आठवले का दर्द : शिवसेना को ज्यादा देने की जरूरत ही नहीं थी, एक ही सीट हमें दे देते

आठवले का दर्द : शिवसेना को ज्यादा देने की जरूरत ही नहीं थी, एक ही सीट हमें दे देते

Tejinder Singh
Update: 2019-02-24 10:41 GMT
आठवले का दर्द : शिवसेना को ज्यादा देने की जरूरत ही नहीं थी, एक ही सीट हमें दे देते

डिजिटल डेस्क, नागपुर। लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा व शिवसेना में गठबंधन तय हो जाने के बाद सम्मान के सवाल को लेकर नाराज चल रहे आरपीआई नेता व केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्यमंत्री रामदास आठवले ने फिर से भाजपा से नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि गठबंधन के तहत शिवसेना को एक सीट अधिक देने की जरूरत ही नहीं थी। आरपीआई ने दक्षिण मुंबई की एकमात्र लोकसभा सीट मांगी थी। दोनों दल मिलकर वह सीट छोड़ सकते थे। आठवले ने यह भी कहा कि गठबंधन को लेकर किसी तरह की चर्चा न करके भाजपा सेना ने आरपीआई का अपमान किया है। आरपीआई इन दलों की गुलाम बनकर नहीं रहेगी। 25 फरवरी को मुंबई में आरपीआई पदाधिकारियों की बैठक होनेवाली है। उसमें अगला राजनीतिक निर्णय लिया जाएगा। आठवले ने किसी भी स्थिति में कांग्रेस के साथ नहीं जाने का दावा करते हुए यह भी कहा कि राजनीति में सभी मार्ग खुले रहते हैं। श्री आठवले शनिवार को रविभवन में पत्रकार वार्ता में बोल रहे थे। उन्होंने कहा-लंबे समय से वे कह रहे थे कि भाजपा व शिवसेना में गठबंधन होना चाहिए। दोनों दल में गठबंधन हुआ। आनंद की बात है, लेकिन आरपीआई के लिए एक भी सीट नहीं छोड़ना गंभीर बात है। आरपीआई के सम्मान के बारे में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने दोबारा सोचना चाहिए।

पवार से नहीं मिला, भुजबल का मैसेज आया

आठवले यह भी कहा कि फिलहाल अन्य दलों से गठबंधन के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई है। कांग्रेस के साथ जाना नहीं है। राकांपा अध्यक्ष शरद पवार से राजनीतिक मामले पर मुलाकात नहीं की है। राकांपा नेता छगन भुजबल ने एसएमएस भेजकर मिलने की इच्छा अवश्य जताई है। उन्होंने साफ कहा कि अकेले बल पर उनका दल चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं है। रामदास आठवले ने कहा कि सेना में सामाजिक आरक्षण मिलना चाहिए। दलित समाज के युवाओं ने अधिक से अधिक संख्या में सेना में शामिल होना चाहिए। 

महत्व न भूलें

आठवले ने कहा कि आरपीआई व दलित समाज के मत का महत्व नहीं भूलना चाहिए। उनके नेतृत्व की आरपीआई जिस दल के साथ रहती है, उसे सत्ता मिलती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य में महागठबंधन को 48 में से 42 सीटें मिली थी, उसमें आरपीआई के समर्थन का योगदान था। आरपीआई में कई गुट है, लेकिन मेरे गुट में मत संख्या अधिक है। आरपीआई के विधायक सांसद नहीं चुने गए हैं, पर भाजपा शिवसेना को आरपीआई ने चुनाव में फायदा दिलाया है। 

उपेक्षा करना नहीं चलेगा

आरपीआई की उपेक्षा करना नहीं चलेगा। शिवसेना के साथ गठबंधन को लेकर हुई पत्रकार वार्ता में हमें नहीं बुलाया गया। उसके एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री से सांगली में चर्चा हुई थी। उन्होंने गठबंधन के निर्णय की कोई जानकारी नहीं दी। मुख्यमंत्री ने कहीं भी हमारे दल के बारे में जिक्र तक नहीं किया। लोग फोन करके पूछते हैं कि एक भी सीट नहीं पाने की उपेक्षा को कैसे सहोगे। सत्ता में भागीदारी के मामले में भी ऐसा ही होते रहा है। मुख्यमंत्री ने ठाणे की सभा में कहा था कि आरपीआई को 6-6 माह के लिए मंत्रीपद दिया जाएगा। महामंडल के 2 अध्यक्ष पद देने की भी घोषणा की थी। जो आश्वासन दिए गए उन्हें पूरा नहीं किया गया। 
 

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