भारी-भरकम बस्ते का बोझ ढोने को विवश हैं बच्चे, नियमों पर नहीं अमल

भारी-भरकम बस्ते का बोझ ढोने को विवश हैं बच्चे, नियमों पर नहीं अमल

Anita Peddulwar
Update: 2018-09-06 12:02 GMT
भारी-भरकम बस्ते का बोझ ढोने को विवश हैं बच्चे, नियमों पर नहीं अमल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारी-भरकम स्कूल बैग, टिफिन बॉक्स व पानी की बोतल लेकर चलते मासूम स्कूल में आते-जाते अक्सर ही दिखते हैं। इन मासूमों से स्कूल बैग उठता नहीं, लेकिन वे वजन ढोने को विवश हैं। सीबीएसई बस्ते का बोझ कम करने के लिए निर्देश जारी करता है, लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है। वहीं, स्कूल बैग का वजन बच्चे के स्वास्थ्य और शारीरिक विकास पर बुरा असर डाल रहा है। स्कूल प्रशासन भले ही नियमों की अनदेखी की बात स्वीकार नहीं करते, मगर यह हकीकत है कि नियमों का पालन पूरी तरह से नहीं हो रहा है।

सहना मजबूरी है
मेरे बच्चे शहर के एक बड़े सीबीएससी स्कूल में पढ़ते हैं। रोज छह विषयों की कम से कम 12 किताबें ले जानी पड़ती हैं और उस दिन पढ़ाए जाने वाले विषयों अलावा और भी कुछ किताबें होती हैं, उनकी संख्या बढ़कर 20 तक पहुंच जाती है। ऐसी स्थिति में हमारा स्कूल बस्ता पांच से सात किलो का होता है और उसे तीसरी मंजिल पर स्थित कक्षा तक ले जाना बहुत थकावट भरा होता है। हमने एक दो बार स्कूल के स्कूल बैग का बोझ कम करने के लिए बात की, लेकिन कोई फायदा नहीं है। वहीं बच्चों को लिफ्ट यूज करने की नहीं दी जाती है। हम कई बार स्कूल प्रशासन से इसकी शिकायत कर चुके हैं, मगर वे नहीं सुनते। अब बच्चों का एडमिशन बड़ी मुश्किल से हुआ, इसलिए सब कुछ सहते हैं।
(मनीषा भागर्व, पैरेंट)

खुद बैग उठाने में थक जाते हैं, फिर बच्चों का क्या

हम बच्चों को स्कूल भेजते समय और लाते समय अपने कंधों पर उठा लेते हैं, यह इतना भारी होता है कि ठीक से हमने नहीं उठाया जाता। बच्चों पर किताब का अधिक बोझ नहीं रखना चाहिए। इससे डालने से बच्चे बोझिल महसूस करते हैं। 
(रिया पांडे, पैरेंट)

सालभर में 3200 किलो का वजन उठा रहे हैं बच्चे

वर्ष 2014 में की गई एक स्टडी के अनुसार, भारत में बच्चों के स्कूल बैग का औसत वजन 8 किलो होता है। एक साल में लगभग 200 दिन तक बच्चे स्कूल जाते हैं। स्कूल जाने और वहां से वापस आने के समय जो भार बच्चा अपने कंधों पर उठाता है, यदि उसे आधार मानकर गणना की जाए तो वह साल भर में 3200 किलो वजन उठा लेता है। ये भार एक पिकअप ट्रक के बराबर है। अच्छे अंक लाने का दबाव और भारी भरकम बोझ के नीचे बचपन दब रहा है।  

शारीरिक और मानसिक विकास पर यह पड़ रहा है असर
भारी बस्ता शारीरिक और मानसिक विकास का असर डालता है। इससे पोश्चर्स और बैकपैन की समस्याएं बढ़ रही हैं। मेरे पास 100 मरीजों में से 5 प्रतिशत बच्चे होते हैं, जिनमें बैकपैन की समस्या या फिर पोश्चर्स को लेकर समस्या होती है। 2010 में एक जीआर निकाला था कि बच्चों का हैवी बैग उनके वजन का दस प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए, पंरतु न तो स्कूल और न ही पैरेंट्स इसे गंभीरता से लेते हैं।
(डॉ. उदय बोधनकर, बाल रोग विशेषज्ञ) 

सरकार की पहल 

महाराष्ट्र सरकार ने अपने 50,000 स्कूलों को पूरी तरह डिजिटल करने का बीड़ा उठाया है, जहां पढ़ाई जाने वाली हर चीज ऑनलाइन होगी। इतना ही नहीं, आरटीई कानून 2009 के तहत स्कूलों में ही स्वच्छ पानी मुहैया कराने की बात भी कही गई है, ताकि बच्चों को पानी की बोतल स्कूल में ले जाने की जरूरत न पड़े।

जब स्कूल नहीं सुने तो यहां करें शिकायत
विद्यार्थी और अभिभावक अपनी शिकायत ई-मेल पर भी कर सकते हैं। नाम, एड्रेस, कान्टेक्ट नंबर लिखकर शिकायत इस ई-मेल पर दर्ज करवा सकते हैं- secy-cbse@nic.in इसके अलावा, चीफ विजिजेंस ऑफीसर्स, सीबीएसई, शिक्षा केंद्र 2, कम्यूनिटी सेंटर, प्रीत विहार, दिल्ली, फोन नंबर, 011-22549628 फैक्स : 22515826 पर भी  शिकायत के लिए संपर्क किया जा सकता है।

जरूरी कॉपी व बुक्स लाने कहते हैं 
सीबीएसई बोर्ड द्वारा दिये गए निर्देश का विद्यालयों में पालन होता है। बच्चे रूटीन के अनुसार ही स्कूल में कॉपी-किताब लाते हैं। जितना बोझ मेडिकल अलाउड है, हम उतना ही लाने को बोलते हैं। पर्सनली मेरा ये मानना है िक बच्चों को थोड़ा बोझ उठाने की आदत होनी चाहिए, इससे उनमें सेल्फ रिस्पांसिबलिटी आती है। हां बैग भारी हैं परंतु बच्चों के लिए बोझ नहीं है, स्कूल बैग है।
(मुक्ता चक्रवर्ती , प्रिंसिपल, सीपीएस स्कूल) 

लॉकर्स और कबर्ड अवेलेवल किया है

हमारे स्कूल में कबर्ड और लॉकर हैं,  विद्यार्थी उनमें बैग रख सकते हैं। हम पैरेंट्स को भी सलाह देते हैं कि वे लाइट वेट बैग लें। टाइम टेबल से किताबें कैरी करें। सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन स्कूलों में लॉकर सिस्टम है। जिससे बच्चे किताबों को स्कूल में रख सकें। ये सिस्टम हमारे पास है। वहीं सरप्राइज चेक भी होते हैं।  
(भारती विजयन, प्रिंसिपल, सांदीपनि स्कूल)

सरप्राइज चेक होते हैं

हम तो हमेशा ही विद्यार्थियों के बैग्स चेक करते हैं, ये सरप्राइज चेक होते हैं। हम उन्हें कभी एक्सट्रा कॉपी व बुक्स लाने के लिए नहीं कहते हैं। ये सही है कि ज्यादा बोझ उठाने से बच्चों की फिजिकल ग्राेथ नहीं होती है। हम जीके और ड्रांइंग बुक्स को ही घर में रखने के लिए कहते हैं, जिससे अनावश्यक बोझ हट सके। टाइमटेबल के अनुसार ही हम बुक्स व कॉपीज कैरी करने को कहते हैं। 
(अनुराग तिवारी, सेंट्र इंडिया पब्लिक स्कूल, कापसी )
 

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