ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज का वादा करें, तो ही मिलेगा दाखिले में आरक्षण

ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज का वादा करें, तो ही मिलेगा दाखिले में आरक्षण

Tejinder Singh
Update: 2019-03-17 11:33 GMT
ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज का वादा करें, तो ही मिलेगा दाखिले में आरक्षण

डिजिटल डेस्क, नागपुर। डॉक्टरों को आदिवासी, ग्रामीण और दूर-दराज के इलाकों में सेवा देने के लिए प्रेरित करने के लिए राज्य सरकार आरक्षण देने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। प्रस्ताव के अनुसार ऐसे छात्र-छात्राओं को, जो ग्रामीण क्षेत्र में एक तय समय के लिए सेवा देने वचन देंगे, उन्हें एमबीबीएस में दाखिले में दस फीसदी और एमडी में बीस फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। यह कॉलेजों के वर्तमान सीटों के अंदर ही होगा यानी इसके लिए सीट नहीं बढ़ाए जाएंगे। प्रवेश के लिए फार्म भरते समय ही इस विकल्प का चुनाव करना होगा। इस व्यवस्था के लिए पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से महाराष्ट्र डिजाइनेशन ऑफ सीट फॉर अंडर ग्रेजुएट एंड पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्स बिल-2019 का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। सरकार की तैयारी इसे मनसून सत्र में पेश करने की है, ताकि 2019-20 सत्र के लिए इसे लागू किया जा सके। 

12 वर्ष सेवा का प्रस्ताव

प्रस्ताव के अनुसार, इस विकल्प को अपनाने वालों को दूरदराज, आदिवासी या दुर्गम इलाकों में सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों, जिला परिषद अस्पतालों या सरकार की ओर से संचालित किसी भी स्वास्थ्य केंद्र में सेवा देनी होगी। सेवा की अवधि एमबीबीएस की डिग्री लेने के तत्काल बाद सात वर्ष और एमडी के बाद पांच वर्ष होगी। इस विकल्प के अंतर्गत दाखिला पाने वाले को अगर एमबीबीएस के तत्काल बाद एमडी में दाखिला मिल जाता है तो उन्हें एमडी के बाद 12 वर्ष सेवा देनी होगी।  

गांवों में डॉक्टर्स की कमी को पूरा करने के लिए राज्य सरकार ने मेडिकल छात्रों से बॉन्ड भरवाना शुरू किया गया कि वे पढ़ाई के बाद अनिवार्य रूप से कुछ साल ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देंगे। महाराष्ट्र पिछले एक दशक में 10 हजार से अधिक डॉक्टरों ने ग्रामीण क्षेत्र में जाने से मना कर दिया है। राज्य सरकार की ओर से नवंबर 2017 में नियम बनाकर एमबीबीएस करने वालों के लिए एक वर्ष ग्रामीण इलाकों में सेवा को अनिवार्य कर दिया गया। इसे पूरा नहीं करने वालों को 15 लाख रुपए जुर्माना देने का भी प्रावधान किया गया। इसके बावजूद हालात में सुधार नहीं हुआ। युवा डॉक्टरों ने ग्रामीण इलाकों में सेवा देने की जगह जुर्माना भरने और नौकरी छाेड़ने तक का विकल्प अपनाया। 

कोर्स छोड़ने का अधिकार नहीं

प्रस्ताव के अनुसार, इस विकल्प के अंतर्गत दाखिला लेने वालों को बीच में कोर्स छोड़ने की अनुमति नहीं होगी। अगर कोई कोर्स छोड़ता है तो उसे जुर्माना देना होगा। जुर्माने की राशि राज्य सरकार तय करेगी। 

जुर्माने के प्रावधान के बावजूद सुधार नहीं

एमबीबीएस की डिग्री के बाद एक साल के लिए ग्रामीण इलाकों में सेवा के लिए बाॅन्ड भरने के बावजूद अधिकतर युवा डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में जाना पसंद नहीं करते हैं। राज्य सरकार की ओर से इसके लिए 15 लाख रुपए के जुर्माने के प्रावधान के बावजूद ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। 

डॉक्टर गांव में जाने से मना नहीं करते। वे इसलिए नहीं जाना चाहते, क्योंकि प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और सीएचसी में सुविधा उपलब्ध नहीं है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में न तो ढंग के ऑपरेशन थिएटर हैं और न ही इक्यूपमेंट उपलब्ध हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पीएचसी) में बड़ी दिक्कत है। सरकार की ओर से कोई व्यवस्था वहां नहीं की गई है। डॉक्टरों के आने-जाने, रहने तक की व्यव्स्था नहीं होना, कम सैलरी की भी समस्या है। 
-डॉ. आशीष दिसावल, अध्यक्ष आईएमए, नागपुर
 

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