पोल्यूशन बना धीमा जहर, लंग्स पर सबसे अधिक बुरा असर

पोल्यूशन बना धीमा जहर, लंग्स पर सबसे अधिक बुरा असर

Anita Peddulwar
Update: 2020-02-24 10:05 GMT
पोल्यूशन बना धीमा जहर, लंग्स पर सबसे अधिक बुरा असर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। इतना ही नहीं दुनिया में 25 फीसदी मृत्यु का कारण प्रदूषित हवा है। इसका असर स्वास्थ्य पर काफी बुरा पड़ रहा है। गर्भ के दौरान बच्चों के विकास पर भी इसका बुरा असर हो रहा है। यह बात चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. समीर अरबट ने कही। वे रामदासपेठ स्थित क्रिम्स हॉस्पिटल में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस अवसर पर शहर की हवा की स्थिति को जानने के लिए हाॅस्पिटल के बाहर हवा में पार्टिकुलेट मैटर का प्रभाव (प्रदूषण) जानने के लिए एक उपकरण लगाया गया है, जिसमें फेफड़ों का आकार बना हुआ है और उसे हेफा फिल्टर से ढंका गया है। इस अवसर पर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) की वरिष्ठ आंचलिक अधिकारी हेमा देशपांडे, पूर्व महापौर प्रवीण दटके, सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की संस्थापक लीना बुधे, वातावरण फाउंडेशन के भगवान केशभट व रेडियो मिर्ची के आरजे नमन उपाध्याय उपस्थित थे।

हवा प्रदूषण जांचने के लिए 22 स्टेशनों की जरुरत 
एमपीसीबी की देशपांडे ने कहा कि, हमें जीने के लिए 24 घंटे सांस लेने की जरुरत होती है जबकि हम जितना खराब खाने की चीजों पर ध्यान देते है उतना हवा प्रदूषण पर नहीं देेते है। वातावरण के केशभट ने कहा कि, निजी संस्थान के सर्वे में महाराष्ट्र में प्रदूषित शहरों की संख्या 18 से 22 हो गई है। हमें हवा प्रदूषण जांचने के लिए 22 स्टेशनों की जरुरत है, जबकि वर्तमान में बहुत कम है। लीना बुधे ने कहा कि, कचरा जलाना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी, जिसके लिए हमने मनपा के कर्मचारियों को जागरूक किया। चौराहों पर जागरूकता कर रहे हैं। कार्यक्रम में विशेष रूप से ग्रीन विजिल फाउंडेशन के संस्थापक कौस्तुभ चटर्जी, सुरभि जायस्वाल उपस्थित थे।

महिलाओं में यह प्रमाण कम ही देखा जाता है
डॉ. अरबट ने कहा कि, हमें ऐसा लगाता है कि दृश्यता कम होने पर प्रदूषण का आंकलन नहीं किया जा सकता है। बाहर लगी मशीन 150 इंडेक्स दिखा रही है, जबकि सामान्य इंडेक्स 50 होता है, ऐसे में हम प्रदूषण का आंकलन नहीं कर सकते हैं। नागपुर में वर्ष 2016 से 2018 में हमारे यहां 180 मरीजों की जांच की गई, तो सामने आया कि, उनको सीओपीडी है, जबकि वह धूम्रपान नहीं करते थे। विशेष बात यह है कि, सीओपीडी धूम्रपान करने वालों में ही देखा जाता है। विशेष यह है कि, उसमें 54 महिलाएं थीं, जबकि महिलाओं में यह प्रमाण कम ही देखा जाता है, क्योंकि वह पुरुषों की अपेक्षा कम धूम्रपान करती हैं। वही, पूर्व महापौर दटके ने कहा कि, पुणे की तर्ज पर मोक्षधाम घाट पर हमने प्रदूषण को रोकने के लिए एक मॉडल लगाया है, इसमें डॉक्टरों को भी सुझाव देना चाहिए। 
 

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