बेबसी का सफर : गैस हादसे के बाद रहना हो रहा था मुश्किल, 600 किमी का सफर तय कर पहुंचे अनूपपुर

बेबसी का सफर : गैस हादसे के बाद रहना हो रहा था मुश्किल, 600 किमी का सफर तय कर पहुंचे अनूपपुर

Bhaskar Hindi
Update: 2020-05-14 17:46 GMT
बेबसी का सफर : गैस हादसे के बाद रहना हो रहा था मुश्किल, 600 किमी का सफर तय कर पहुंचे अनूपपुर


डिजिटल डेस्क अनूपपुर। लॉकडाउन में दूसरे राज्यों से श्रमिकों के आने का सिलसिला जारी है। परेशान लोग किसी भी तरह अपने घर पहुंचना चाहते हैं। रोजाना दर्जनों की संख्या में श्रमिक अनूपपुर शहडोल से होकर गुजरते हैं। मंगलवार को अनूपपुर जिले में छत्तीसगढ़ बार्डर पर उत्तर प्रदेश के आठ युवक साइकिल से पहुंचे। ये सभी आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम से उत्तर प्रदेश के कन्नौज और फिरोजाबाद जाने के लिए निकले हैं। वहां से 7 मई को चले थे। 12 मई को करीब 600 किमी का सफर करते हुए अनूपपुर पहुंचे। अभी इनको करीब 700 किलोमीटर का सफर और तय करना है।
अनूपपुर पहुंचे युवकों को प्रशासन ने बस से पहुंचाया बॉर्डर तक
अनूपपुर पहुंचे कन्नौज यूपी निवासी बबलू, दरियाई और फिरोजाबाद यूपी निवासी अजय कश्यप, अनिल कुमार, सुभाष चंद्र, प्रसन्न कुमार, सतीश चंद्र, गजेंद्र ने बताया कि विशाखापटट्नम में अलग-अलग जगह वे काम करते थे। लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया था, लेकिन स्थानीय लोग व प्रशासन की मदद से वे वहां रुके हुए थे। पिछले दिनों हुए गैस हादसे के बाद वहां रुकने में दिक्कत हो रही थी। स्थानीय प्रशासन ने भी मदद बंद कर दी थी और स्थानीय लोग भी किसी तरह की मदद नहीं कर रहे थे। उन्होंने घर वापस जाने का फैसला किया। इसके लिए दोगुनी कीमत पर साइकिल खरीदी और 7 मई की शाम को वहां से निकल गए। वहां से निकलते समय साइकिल पर ही चावल, गेहूं और आलू रख लिया था। रास्ते में दोपहर और रात के समय पेड़ के नीचे जहां पर पानी की व्यवस्था होती रुककर खाना बनाते और फिर निकल पड़ते।
रास्ते में ही टूट गई साइकिल
फिरोजाबाद निवासी प्रसन्न कुमार की साइकिल बीच रास्ते में ही टूट गई। कई कोई दुकान नहीं मिल रही थी। करीब 200 किमी का सफर उसने दोस्त की साइकिल पर बैठकर साइकिल को हाथ में पकड़े हुए किया। उन्होंने बताया कि पहाड़ी के रास्ते होते हुए मंगलवार को अनूपपुर छत्तीसगढ़ बॉर्डर केंद्रा पहाड़ तक पहुंचे। यहां से ट्रक में बैठककर वेंकटनगर आ गए। बाद में जिला प्रशासन ने उनको अनूपपुर रैनबसेरा लाकर भोजन कराया और रात में ही यूपी के बॉर्डर तक बस से छोडऩे की व्यवस्था की।
काम बंद है तो घर ही चला जाए
युवकों को बताया कि पहले लग रहा था कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद फिर से काम शुरू हो जाएगा, लेकिन गैस हादसे के बाद सारी उम्मीदें खत्म हो गईं। किसी तरह की मदद नहीं मिलने पर मन में डर भी पैदा हो गया था कि कहीं हमारे साथ भी कोई हादसा न हो जाए, इसलिए घर जाना ही ठीक समझा। पता था कि ट्रेन चल नहीं रही है, पैदल जाना संभव नहीं। किसी तरह साइकिल की व्यवस्था की और घर से निकल पड़े। भगवान का नाम लेते हुए रास्ते में चलते रहे।

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