अमेजन विवाद मामले में राज ठाकरे और मनसे के सचिव को नोटिस

अमेजन विवाद मामले में राज ठाकरे और मनसे के सचिव को नोटिस

Tejinder Singh
Update: 2020-12-25 09:53 GMT
अमेजन विवाद मामले में राज ठाकरे और मनसे के सचिव को नोटिस

डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता अखिल चित्रे ने अमेजन कंपनी को हिदायत देते हुए कहा है कि यदि कंपनी को महाराष्ट्र की हमारी भाषा मान्य नहीं है तो हमे महाष्ट्र में यह कंपनी स्वीकार नहीं है। इसके अलावा मुंबई के अलग-अलग इलाकों में अमेजन के खिलाफ पोस्टर लगाए गए है। जिसमें लिखा गया है कि नो मराठी-नो अमेझॉन। 

राज ठाकरे व मनसे के सचिव को नोटिस

उधर महानगर की दिंडोशी कोर्ट ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना(मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे व मनसे के सचिव को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने पांच जनवरी 2021 मनसे प्रमुख राज व सचिव को कोर्ट में उपस्थित रहने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने यह नोटिस मनसे की ओर से मराठी भाषा के मुद्दे को लेकर ई कामर्स कंपनी अमेजन के खिलाफ शुरु किए गए अभियान से जुड़े विवाद को लेकर जारी किया है। अमेझॉन कंपनी में कोर्ट में किए गए आवेदन में कहा है कि मनसे से जुड़े लोगों उनकी कंपनी के बैनर व पोस्टर को नुकसान पहुंचा रहे है। पोस्टरों पर कालिख पोती जा रही है। कंपनी ने आवेदन में अपने गोदामों के भी नुकसान होने की आशंका जाहिर की थी। इस आवेदन पर सुनवाई के बाद मनसे प्रमुख राज ठाकरे व सचिव को नोटिस जारी किया। दरअसल मनसे ने मांग की है कि अमेझॉन के एप व वेबसाइट में मराठी भाषा का विकल्प भी दिया दिया जाए। मनसे अपनी इस भूमिका को लेकर अक्रामक भूमिक अपनाई है। जिसे परेशान होकर अमेझॉन ने कोर्ट में आवेदन दायर किया है। 

कंपनी के कामकाज में न पैदा किया जाए अवरोध

वहीं इसी अदालत ने कंपनी की ओर से किए गए दूसरे दावे में मनसे कामगार सेना को निर्देश दिया है कि वे कंपनी के कामकाज में कोई अडंगा व अवरोध न पैदा करे। और  कंपनी के आरोपों को लेकर अपना 13 जनवरी 2021 तक अपना जवाब दे। मनसे के उत्पात से परेशान होकर अमेझॉन ट्रांसपोर्टेशन सर्विस प्राइवेट लिमिटेड ने कोर्ट में दावा दायर किया है। जिसमें मनसे कामगार सेना को प्रतिवादी बनाया गया है।  अमेझॉन के मुताबिक महाराष्ट्र नवनिर्माण कामगार सेना व मनसे से जुड़े लोग कंपनी व उससे जुड़े लोगों के कामकाज में अवरोध पैदा कर रहे है। अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश के सामने सुनवाई के दौरान कामगार सेना की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने इस मामले में अंतरिम राहत देने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सिविल कोर्ट में इस मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। एमआरटीयू व पीयूएलपी अधिनियम की धारा 60 के तहत सिविल कोर्ट इस मामले में दखल नहीं दे सकती। इस दौरान अदालत के क्षेत्राधिकार को लेकर भी प्रश्न उपस्थित किया गया। 

वहीं कंपनी के वकील ने दावा किया कि उसने अपने यहां अनुबंध के तहत सिर्फ स्वतंत्र ठेकेदार रखे है। कंपनी ने किसी की नियुक्ति कर्मचारी की नियुक्ति नहीं की है। इन दलीलों को सुनने के बाद न्यायाधीश ने कहा प्रथम दृष्टया कंपनी की राहत की मांग उचित लग रही है। कंपनी सुगमता से अपना कारोबार कर सके इसके लिए उसे अंतरिम राहत दी जानी जरुरी है। 
 

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