लोकसभा : Bor tiger reserve के वन्यजीवों से सुरक्षा के लिए योजना बनाने की मांग

लोकसभा : Bor tiger reserve के वन्यजीवों से सुरक्षा के लिए योजना बनाने की मांग

Tejinder Singh
Update: 2021-03-16 15:38 GMT
लोकसभा : Bor tiger reserve के वन्यजीवों से सुरक्षा के लिए योजना बनाने की मांग

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वर्धा से सांसद रामदास तडस ने मंगलवार को लोकसभा में संसदीय क्षेत्र के बोर व्याघ्र अभयारण्य के वन्यजीवों से लोगों के प्रभावित होने के मुद्दे की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि अभयारण्य के वन्यजीवों से आसपास के निवासियों की सुरक्षा के लिए एक योजना बनाई जाए। उन्होंने नियम 377 के तहत इस मुद्दे को उठाते हुए सदन को बताया कि बोर व्याघ्र अभयारण्य क्षेत्र के अधीन आने वाले करीब 10 ग्रामसभाओं के 87 गावों के निवासी वन्यप्राणियों से प्रभावित है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों के दौरान लगभग 300 मानव एवं मवेशी वन्य प्रणियों के हमले में घायल हुए है। इस हमले में कईयों की जाने भी गई है। लिहाजा इन गांवों के लोगों में दहशत व्याप्त है। उन्होंने सदन के माध्यम से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री से लोगों की सुरक्षा के लिए एक योजना बनाने के साथ मांग की कि हमले में जानमाल के नुकसान को देखते हुए प्रभावित-आश्रित परिवारों को मुआवजा देने की भी प्रावधान किया जाए।

मराठी भाषा को मिले अभिजात भाषा का दर्जा

वहीं राज्यसभा सदस्य भागवत कराड ने मंगलवार को मराठी भाषा को अभिजात भाषा दर्जा देने की मांग उठाई। शून्यकाल के दौरान उच्च सदन में इस मुद्दे को उठाते हुए उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार अब तक छह भाषा तमिल, संस्कृत, कन्नड, तेलगु और मलयालम को अभिजात भाषा का दर्जा दे चुकी है, लेकिन वर्षों से मांग किए जाने के बावजूद मराठी भाषा को अब तक यह दर्जा नहीं दिया गया है।सांसद कराड ने सदन को बताया कि मराठी को अभिजात दर्जा देने के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित पठारे समिति की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र सरकार को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा गया है। उन्होंने सदन को याद दिलाया कि दिनों 16 फरवरी को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सभी सांसदों को चिठ्‌ठी लिखकर 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के मौके पर सभी को अपने स्तर पर अपनी मातृभाषा में लेख लिखने की अपील की थी। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में जितने भी संत-महापुरुष हुए है उन्होंने मराठी में ही ग्रंथ लिखे है। इसलिए सामाजिक कर्तव्य और सांस्कृतिक साहित्य के संवर्धन के लिए मराठी को अभिजात का दर्जा मिलना चाहिए, जिसकी कई वर्षों से मांग लंबित है

 

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