किया जा सकता और तोड़ना जरूरी बताया गया। इसके बाद आए दावे और आपत्तियों पर मनपा की एक विशेष समिति ने सुनवाई ली। अंतत: 1084 अनधिकृत धार्मिक स्थलों को ए श्रेणी और 121 धार्मिक स्थलों को बी श्रेणी में डाला गया था। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड. फिरदौस मिर्जा और मनपा की ओर से एड. सुधीर पुराणिक ने पक्ष रखा।

सुधार गृह पर अगली सुनवाई में फैसला
निर्माण कार्य तोड़ने के पहले संबंधित संस्थाओं को हाईकोर्ट रजिस्ट्रार के पास 50 हजार रुपए की सुरक्षा राशि जमा करने पर मनपा मंे सुनवाई ली गई थी। इस प्रक्रिया के जरिए करीब पौने दो करोड़ रुपए जमा हुए हैं। यह रकम विदर्भ के महिला व बाल सुधार गृहों के विकास के लिए दी गई थी। बुधवार को मुख्य सरकारी वकील सुमंत देवपुजारी ने मुद्दा उठाया कि सुधार गृहों के विकास के लिए एक स्वतंत्र जनहित याचिका दायर करने की जरूरत है। हाईकोर्ट ने इस पर अगली सुनवाई में निर्णय लेने का तय किया है। 

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