ग्रीष्म में पानी के लिए परेशान होंगे कटनीवासी, नगर निगम के पास नहीं है ठोस योजना

ग्रीष्म में पानी के लिए परेशान होंगे कटनीवासी, नगर निगम के पास नहीं है ठोस योजना

Bhaskar Hindi
Update: 2019-03-28 08:33 GMT
ग्रीष्म में पानी के लिए परेशान होंगे कटनीवासी, नगर निगम के पास नहीं है ठोस योजना

डिजिटल डेस्क, कटनी। पौने तीन लाख की आबादी की प्यास बुझाने के लिए नगर निगम अब तक कोई ठोस इंतजाम नहीं कर पाया है। शहर के लोगों की प्यास बुझाने के लिए अभी भी मुख्य स्त्रोत बैराज और पुरानी खदानें ही हैं। बैराज का पानी जनवरी से ही जवाब देने लगता है और गर्मी आते-आते खदानों पर आश्रित रहना मजबूरी हो गई है। अन्य वैकल्पिक स्त्रोत के रूप में ट्यूबवेल और हैंडपम्पों का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन नगर निगम की अनदेखी के चलते ट्यूबवेल का खनन कछुआ चाल से हो रहा है। सभी स्त्रोतों में उपलब्ध जल क्षमता के अनुसार यदि शहर के लोगों को दोनों समय पेयजल की आपूर्ति की जाए तो अप्रेल में ही बैराज व खदानें खाली हो जाएंगी। अभी जब मार्च माह समाप्त नहीं हुआ है तब बैराज में आठ फिट पानी खिसक गया।

20 में से 16 का खनन, इस साल के 30 भी लटके
पेयजल सप्लाई के लिए नगर निगम का जोर अब ट्यूबवेल खनन पर है। वर्ष 2017-18 में 40 लाख रुपये की लागत के 50 ट्यूबवेल स्वीकृत हुए थे। इनमें से 20 के खनन के लिए वर्क आर्डर भी जारी हो गए थे, लेकिन साल बीतने के बाद इनमें से 16 का ही खनन हो सका और चार ट्यूबवेल अब तक नहीं खोदे जा सके। इस सत्र में 30 नए ट्यूबवेल का खनन होना था, साल भर तक प्रक्रिया चलती रही और जब टेंडर स्वीकृत हो गए तब ठेकेदार से अनुबंध आचार संहिता ने लटका दिया।

200 से अधिक हैंडपम्प ठप
शहरी क्षेत्र में नगर निगम द्वारा लगभग तीन वर्ष पूर्व कराए गए 688 हैंडपम्पों में से दो सौ से अधिक ठप पड़े हैं। निगम सूत्रों के अनुसार 63 हैंडपम्प ऐसे हैं, जिनमें से पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है। इसके साथ ही 41 हैंडपम्पों का पानी पीने योग्य नहीं है। इनके अलावा 105 हैंडपम्प स्थायी रूप से डेड या बंद घोषित किए जा चुके हैं। एक हैंडपम्प स्थापित करने में नगर निगम द्वारा एक लाख रुपये खर्च किए गए थे। इस तरह दो करोड़ रुपए पानी में चले गए।

एक करोड़ के ट्यूबवेल हो गए बेकार
नगरीय क्षेत्र में पेयजल के लिए 187 ट्यूबवेल स्थापित हैं, इनमें से 52 नलकूप स्थायी रूप से बंद हैं और 15 ट्यूबवेल जल स्तर कम होने से गर्मियों में सूख जाते हैं। एक ट्यूबवेल की स्थापना में दो लाख रुपये खर्च किए जाते हैं। इस तरह लगभग एक करोड़ से अधिक के ट्यूबवेल बेकार पड़े हैं।

 

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