राजस्थान से बर्खास्त होकर मध्यप्रदेश में भर्ती हुए अफसर के पास है सरकारी अस्पतालों के लिए खरीद की जिम्मेदारी

मध्यप्रदेश टेंडर घोटाला राजस्थान से बर्खास्त होकर मध्यप्रदेश में भर्ती हुए अफसर के पास है सरकारी अस्पतालों के लिए खरीद की जिम्मेदारी

Bhaskar Hindi
Update: 2022-02-03 19:21 GMT
राजस्थान से बर्खास्त होकर मध्यप्रदेश में भर्ती हुए अफसर के पास है सरकारी अस्पतालों के लिए खरीद की जिम्मेदारी

डिजिटल डेस्क, भोपाल। राज्य के नागरिकों की सेहत का रखवाला स्वास्थ्य विभाग कुछ अफसरों की समृद्धि का केंद्र बन गया है।भ्रष्टाचार का पर्याय बनते जा रहे इस विभाग में खरीदी के लिये "डील" आवश्यक शर्त हो गई है। राजस्थान से बर्खास्त होकर मध्यप्रदेश में सेवा दे रहे एक अफसर का सिंडीकेट इस कारनामे को अंजाम दे रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार स्वास्थ्य विभाग में उपकरणों की खरीद के लिए टेंडर की पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाती है लेकिन पर्दे के पीछे होने वाले खेल में टेंडर सिर्फ उन्हीें के स्वीकृत होते हैं, जिनको यहां स्थापित हो चुके अफसर तथा दलालों के सिंडिकेट की हरी झंडी मिलती है। स्थिति की गंभीरता का पता सिर्फ इसी बात से लग जाता है कि यदि किसी उपकरण की स्पेसिफिकेशन फायनल नहीं हो पाती तो टेंडर के उपरांत लिए जाने वाले डेमो में उन कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, जिनसे उनकी डील फायनल नहीं हो पाती है।

प्रदेश भर में सरकारी अस्पतालों के फर्नीचर तथा उपकरण आदि के लिए होने वाले टेंडर हेल्थ् कार्पोरेशन द्वारा किये जाते हैं परंतु उन टेंडरों की स्पेसिफिकेश, क्वालीफिकेशन, क्राइटेरिया स्वास्थ्य विभाग के हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा फायनल किया जाता है। हास्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन में इसकी जवाबदारी एक संयुक्त संचालक तथा बायोमेडिकल इंजीनियर के हाथों संभाली जा रही है। गोरखधंधा यहीं से प्रारंभ होता है। जिम्मेदार अधिकारी केवल उन्हीं कंपनियों की स्पेसिफिकेशन फायनल करते हैं जिनसे इनकी डील फायनल हो जाती है। यदि किसी उपकरण की स्पेसिफिकेशन फायनल नहीं हो पाती तो यही अफसर टेंडर उपरांत होने वाले डेमो में उन कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं, जिनसे इनकी डील फायनल नहीं हो पाती।

डील नहीं तो आर्डर भी नहीं

सूत्रों के अनुसार विभाग में स्थापित हो चुका सिंडिकेट टेंडर फायनल होने के उपरांत कंपनी से दो से पांच परसेंट के बीच अपना कमीशन फायनल कर उनके लिए मैपिंग करता है। मैपिंग के फाइनल होने के उपरांत ही खरीदी की जा सकती है। अगर किसी कंपनी से इनकी सांठगांठ नहीं हो पाती और फिर भी वह टेंडर में आ जाती है, तो यह लोग उस कंपनी की खरीदी नहीं होने देते। संबंधित कंपनी की मैपिंग ही नहीं करते। ऐसे कई उदाहरण है, जिनके कॉरपोरेशन में रेट फाइनल हो गए हैं और उन कंपनियों ने काम्प्टीशन में रेट डाले हैं परंतु कमीशन नही दिया तो यही अधिकारी उन लोगों की खरीदी नहीं होने देते हैं और मैपिंग भी रोक देते हैं। 

डायरेक्ट नहीं दलाल कराते हैं डील

बताया जाता है कि सरकारी अस्पतालों के लिए खरीद के जिम्मेदार अफसर अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए सीधे तौर पर कंपनी से बात नहीं करते बल्कि दलालों के माध्यम से संबंधित कंपनी से कमीशन लेते हैं।  ऐसे भी प्रमाण मिले है जहां इन अधिकारियों को दलालों ने घर तक गिफ्ट किए है। कमीशन के अलावा दलाल और कंपनी वाले लोग इनको महंगे गिफ्ट, महंगे फोन तथा घड़ियां आदि गिफ्ट करते हैं। बताया जाता है कि टेंडर बनने से पहले यह लोग टेंडर की सारी सूचना, उसकी स्पेसिफिकेशन, क्वालीफिकेशन, क्राइटेरिया वगैरा कंपनी वालों को और उनके दलालों को लीक कर देते हैं, और उनसे सलाह मशवरा करके ही टेंडर बनाए जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप वे जिसे चाहते है उसकी कंपनी टेंडर प्राप्त कर पाती है।

राजस्थान से बर्खास्त, मध्यप्रदेश में खास

विभागीय सूत्राें के अनुसार इनमें से एक बायोमेडिकल अधिकारी को तो राजस्थान की सरकार ने निष्कासित कर दिया था। वह वहां से निष्कासित होकर मध्यप्रदेश में शासकीय नौकरी कर रहा है। वहीं डॉक्टर जो संयुक्त संचालक है उसने अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं की है, वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर कार्य कर रहा है। हैरत की बात यह है कि उसकी पत्नी भी संयुक्त संचालक है। इस तरह यह तीनों लोग एक गुट बनाकर लोगों से बड़ी राशी वसूल रहे हैं।

कमीशन के चक्कर में बेहिसाब खरीदारी

डील में पिछड़ कर सरकारी अस्पतालों की खरीद प्रक्रिया से बाहर हुई कंपनियों के प्रतिनिधियों का कहना है कि अगर जांच की जाए तो पता लग जायेगा की पूर्व में बहुत सारे उपकरण, हॉस्पिटल फर्नीचर जरूरत से कई गुना खरीदे जा चुके है । जिन लोगो को से इन अधिकारियों की साठ गांठ थी इन कंपनियों के लिए बड़ी मात्रा में मैपिंग कर इसकी खरीदी की गई है ।

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