ग्रामीण उत्पादों को मिली वैश्विक पहचान ,महात्मा गांधी ने की थी शुरुआत

ग्रामीण उत्पादों को मिली वैश्विक पहचान ,महात्मा गांधी ने की थी शुरुआत

Bhaskar Hindi
Update: 2017-09-21 04:52 GMT
ग्रामीण उत्पादों को मिली वैश्विक पहचान ,महात्मा गांधी ने की थी शुरुआत

डिजिटल डेस्क,वर्धा। ग्रामीण उत्पादों एवं सेवाओं को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने में महात्मा गांधी औद्योगिकीकरण संस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ग्रामीणों के बनाए उत्पादों को प्रतिस्पर्धा योग्य बनाने,ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने तथा रोजगार सुविधाओं के उद्देश्य से संस्था का निर्माण गांधीजी ने 1934 में स्थापित अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ के जरिए किया था।

गौरतलब है कि यह सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यगम मंत्रालय, भारत सरकार नई दिल्ली के अधीन एक राष्ट्रीय संस्थान है जो बैचलर रोड पर स्थित मगन संग्राहलय के पास है। वर्तमान में इस संस्थान के सामान्य क्षेत्र के लिए 6 विभागों (जैव प्रसंस्करण एवं जड़ी बूटी विभाग, ग्रामीण शिल्पकला एवं अभियांत्रिकी विभाग, खादी एवं वस्त्र विभाग, रासायनिक ग्रामोद्योग विभाग, ग्रामीण ऊर्जा एवं अवसंरचना विभाग, प्रबंधन एवं व्यवस्थापन विभाग) में बांटा गया है। इसमें ग्रामीण व्यवसाय करने वालों को सेवाएं देना, विशेष मानव संसाधन विकास कार्यक्रम, संसाधन सर्वेक्षण आदि का आयोजन भी शामिल हैं। 

ट्रेनिंग लेकर खुद का बिजनेस
यहां से ट्रेनिंग लेकर पिछले 5 वर्षों में लगभग 1500 लोग खुद का व्यवसाय कर रहे हैं और 30-50 हजार तक प्रतिमाह मुनाफा कमा रहे हैं। संस्था में प्रशिक्षण देने वाले कारीगर योगेश प्रजापति ने बताया कि यहां पर किसी भी संस्था के माध्यम से आने वाले लोगों को नि:शुल्क ट्रेनिंग दी जाती है। व्यक्तिगत ट्रेनिंग के लिए आने वाले प्रशिक्षणार्थियों से 3 से 3.5 हजार प्रतिमाह शुल्क लिया जाता है। इस संस्थान में 30 किमी के दायरे में रेडियो सामुदायिक केंद्र भी चलाया जाता है। इसके कार्यक्रमों में समाज के विभिन्न वर्गों को शामिल किया जाता है। यह संस्थान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों पर अग्रसर है जो ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देकर ग्रामीणों को स्वावलंबी बनाकर ग्रामीण विकास के सपने को साकार कर रहा है। 

ग्रामीण युवक-युवतियों को रोजगार
संस्थान के निदेशक डॉ. प्रफुल्ल बा. काले का कहना है कि गांधीजी के विचारों पर यह संस्था बनाई गई है जिसका उद्देश्य ग्रामीण व शहर के मुख्य रूप से ग्रामीण युवक, युवतियों को रोजगार मुहैया कराना है। 40-50 वर्ष पहले पारंपरिक रूप से कार्य कर रहे कारीगरों के शारीरिक श्रम कैसे कम हो तथा जो सामग्री काम में लाते हैं, उसमें किस प्रकार बदलाव किया जा सकता है जिससे कम मेहनत और लागत में अधिक लाभ कमाया जा सके। इस संस्था से पिछले पांच वर्ष में करीब-करीब 15 सौ लोगों ने प्रशिक्षण लेकर गांवों में अपना व्यवसाय शुरू किया है। इसमें उन कारीगरों को प्रतिमाह 25-30 हजार से लेकर 50-60 हजार रुपए मुनाफा हो रहा है।

संस्थान में दी जाने वाली ट्रेनिंग
सोलर गारमेंट बनाना।
खादी पर प्राकृतिक रंगाई।
जड़ी-बूटी आधारित उत्पाद।
उन्नत बुनाई एवं अन्य तकनीक।
कम्प्यूटर एडेड फैशन डिजाइनिंग। 
कृषि आधारित उत्पाद तैयार करना।
शिल्पकला, खादी फैशन बैग बनाना।
मोमबत्ती, मिट्टी से आभूषण तैयार करना। 
सौंदर्य प्रसाधन-फेसपैक, क्रीम, तेल, सैंपू, साबुन इत्यादि।

 

Similar News