हर्बल और प्राकृतिक रंगों का क्रेज, रसायन से परहेज

हर्बल और प्राकृतिक रंगों का क्रेज, रसायन से परहेज

Anita Peddulwar
Update: 2019-03-15 10:51 GMT
हर्बल और प्राकृतिक रंगों का क्रेज, रसायन से परहेज

डिजिटल डेस्क, नागपुर। होली में हर्बल और प्राकृतिक रंगों का क्रेज बढ़ गया है, लोग अब रसायन से परहेज करने लगे हैं। सेहत और पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता का असर होली पर भी दिखाई पड़ने लगा है। लोग अब केमिकल युक्त रंगों के बजाय हर्बल और प्राकृतिक रंगों से होली खेलना पसंद कर रहे हैं। संतरानगरी में भी होली की तैयारियों के बीच प्राकृतिक और हर्बल रंग व गुलाल से होली खेलने का ट्रेंड बढ़ता नजर आ रहा है। भले ही पिछले कुछ सालों में इको-फ्रेंडली होली प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की शुरुआत उच्च वर्ग में हुई थी, लेकिन अब यह ट्रेंड तेजी से सामान्य लोगों में भी लोकप्रिय हो चुका है। लोगों में इको-फ्रेंडली रंगों के प्रति रुझान बढ़ता देखकर सूखा रंग और गुलाल बनाने वाली कंपनियों ने भी कमर कस ली है। छोटी दुकानों और बाजार से लेकर शॉपिंग मॉल की बड़ी दुकानों तक प्राकृतिक रंगों और गुलालों से भरे पैकेट्स रखे जा रहे हैं। 

केमिकल युक्त रंगों से स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां हो सकती हैं। एक दिन के मजे के लिए कोई बीमारी मोल लेना कहां तक सही होगा। रसायन वाले रंगों से स्किन कैंसर, फेफड़े के कैंसर का खतरा, वार्निश या ग्रीस से एलर्जी, अस्थमा जैसे रोग हो सकते हैं। ये घातक रंग सांस लेते समय फेफड़े में चले जाते हैं और काफी नुकसान पहुंचाते हैं। शरीर की त्वचा से लगते ही जलन, लाल चकते, फुंसियां होने का खतरा बढ़ जाता है। घातक रंग या गुलाल आंखों में चले जाने से रोशनी कमजोर पड़ सकती है। कुछ रंग तो आंखों के अंदर चिपक जाते हैं और रेटिना को नुकसान पहुंचाते हैं।

रंगों का असर कम करने के लिए होली खेलने से पहले अपने पूरे शरीर पर तेल लगा लेना चाहिए। इससे त्वचा सुरक्षित रहेगी। हो सके तो गॉगल्स का प्रयोग भी होली खेलने के समय करें। इससे आंखों में रंग व गुलाल पड़ने की आशंका कम हो जाएगी। प्राकृतिक रंगों से होली खेलने को प्राथिमकता दें और दूसरों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करें। 

इको-फ्रेंडली रंगों की मांग बढ़ी 
पिछले कुछ सालों में लोग जागरूक हुए हैं। हर्बल गुलाल की मांग करने लगे हैं। प्राकृतिक रंग और गुलाल ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इसलिए बिक्री के लिए इन्हें रखना पड़ रहा है। 
जगदीश साहू, गुलाल और रंग विक्रेता 

दो साल पहले केमिकल से बने रंगों से होली खेलने के कारण तबीयत खराब हो गई थी। उसके बाद से मेरा परिवार हर्बल रंगों का उपयोग करना शुरू कर दिया। यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा भी होता है।
कल्पना जाधव, गृहिणी

शहर में अब हर्बल यानी प्राकृतिक रंग भी आसानी से उपलब्ध हैं, ऐसे में  फिर रसायन वाले रंगों का उपयोग क्यों किया जाए। वैसे भी केमिकल वाले रंग घातक होते हैं। इससे सभी को बचना चाहिए।
साधना जोशी, गृहिणी - डॉ. सुमन मिश्रा, त्वचा विशेषज्ञ
 

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